अपने दुख को भुलाकर दूसरों के दुख को मिटा दे वही राम है- स्वामी आनंदगिरी जी

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अपने दुख को भुलाकर दूसरों के दुख को मिटा दे वही राम है- स्वामी आनंदगिरी जी महाराज 
देवास। राजा वही जो प्रजा का सेवक होता है। देश और राज्य के विकास और जनता के सुखों की चिंता करने वाला ही राजनेता श्रेष्ठकर होकर वंदनीय हो सकता है। राजाराम ने कोई घोषणा नहीं की और रामराज्य की स्थापना कर दी। रामायण ग्रंथ ही नहीं राजतंत्र की कुंजी होकर सद्भाव समन्वय के साथ श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण करने वाला संविधान है। राम का वनगमन प्रभु की लीला है जिसने हमें बताया कि वनवासी आदिवासी के जीवन कल्याण करना भी राजा का ध्येय होना चाहिये वो तभी संभव होग जब उनके जीवन को प्रत्यक्ष रूप से देखा जाए, समझा जाए। श्रीराम ने वन गमन के दौरान वनवासी के दुखों को दूर करने का प्रयास किया। ऋषि के आश्रम में जाकर उनकी साधना का प्रतिफल उन्हें दिया। राम लक्षमण जानकी ने महलों का सुख त्यागकर मानव जाति सेवा की है। अपने दुख को भुलाकर दूसरों के दुखों को मिटा दे वही राम है। यह आध्यात्मिक विचार क्षिप्रा तट पर हो रही श्रीराम कथा के सातवें दिन प्रभु श्रीराम के वनवास प्रसंग को व्यक्त करते हुए स्वामी आनंदगिरी जी महाराज ने बड़े सुंदर भाव के साथ व्यक्त किये । आपने कहा कि जहां राम वहां अयोध्या है। हर नगर, हर गांव को अयोध्या बनाना है तो राम को आत्मसाद करना होगा। राम वनवास के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि जहां सोना है वहां से राम चले जाते हैं। सुमन्त राम को विदा करने वन में आये जैसे ही रात्रि में उन्हें निद्रा लगी उनको सोता देख भौर से पहले प्रभु राम उन्हें छोडकर वन की ओर प्रस्थान कर गए। अगर सुमन्त सोते नहीं तो शायद राम उन्हें छोडकर नहीं जाते। इसीलिए लक्ष्मण ने निद्रा देवी से वरदान मांगा कि मुझे राम के साथ रहना है अत: 14 वर्ष तक मुझे निद्रा न आये ऐसा न हो कि मेरे सोने पर राम मुझे छोडकर चले जाए। ज्यादा सोने वाला प्रभु से दूर हो जाता है। 
राम ने वन में निषाद को गले लगाया और केवट के आदेश का पालन किया। प्रभु सच्चे भक्त के अधिनहोते हैं। केवट ने गंगा पार करवाने के  लिए यह कहकर मना कर दिया कि राम चमत्कारी हैं इनके छूने से पत्थर स्त्री बन गयी अगर मेरी नाव स्त्री बन गई तो मेरी रोजी रोटी का क्या होगा। तब प्रभु राम भक्त के भाव समझ गए और उसकी आज्ञा का पालन कर अपने चरण धुलवाये। राम केवट को उतराई देने लगे तो केवट ने कहा कि प्रभु मैने आपको गंगा पार करवाया आप मुझे भवसागर पार करवा देना यही मेरी उतराई है। कथा में ऋषि भारद्वाज के आश्रम और गुरू की महिमा का बखान करते हुए कहा कि जब राम ने भारद्वाज मुनि से वन का रास्ता पूछा तो उन्होंने कहा कि प्रभु आप जिस मार्ग से जाएंगे वह परमार्थ का मार्ग बन जाएगा। इधर आयोध्या प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि जिसके जीवन में राम नही वह जीवन नहीं है। राम के वन प्रस्थान के बाद राजा दशरथ ने इसी भाव के साथ अन्नजल का त्याग कर दिया और राम के वियोग में स्वर्ग सिधार गए। श्रीराम कथा में स्वामीजी ने रामचरित मानस के प्रसंगों को आज की प्रसंगिकता के साथ जोडकर कहा कि परिवार में इज्जत पाना है तो रामायण को आत्मसाद करना होगा जिसका परिवार में सम्मान होगा वही संसार में सम्मान प्राप्त कर सकता है। रामायण एवं व्यासपीठ की पूजा दिलीप अग्रवाल , अनीता अग्रवाल एवं परिवार ने की। आरती में विशेष रूप से इंदौर विधायक रमेश मन्दोला, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता रामपालसिंह सिसोदिया, प्रयागराज से आये स्वामीजी के शिष्य मुकेश गुप्ता, गायत्री राजे पवार, विक्रमसिंह पवार, रामेश्वर दायमा आदि उपस्थित थे।
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