आज बच्चों की दृष्टि में एक क्लिक में सारी सृष्टि है

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भोपाल । आरंभ चेरिटेबल फाउंडेशन , विश्व रंग एवं वनमाली सृजन पीठ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम” *बालमन* “का आज  स्वराज संचालनालय, संस्कृति विभाग भोपाल में किया गया,  जिसमें प्रमुख बाल साहित्यकारों ,  गणमान्य अतिथियों  ने भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर प्रेम भारती ने की,  वहीं मुख्य अतिथि थे बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ प्रकाश बरतूनिया।  कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे जवाहर बाल भवन के निदेशक डॉ उमाशंकर नगाइच और वरिष्ठ साहित्यकार मालती बसंत। बाल साहित्य पर केंद्रित इस कार्यक्रम में बाल मन के इर्द-गिर्द रची  तीन बाल कृतियों का समीक्षकों द्वारा समीक्षा,  विमर्श किया गया।
 साहित्यकार अनुपमा श्रीवास्तव अनुश्री द्वारा रचित बाल काव्य कृति ” अवि, तुम्हारे लिए ”  की समीक्षा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अहद प्रकाश ने कहा; एक मां  द्वारा अपने नन्हें  बेटे  को माध्यम बनाकर सभी नन्हे-मुन्ने बच्चों को ‘अवि ,तुम्हारे लिए , के रूप में बेशकीमती उपहार दिया है,   जिसमें इंद्रधनुषी रंग में सजी , बच्चों के संसार , बाल मन को समाहित करती पच्चीस कविताएं हैं  जिनके सृजन की शुरुआत रचनाकार के मॉरीशस प्रवास से  हुई।  बाल मन को, जो इंटरनेट  की भटकन , वर्चुअल दुनिया और भौतिकता की ओर अग्रसर हैं।  तनावग्रस्त है। उन्हें अवसाद  से हटाकर प्रकृति प्रेम  ,मधुर संगीत ,पुस्तक प्रेम , मानवीय संवेदनाएं , देशभक्ति , उच्च जीवन मूल्यों   की तरफ ले जाती हैं ।  काव्य सृजन में कई सारे नवीन प्रयोग किए गए है ।  एक चित्र सा उपस्थित होता है कविताओं के माध्यम से।  कविता के भाव को चित्रित करता हर पैराग्राफ़ के साथ रंगीन चित्र भी दिए गए हैं। खूबसूरत कलेवर और अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार यह एक संग्रहणीय और पठनीय काव्य संकलन बन गया है सभी बच्चों के मार्गदर्शन और मनोरंजन हेतु जो बच्चों को बड़ा आकर्षक और लुभावना लगेगा।
वही उषा सक्सेना ने इस काव्यकृति  की  समीक्षा करते हुए कहा ;- यह एक अनुपम भेंट है रचनाकार की और बिना  शैशव में लौटे,  बालपन को नहीं जिया जा सकता। इन कविताओं में प्यार है , दुलार है और बेहतर जीवन जीने की दिशा। 
वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्यामा गुप्ता दर्शना  के बाल नाटक संकलन की सुमन ओबेरॉय द्वारा की गयी समीक्षा का पाठ करते हुए डॉ अरविंद जैन ने कहा कि पानी रे पानी दस नाटकों का एक सुंदर गुलदस्ता है जिसमें बच्चों को कई सारे जीवन मूल्यों  का शिक्षण और  नैतिक शिक्षा दी गई है।
तीसरी बाल काव्य कृति  डॉ ओरिना अदा की द्वारा रचित “नन्ही दुनिया”  की गई ;-” डॉ. ओरीना अदा जी की बाल-कविताओं में जहाँ एक ओर ध्वन्यात्मक सौंदर्य है,  वहीं नैतिकमूल्यों का शिक्षण है।         वहीं इसी कृति की समीक्षा करते हुए बिंदु त्रिपाठी ने अपना वक्तव्य दिया – नन्ही दुनिया में बच्चों के मन को भाने वाली सरल सहज भाषा में नैतिक शिक्षा है और मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्धन है।
 अनुपमा अनुश्री ने अपने वक्तव्य में कहा बालमन के इर्द-गिर्द उत्कृष्ट बाल साहित्य का सृजन करना आज चुनौतियों से भरा हुआ है और जहां इस आधुनिक दौर में बच्चों का मूड और मोड कुछ हटकर है वे अधिक सतर्क, जागरूक ,जिज्ञासु और इंटेलिजेंट है। आज बच्चों की  दृष्टि में एक क्लिक में सारी सृष्टि है।  इंटरनेट पर अनाप-शनाप सर्च, सस्ते साहित्य की जगह पर,  अगर उनकी खोज आकर ऐसे बाल साहित्य पर रूकती है जो उनकी जिज्ञासा, समस्याएं, कौतूहल का समाधान कर सके,  उनकी कल्पना को सिर्फ चांद तारे तकने  के लिए नहीं , बल्कि चांद तारों  ,मंगल तक पहुंच की उड़ान दे सके, सपनों को  परवाज दे सके,  वही सार्थक,  समसामयिक बाल उपयोगी  बाल साहित्य  सृजन होगा, जिसे हाथों में हाथ डालकर बच्चे अपना सकेंगे।  स्वयं को उसके साथ जोड़ सकेंगे और उससे जुड़ सकेंगे ।  उसे अपना सच्चा मित्र कह सकेंगे।  वैज्ञानिक दृष्टिकोण और बाल मन में उतर , मनोविज्ञान की समझ रखते हुए और दोस्ताना रूप से रचा गया साहित्य उनकी जिंदगी में एक रोशन मशाल की तरह उजास भर सकता है  जिस के सानिध्य में वे तनाव ,अवसाद , निराशा ,परेशानियां और अनावश्यक भटकन से दूर रहें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ प्रेम भारती जी ने  उद्बोधन देते हुए कहा कि समृद्ध लोगों को बाल साहित्य के क्षेत्र में आगे आना चाहिए और अच्छी पुस्तकों का प्रकाशन मुफ्त में करना चाहिए  ताकि बाल साहित्य बच्चों के मध्य अधिकाधिक प्रसारित हो ।
 मुख्य अतिथि डॉक्टर प्रकाश बरतूनिया ने ;- तकनीक के अनुसार बाल साहित्य में भी परिवर्तन आवश्यक है लेकिन नैतिक मूल्यों का विकास होना जरूरी है।
वहीं डॉ  उमाशंकर नगाइच ने;- कहा कि बाल साहित्य के प्रमुख हितग्राही बच्चा है तो वह पठन-पाठन करें  लेकिन इस कंपटीशन के दौर में बाल साहित्य पठन-पाठन में बच्चा बिल्कुल समय नहीं दे पा रहा और बहुत महत्वाकांक्षाए, दबाव का शिकार हो रहा है । उसका बचपन खो रहा है, तो यह पीड़ा अगर बाल साहित्य द्वारा  उठकर, वहां तक पहुंचे जहां बच्चों के लिए नीति निर्धारित की जाती है और कुछ इस तरह में सुधार हो सके तो बहुत अच्छा कदम होगा। 
 विशष्ट अतिथि मालती बसंत ने ;- बचपन हमारा गुरु है हमेशा बालमन बनाए रखें हम और बाल मन में जिज्ञासा,  अनुकरण की प्रवृत्ति होती है और वर्तमान में जीता है बचपन इसलिए  तनाव मुक्त और खिलखिलाता रहता है।
 डॉ  अरविंद जैन ,डॉ प्रभा मिश्रा, फराह खान, शोभा ठाकुर , बिंदु त्रिपाठी, अनुपमा अनुश्री , श्यामा गुप्ता दर्शना , आदि प्रमुख  बाल साहित्यकारों ने बाल रचनाओं का पाठ किया और सभी को  बाल मनोभावों से सराबोर कर दिया ।
“मुझसे मत पूछो ,मन के अवशेष कहाँ तक पड़े हुए है, वहाँ- वहां हैं जहाँ कि बच्चे भूखे खड़े हुए है।। प्रभा मिश्र ने  असहाय और लाचार बचपन का एक सत्य चित्र खींच  सभी हृदयों को द्रवित कर दिया।
  बच्चो ,तुम्हीं हो कल के सितारे, युग प्रणेता, वैज्ञानिक । सपने सच होते हैं,  बच्चे जो मेहनत करते हैं।  प्रेरक बाल कविता सुनाई … शोभा ठाकुर ने। 
 बालिका शिक्षा पर एक सुंदर कविता पढ़ी, बिंदु त्रिपाठी ने… अम्मा-  पापा मैं भी शाला जाऊंगी।  पढ़ लिख कर जग में नाम कमाऊंगी।  मेरा नन्हा अवि जब मुस्काता, मुस्कानों से घर भर जाता । जीवन की बगिया में मेरी , सुंदर – सुंदर फूल खिलाता ।।  ऐसी मासूमियत की  अभिव्यक्ति की अपनी बाल रचना में अनुपमा अनुश्री ने।
 किशोर वय के बच्चों को आवश्यक सावधानियों बरतने का निर्देश देते हुए अपनी काव्य रचना में डॉक्टर अरविंद जैन ने पढ़ा ;-ध्यान करो ट्रैफिक नियमों का, गाड़ी अपने बाएं चलाओ। ओवरटेक अगर करना हो, गाड़ी दाएं से ले जाओ।।

लेते हैं जन्म कितने जो इतिहास रचा करते।चाचा नेहरु तुम्हें प्रणामहम बच्चे मिल करें सलाम।।श्यामा गुप्ता ने यह कविता पढ़कर बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू को याद किया।
 कार्यक्रम में विश्व रंग और वनमाली सजन पीठ के संयोजक संजय सिंह राठौर  उपस्थित रहे और उन्होंने  विश्व रंग के आगामी आयोजनों पर प्रकाश डाला ।अंत में आभार प्रदर्शन  बिंदु त्रिपाठी ने किया।

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