गौ माता की सेवा के बिना उसके महत्व को भी नही  जाना जा सकता

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*गौ सेवा ही गोपाल सेवा है*
*गौ माता की सेवा के बिना उसके महत्व को भी नही  जाना जा सकता*

#विपरीत परिस्थितियों में धैर्य को धारण करने से ही मिलती है सफलता
पर्यावरण संरक्षण का दिया संदेश

*बड़वानी से कपिलेश शर्मा*- गौ सेवा ही साक्षात गोविंद गोपाल की सेवा हे। यह कहते हुए साध्वी श्रीअखिलेश्वरी दीदी मां ने कुशवाह धर्म शाला में आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ किया। दीदी मां ने कथा के पांचवें दिन कृष्ण की बाल लीलाओ के वर्णन के साथ गौ सेवा के महत्व को समझाया ।

दीदी मां ने बताया कि यदि श्री कृष्ण को पाना है तो सच्चे मन से गौ सेवा कर लीजिए। आप गौ सेवा ,सुरक्षा को अनदेखा करके मन्दिर जाकर पूजा पाठ कर रहे है तो उसका कोई महत्व नही । क्यो कि श्री गोविंद स्वयं ने गौसेवाबीके लिए धरती पर अवतार लिया। गौ सेवक व गौ सेवा दोनों ही श्रीकृष्ण को अति प्रिय है। इसीलिए स्वयं प्रभु उन भक्तो के ह्रदय में वास करते है। दीदी मां नेआज पूतना वध की कथा को सुनाते हुए बताया किपूतना वध के बाद मा यशोदा और नंदबाबा श्री कृष्ण के अनिष्ट से बहुत ही डर गए। इसलिए कृष्ण जी पवित्र व अनिष्ठ को दूर करने के लिए गौ माता की पूँछ से झाड़ा दिलवाया ।उस समय से धार्मिक मान्यता है कि गाय माता की सेवा से या उसके स्पर्श मात्र से ही हमारे कुदृष्टि के दोष , मानसिक अशांति ,गृह दोष आदी दूर होकर सकारात्मक विचार आते है।साध्वी जी ने देशी गौ मैया के महत्व को बताते हुए सभी को सजग किया कि केवल गौ रक्षा के नारे लगाने से उसका संवर्धन ,सुरक्षा नही हो सकती आज आवश्यकता है कि आप स्वयं देशी गाय को पाले नही संभव हो तो पालतू घूमने वाली गाय की सेवा करे ।गाय से मिलने वाली वस्तु का उपयोग अधिक अधिक करे तभी हमारा गौ सेवा का नारा लगाना सार्थक है । गो सेवा व रक्षा से ही राष्ट्र की सुरक्षा एवं सुख-सम्पन्नता सम्भव है।

साथ ही दीदी मां ने गोवर्धन महाराज की पूजा का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि विपरीत व संकट से भरी परिस्थितियों में धैर्य पूर्वक सामना करने से संकट दूर हो जाते है। नंद बाबा से श्री कृष्ण ने स्वयं इन्द्र पूजा का विरोध करके प्रकृति को पूजने का जोर डाला। और प्रकृति से ही यानी गोवर्धन पर्वत के नीचे सबको आश्रय देकर इंद्र के प्रकोप से बचाया। भगवान श्रीकृष्ण ने पर्यावरण के महत्व को बढ़ावा देने का संदेश बृजवासियो को धैर्य व मिलजुलकर सामना करने की शिक्षा दी। व जिससे उन्होने गिरीराज की शरण लेकर साक्षात् देव दर्शन किये।

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