मुशायरे का आयोजन किया गया।

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देवास। 22 दिसम्बर शनिवार को पत्ती बाज़ार चौराहे पर एक अज़ीमुश्शान मुशायरा का इनेकाद किया गया। जिसमे हिन्दुस्तान व नेपाल के आलमी शोहरत याफ्ता शायरो ने शिरकत की अकबर देवासी, शकील अपना, रेहमत अली फानी, राकेश शर्मा, गब्बर फानी, आरिफ वारसी,गुलरेज़ अली की कावीशों से  इस मुशायरे का इनेकाद किया गया इतनी ज़्यादा सर्दी मे भी  सेकडों की तादाद मे सामईन मौजूद रहे और शायरों की खूब होंसला अफज़ाइ की।  रात 10 बजे शुरू हुआ मुशायरा सुबह 4.30 पर इख्तेदाम तक पहुँचा  । मुशायरे के मुख्य अतिथी के रूप मे अंसार एहमद (सभापति) न.नि.देवास विशेष अतिथियों मे बाली घोसी पार्षद, मिजऱ्ा मसऊद साहब, हाजी सलीम साहब, हाजी शफीसाहब, डॉ. रईस कुरेशी  साहब, संजय कहार साहब, सलिस देवासी,इक़बाल मोदी, इशान राणा, शेरखान पठान, फिरोज़ खान ठेकेदार, साबिर पठान,  मौजूद रहे। मुशायरे मे दौरान ए शायरी  नईम अख़्तर ख़ादमी साहब ने  कहा – हर आने वाली साँस कोई मोतबर नही, इस पल के बाद दूसरे पल की ख़बर नही, सर चढ़ के बोलने लगी तिनकों की शरकशी शोला बने बगेर अब अपना गुजऱ नही।  आरिफ वारसी ने कहा- ख़ारों के बीच हूँ तो क्या फितरत ही बदल दूँ, मे गुल हूँ मेरा काम है ख़ुशबू बिखेरना। और ये भी कहा- जब हमसे मिलने आओ तो तक़ब्बुर छोड़ के आना, कलन्दर हैं मियां मिट्टी की क़ीमत जानते हैं हम। गुलरेज़ अली ने कहा – तेरी आँखों मे समंदर नजऱ आता है, मुझे फिर वही मंजऱ नजऱ आता है, सोंचता हूँ कमा लुं इस जहाँ की धन और दौलत, फिर जाता हुआ सिकंदर नजऱ आता है। इनके अलावा डॉ. जिय़ा टोंकी राजस्थान, फारूख़ रज़ा शेगाँव ,सलाम खोखर रतलाम ,इशरत बिलाल नागपुर , अफज़ल दानिश बुरहानपुर, परवाज इलाहबादी, फज़ल हयात गुलशनाबाद, साबिर कमाल अकोला, साहिल कपिल वस्तवी नेपाल, सोहैल कपिलवस्तवी नेपाल , इमरान फैज़ नागपुर, समीर दिलकश आरवी महाराष्ट्र, साक्षी तन्हा भारती बरेली , सरिता सरोज महाराष्ट्र , नईम माहिर सागर , महताब सालम कलकत्ता आदि शायरों ने एक से बढ़ कर एक कलाम पेश किये। मुशायरा की बेहतरीन निज़ामत इंटर नेशनल नाजि़म इमरान राशिद मालेगांव ने की। उनकी निज़ामत की तारीफ नईम साहब ने भी की कि वाक़ई इतनी कम उम्र मे इतनी बेहतरीन निज़ामत क़ाबिल-ए तारीफ़ है  हिन्दुस्तान में ऐसे नौजवान नाजि़म बहुत कम है। जो इतना अच्छा हाफज़ा रखते हैं और इतना अच्छा इंतखाब पढ़ते हैं।  मुशायरा मे इब्तिदाई ईस्तक़बालिया निज़ामत मिजऱ्ा मसऊद साहब ने की मुशायरे की सदारत हन्नान फारुख़ी साहब ने की।  आखऱी मे आभार अकबर देवासी ने माना।

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