यह कड़वा सच है कि सिस्टम अब लचर या कहें लाचार हो चुका है। 20 लाख करोड़ के सब्ज़बाग दिखाने का मौसम फिर से आ चुका हैं। पर बीते एक वर्ष में भी उन्हीं 20 लाख करोड़ के पैकेज से अस्पताल व्यवस्थाएँ दुरुस्त नहीं हुईं क्योंकि ‘अस्पताल’ उनके मतदाता नहीं हैं।
यहाँ तक कि इंदौर के भाषणबाज़ जनप्रतिनिधि भी न जाने कौन से चुनाव में व्यस्त हैं या कहें फ़ोटो खिंचवाने में उलझे हैं कि उन्हें उनके मतदाता भी नज़र नहीं आ रहे।
जो मौजूद हैं उन्हें नौटंकी से फ़ुर्सत नहीं। आखिर इंदौर केवल खजराना गणपति महाराज के भरोसे ही शेष है।
वैसे कोरोना का ख़ौफ़ नहीं फैलाया तो सिस्टम कमाई कैसे करेगा? वैक्सीन कैसे बिकेगी? इंजेक्शन कैसे बिकेंगे? अस्पतालों का खर्च कैसे निकलेगा? यह भी तो विचारणीय है।
जनता को ख़ुद ही आपने आप की देखभाल करनी होगी, सतर्कता रखनी होगी अन्यथा राम-नाम तो सत्य हमेशा रहा है।
दूसरा, जितना कोरोना नहीं फैला उससे ज़्यादा उसका डर लोगों को मार डालेगा। इस पर क़ाबू पाना है, जो स्वयंसेवी संस्थाएँ चाहें तो कर सकती हैं। शहर के स्वयंसेवी संगठन जागरुकता अभियान के माध्यम से जनता को उग्र और भयग्रस्त होने से तो बचा ही सकते हैं। बाकी कोरोना से तो जागरुक होने पर बच जाएँगे। लोगों को अवसाद से मुक्त करने की दिशा में जागरुक कर सकते हैं।
यही कुछ उपचार ज़रूरी हैं, क्योंकि आप शासन या सत्ता के भरोसे बैठे रहोगे पर वो दारू की बिक्री और चुनाव के भरोसे बैठे हुए हैं।
कोरोना भयावह ज़रूर है, पर उपचार हो सकता है। नियमित भांप लेने से 60% तो आप कोरोना से ख़ुद को बचा ही सकते हैं। अत्यावश्यक होने पर ही बाहर निकलें या लोगों से मिलें अन्यथा घर पर रहकर ही ज़्यादा काम करना फ़ायदेमंद है।
शुक्र है, हमारे यहाँ चुनाव नहीं है अन्यथा हम कोरोना से जूझ भी रहे होते और उफ़ तक नहीं कर पाते। ईश्वर सबको स्वस्थ रखे, यही कामना है।
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
मातृभाषा उन्नयन संस्थान, भारत
9893877455