रातूसिंह से लेकर हनी बघेल तक कांग्रेस का दबदबा, भाजपा के लिए आसान नहीं कुक्षी की डगर

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कुक्षी विधानसभा 198

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र और राजनैतिक रूप से बरसों से धार ज़िले की राजनीति की निर्णायक विधानसभा कुक्षी व्यापार-व्यवसाय के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भी बहुत मज़बूत विधानसभा रही है।
कुक्षी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र 1951 में, तत्कालीन मध्य भारत राज्य के 79 विधानसभा क्षेत्रों में से एक के रूप में बना है। यह अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है विधानसभा है। और यह भी सत्य है कि हमेशा से ही कुक्षी विधानसभा प्रदेश की राजनीति में दमदार पक्ष रखती है। कुक्षी की अनदेखी करके कोई भी राजनैतिक दल अपने अस्तित्व को आदिवासी क्षेत्र में मज़बूत नहीं बना सकता।
कुक्षी के सबसे पहले विधायक रातूसिंह रहे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर 1957 के विधानसभा चुनाव में जीतकर विधायक बने थे। 1962 में भारतीय जनसंघ से बाबू जी चुनाव जीते थे। 1967 में कांग्रेस से छितूसिंह विधायक बने। इसके बाद 1972 से 1985 तक लगातार तीन बार कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रताप सिंह बघेल ने कुक्षी की विधायकी संभाली। तब श्री बघेल मंत्री भी बने। इसके बाद कुक्षी सीट पर 1985 में कांग्रेस से जमुना देवी ने चुनाव जीता। 1990 में भारतीय जनता पार्टी से रंजना बघेल ने चुनाव जीतकर कांग्रेस के पारंपरिक गढ़ में सेंध लगाई। इसके बाद जमुनादेवी का क़द न केवल क्षेत्र में बढ़ने लगा बल्कि प्रदेश की राजनीति में भी कद्दावर क़द हो गया। 1993 से लगातार 15 वर्षों तक फिर प्रदेश की बुआजी यानी जमुना देवी को कोई हरा नहीं पाया। इसी दौरान बुआजी उपमुख्यमंत्री भी बनीं। सन् 2008 में छठी बार विधान सभा सदस्‍य निर्वाचित हुईं एवं 07 जनवरी, 2009 से निधन तक जमुनादेवी नेता प्रतिपक्ष, म.प्र. विधान सभा रहीं। इसी विधानसभा में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए प्रताप सिंह बघेल मैदान में थे पर जमुना देवी ने उन्हें भी चुनाव हराया।
24 सितंबर, 2010 को जमुनादेवी जी के निधन के बाद कुक्षी सीट पर वर्ष 2011 में उपचुनाव हुए, इस उपचुनाव में भाजपा के मुकाम सिंह किराड़े चुनाव जीते। इसके बाद वर्ष 2013 में कुक्षी के कद्दावर नेता प्रतापसिंह बघेल के बेटे सुरेंद्र सिंह बघेल ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और चुनाव जीते भी। वर्ष 2018 के चुनाव में भी सुरेन्द्र सिंह बघेल ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड मतों से जीतने के बाद प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आने पर मंत्री भी बनाए गए। इस तरह कुक्षी विधानसभा के राजनैतिक इतिहास में भारतीय जनसंघ और भाजपा के मिलाकर कुल तीन बार विधायकी नसीब हुई है।
इस बार कांग्रेस ने सुरेंद्र सिंह बघेल को ही टिकट दिया है और भाजपा ने युवा नेता जयदीप पटेल पर भरोसा जताया है।

वर्तमान में पूरे प्रदेश में भले ही लाडली बहना योजना गेम चेंजर नज़र आ रही है पर कुक्षी की राह आसान भी नहीं है। हनी बघेल की कार्यशैली से अधिक कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में जयदीप पटेल का सेंध लगाना आसान भी नहीं है।
कांग्रेस यदि एकजुट होकर चुनाव लड़ती है तो भाजपा को भी अत्यधिक मेहनत करना होगी विधानसभा में।
हनी बघेल के मंत्रित्व वाले कार्यकाल में विधानसभा में हुए काम और उसके बाद भाजपा ने जब से प्रदेश सरकार संभाली उन कामों को लेकर जनता के बीच वोट माँगने जा रहे है।

कहीं जयस मैदान न बिगाड़े

आदिवासी बाहुल्य कुक्षी विधानसभा में त्रिकोणीय मुक़ाबला माना जाता है, जहाँ बीजेपी और कांग्रेस के साथ अबकी बार जयस भी चुनावी मैदान में नज़र आ सकती है। कुक्षी विधानसभा धार जिले के साथ-साथ निमाड़ अँचल की प्रमुख विधानसभाओं में से एक है। इस विधानसभा पर जीतने वाले दल का वर्चस्व आसपास की विधानसभाओं पर भी दिखाई देता है। कुक्षी विधानसभा प्रमुख तौर पर आदिवासी और किसान बाहुल्य विधानसभा मानी जाती है। यही कारण है कि, यहाँ किसानों से जुड़े मुद्दे और आदिवासियों से जुड़े मुद्दे चुनाव में चर्चा का विषय बने रहते हैं।

कुक्षी की अदद पहचान जमुनादेवी का कद्दावर क़द

19 नवम्‍बर, 1929 को जन्मी जमुनादेवी प्रदेश से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की कद्दावर नेत्री रहीं। वह मध्य प्रदेश विधान सभा की सदस्य थीं और विपक्ष के नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वह झाबुआ से लोकसभा सदस्य (1962-67) चुनी गईं तथा 1978 से 1981 तक राज्य सभा की सदस्य भी रहीं।
बुआजी 1952 से 1957 तक मध्य भारत राज्य की पहली विधानसभा की सदस्य रहीं, फिर 1962 से 1967 तक झाबुआ से संसद सदस्य और 1978 से 1981 तक राज्यसभा सदस्य रहीं।

वह अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा और श्यामा चरण शुक्ला सरकार में कनिष्ठ मंत्री थीं, लेकिन उन्हें दिग्विजय सिंह के तहत कैबिनेट में शामिल किया गया और बाद में 1998 में मध्य प्रदेश के उप मुख्यमंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया, इस प्रकार वह पहली महिला उप मुख्यमंत्री बनीं।

जब 2003 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सत्ता खो दी, तो उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में नामित किया गया और 2010 तक इस पद पर रहीं।

1934-57 में मध्‍य भारत विधान सभा की सदस्‍य, 1960-63 में झाबुआ जिला कांग्रेस की समन्‍वयक, 1962-67 में लोक सभा सदस्‍य, समाज कल्‍याण बोर्ड ब्‍लॉक रामा जिला झाबुआ की अध्‍यक्ष, अखिल भारतीय रेलवे क्‍लर्क एवं यार्ड मास्‍टर एसोसिएशन की अध्‍यक्ष, 1963-67 में आदिवासी केन्‍द्रीय सलाहकार बोर्ड की सदस्‍य एवं अ.भा. कांग्रेस की सदस्‍य, 1964 से निरंतर म.प्र. कांग्रेस कमेटी की सदस्‍य, केन्‍द्रीय समाज कल्‍याण बोर्ड, नई दिल्‍ली तथा अ.भा. आदिम जाति सेवा संघ की सदस्‍य, 1973-76 में भील सेवा संघ, इंदौर संभाग की सचिव, 1978-81 में राज्‍य सभा सदस्‍य एवं हुडको की संचालक, अखिल भारतीय आदिम जाति महिला सेवक संघ, म.प्र. इकाई की अध्‍यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी आदिवासी एवं अनुसूचित जाति सेल (गुजराज एवं पंजाब) की संयुक्‍त सचिव, 1985 में आठवीं विधान सभा की सदस्‍य निर्वाचित एवं राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग कल्‍याण, 1989-90 में म.प्र. महिला कांग्रेस की महामंत्री, इंदौर संभाग प्रभारी, 1993 में दसवीं विधान सभा की सदस्‍य निर्वाचित एवं मंत्री, समाज कल्‍याण, महिला एवं बाल विकास विभाग रहीं, 1997 में उत्‍कृष्‍ट मंत्री पुरस्‍कार से सम्‍मानित, 1998 में ग्‍यारहवीं विधान सभा की सदस्‍य निर्वाचित एवं उप मुख्‍यमंत्री तथा प्रभारी महिला एवं बाल विकास विभाग रहीं, 2001 में भारत ज्‍योति सम्‍मान एवं 2003 में संसदीय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण करने पर ‘संसदीय जीवन सम्‍मान’ से सम्‍मानित हुईं। सन् 2003 में बारहवीं विधान सभा की सदस्‍य निर्वाचित एवं 16 दिसम्‍बर, 2003 से 11 दिसम्‍बर 2008 तक नेता प्रतिपक्ष, म.प्र. विधान सभा बनीं। सन् 2008 में छठी बार विधान सभा सदस्‍य निर्वाचित एवं 07 जनवरी, 2009 से निधन दिनांक तक नेता प्रतिपक्ष, म.प्र. विधानसभा रहीं।

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