स्वत्व के भाव की कमी से हुआ भारत का विभाजन – श्री नंदकुमार

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इन्दौर। स्वराज्य के अमृत महोत्सव को लेकर चिंतन यज्ञ – स्वराज 75 की श्रृंखला में एक व्याख्यान का डॉ.हेडगेवार स्मारक समिति तथा प्रज्ञा प्रवाह मालवा-प्रांत के तत्वावधान में रविन्द्र नाथ टैगोर सभागार में आयोजन हुआ।
मुख्य वक्ता , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक,  अखिल भारतीय संयोजक , प्रज्ञा प्रवाह श्री जे नंदकुमार ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्वराज को लेकर अखण्ड भारत में जो संघर्ष चला वह सतत तथा सर्वव्यापी था । यह अलग-अलग कालखण्ड मे अलग-अलग स्थानों पर सतत् चलता ही रहा है । एक हजार वर्ष का सतत् संघर्ष, कश्मीर से कन्याकुमारी तक व लाहौर कराची से सुदूर पूर्वांचल तक हर क्षेत्र की सहभागिता इसमें रही थी ।
बंग भंग आंदोलन के समय देशवासियों ने स्वदेशी, वंदेमातरम, भारत माता की जय के आधार पर विभाजन रोक लिया पर इस स्वत्व के भाव की कमी के कारण ही अपने देश को विभाजन झेलना पड़ा ।
स्वराज के इस अविस्मरणीय अभियान मे भारत के हर वर्ग का योगदान रहा है ।
परन्तु चिन्ता की बात है कि हम आज भी उन्ही विदेशी आक्रान्ता तथा लुटेरों द्वारा षडयंत्रपूर्वक  लिखे  इतिहास को पढ रहे है और मान्यता दे रहे हैं  जिनके कारण भारत की हर तरह से हानि ही हुई थी  । संभवतः इसी कारण से भारत का जनमानस आज भी अपने भूतकाल के सांस्कृतिक वैभव तथा अकाट्य समृद्धि से अनभिज्ञ रहकर मानसिक परतंत्रता की बेडियों मे जकडा हुआ है ।
वास्तविकता यही है कि इन विदेशी इतिहासकारों ने कपटतापूर्वक भारतीय इतिहास को दूषित कर हमारे आत्म-गौरव को विषाक्त किया है ।


हमें यह पढाया जाता है कि विदेशी शासकों ने भारत के समाज व अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए बडा योगदान किया जो की पूर्णत असत्य है । सत्य तो यह है कि इन विदेशी आक्रान्ताओं ने भारत के संसाधनो का क्रूरतापूर्ण दोहन किया तथा सामाजिक समरसता को कुटिलता से छिन्न भिन्न किया था । अंग्रेजी शासन के पूर्व भारत का निर्यात हमारे आयात से अनेक गुणा अधिक था तथा विश्व के कुल व्यापार का लगभग 28% हिस्सा भारत का था । यह इतिहास का प्रामाणिक सत्य है ।
भारत में महिलाओं को पुरातन काल से ही सर्वोच्च स्थान प्राप्त रहा है तथा जाति भेद का कोई प्रसंग भी प्रगट नही होता है ।
सच क्या यह है भारत का अस्तित्व अंग्रेजों के भारत आने के बाद ही रहा है अथवा यह कि भारत का चिरकाल से अपना अभीष्ट साँस्कृतिक गौरव रहा है ?
प्रश्न तो यह है कि यूरोपीय आक्रान्ता भारत में अगर व्यापार ही करने आए थे तो उनके साथ बडी संख्या में धर्म प्रचारकों तथा धार्मिक चिन्ह व धर्मग्रन्थ  साथ लाने का क्या औचित्य रहा था ?
भारत मे ही एक विशिष्ट नकारात्मक विचारधारा आज भी मौजूद है जो हर परिस्थिति में भारत का बुरा चित्रण करना अपनी बौद्धिकता का प्रमाण मानते हैं।

स्वराज के अमृत महोत्सव पर हमें यह संकल्प लेना है कि स्वराज के सौ वर्ष पूर्ण होने पर भारत को विश्व पटल पर सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करने के लिए हम अपनी संपूर्ण शक्ति को इस हेतु समर्पित करें।
इसके पूर्व विषय प्रस्तावना रखते हुए श्री पवन तिवारी ने अनेक प्रसंगों का वर्णन करते हुए बताया कि हमारे इन्दौर और मालवा प्रान्त के कितने ही बलिदानी महापुरुष हैं जिनके बारे में हमें कभी बताया ही नहीं गया । जैसे पातालपानी से तो हम सभी परिचित हैं परंतु उसी स्थान से संबद्ध क्रान्तीसूर्य टंट्या मामा के विषय में हमारी जानकारी अत्यंत अल्प ही है ।
मुख्य अतिथि श्री अरुण ताम्बे ने अपने वक्तव्य में कहा कि
अपने बच्चों को केवल करियर नहीं देशभक्ती का संस्कार दीजिये अन्यथा एक बार फिर गुलामी देखना पड सकती है ।
श्री गुरमीत सिंह जी ने कहा कि
भारतीय जीवन शैली व संस्कार ही  आने वाली पीढी को अवसाद से बचा सकती है ।उन्हें पाश्चात्य आक्रमणों से बचाने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के पूर्व श्री जे नंदकुमार तथा अन्य गणमान्य समाज जनों ने सभास्थल पर जनरल विपिन रावत तथा अन्य सैन्य अधिकारियों के चित्र के समक्ष श्रृद्धा सुमन अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की तथा वीर बलिदानियों की आत्मा की शाँति हेतु दो मिनट की मौन प्रार्थना रखी ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री अरुण जी ताम्बे ,सेनि उपमहानिरीक्षक बीएसएफ  तथा अध्यक्ष तवलीन फाउण्डेशन के श्री गुरमीत सिंह जी नारंग एवं डा हेडगेवार स्मारक समिति के अध्यक्ष श्री ईश्वर हिन्दुजा उपस्थित  थे । कार्यक्रम का संचालन सुश्री  मंजुषा जौहरी ने किया तथा आभार डाॅ मिलिन्द दाण्डेकर जी ने व्यक्त किया ।

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