अयोध्या राममंदिर निर्माण के लिए बना हुआ है मणिकांचन योग, फिर भी रामलला तम्बू में

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अयोध्या राममंदिर निर्माण के लिए बना हुआ है मणिकांचन योग, फिर भी रामलला तम्बू में

(डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’)

अयोध्या। केंद्र में नरेंद्र  मोदी की सरकार है, और उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ काबिज है। मतलब साफ है कि दोनों ही जगह हिन्दुत्व के पैरोकार के तौर पर मशहूर भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जो वर्षों से राम जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का वादा जनता से करती आ रही है। जब जनता ने केंद्र और उत्तरप्रदेश दोनों ही जगह स्पष्ट बहुमत से भाजपा को विजय बनाया तो फिर भी राम लाला तम्बू में क्यों है। क्या सियासत नहीं चाहती कि  राम मंदिर बने और यह मुद्दा ही देश के सामने हर चुनावों में आना बंद हो जाए ?

इस सप्ताह शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे शनिवार को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर हो रही विश्व हिंदू परिषद की धर्म संसद में शिरकत करने पहुंचे। धर्म संसद में शामिल होने के लिए शिव सेना कार्यकर्ता और कई राज्यों से विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग वहां पहुंचे। इस आयोजन में  प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए हैं, और बड़ी संख्या में पुलिस, पीएसी और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है।

उद्धव ठाकरे समेत पार्टी के कई नेता 24 और 25 नवंबर को अयोध्या में रहे. इस दौरान उन्होंने मंदिर में दर्शन भी किया, संतों से मुलाक़ात और सरयू आरती में भी शामिल हुए। धर्म संसद में मंदिर निर्माण के लिए संसद में क़ानून लाने या अन्य विकल्पों की संभावनाओं पर विचार किया। इसी दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को एक सभा को संबोधित करते हुए यह कहा कि राम मंदिर पर जल्द से जल्द क़ानून बनना चाहिए। मोहन भागवत ने कहा, “न जाने क्या कारण है, या तो अदालत बहुत व्यस्त है या राम मंदिर उसके लिए प्राथमिकता नहीं, इस स्थिति में सरकार को सोचना चाहिए कि वो मंदिर निर्माण के लिए किस तरह क़ानून ला सकती है …. वो क़ानून जल्द से जल्द पेश किया जाना चाहिए.”

शिवसेना और विहिप के बीच सिर्फ़ एक ही समान बिंदु है कि दोनों ही मंदिर के लिए क़ानून की मांग करती हैं। दोनों को ही इस मामले के सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से लंबित होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। संविधान के जानकार और मशहूर वकील सूरत सिंह कहते हैं, “सरकार के पास अगर बहुमत हो तो उसके पास अधिकार है कि वो क़ानून बना सकती है. लेकिन उस क़ानून को संविधान की मूल भावनाओं के अनुरूप होना होगा।” संविधान के मूल में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता जैसी भावनाएं निहित हैं। ये सभी संविधान की प्रस्तावना में बहुत साफ़ तौर पर दर्ज हैं।

जब भारत में भाजपा और हिंदुत्व की दृष्टि से मणिकांचन योग बना हुआ है उसके बावजूद भी राम मंदिर निर्माण में हो रही देरी राजनैतिक नियत के साफ़ होने का इशारा नहीं दे रही है। केंद्र सरकार को कानून बना कर मंदिर निर्माण हेतु प्रबंध करना चाहिए अन्यथा धाक के तीन पात है।

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