दुनिया का धर्म कैसा भी हो मगर मेरा धर्म क्या है यह रामायण सिखाती है- स्वामी आनंदगिरी जी

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देवास। राम वियोगी का जीवन कैसा होना चाहिये, उसका आदर्श भरत ने जगत के समक्ष प्रस्तुत किया। बड़े भाई राम को वन से आयोध्या वापस लाने के लिए भरतजी चतुरंगी सेना एवं परिवार के साथ वन में गये। भरत को सेना के साथ आता देख लक्षमण ने राम की रक्षा के लिए युद्ध की तैयारी कर ली। यह है रामायण जहां एक ओर भरत अपने सारे राजपाट त्यागकर अयोध्या का राजा राम को बनाने के लिए , उन्हें मनाने वन में गए, भाई के प्रति समर्पण और प्रेम यही है कि बडे भाई के होते छोटा भाई कैसे राज करता, जब राम ने आने से मना कर दिया तो उनकी चरण पादुका को सिंहासन पर विराजित कर 14 वर्ष तक भरत ने पर्णकुटी में रहकर अपने भाई की तरह ही तपस्वी जीवन व्यतीत किया और अयोध्या का राज कार्य भी पूरा करवाया। हम अपने धर्म को भूलकर दूसरे धर्म की निंंदा करते हैं। दुनिया का धर्म कैसा भी हो मगर मेरा धर्म क्या है यह रामायण सिखाती है। यह आध्यात्मिक विचार क्षिप्रा तट पर हो रही कथा के आठवें दिन संत श्री आनंद गिरी जी महाराज ने राम भरत मिलन प्रसंग के दौरान व्यक्त करते हुए कहे। भाई का भाई के प्रति प्रेम का करूण वर्णन को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए। जब तक परिवार में मर्यादा के साथ जिम्मेदारियों का पालन नहीं होगा तब तक परिवार एक सूत्र में नहीं बंध सकता, जब तक देश में हर व्यक्ति अपने माता पिता में राम नहीं देेखेगा तब तक मंदिर के निर्माण भाव में विरोधाभास ही रहेगा, भारत वर्ष देवों की भूमि है। इसी कारण मुगलों सहित सभी आक्रामकारी हमारी परम्परा, सभ्यता और संस्कृति को नष्ट नहीं कर सके यह भारत की महिमा है। जिस दिन प्रभु राम चाहेंगे उस दिन हमारे देश के भक्त राम मंदिर का निर्माण कर देंगे। 
कथा में प्रभु श्री राम चित्रकूट से प्रस्थान कर अत्रिऋषि के आश्रम गए जहां माता अनसुईया ने सीता को पतिव्रता स्त्री के गुणों को बताया। प्रभु श्रीराम गोदावरी के तट जो कि वर्तमान में महाराष्ट्र नासिक में है जो राम ने पंचवटी में निवास किया पंचवटी का अर्थ है जहां परमात्मा पांच प्राणों में विराजमान हो। यहां पर राम ने लक्षमण को गीता के उपदेश दिए। 
संसार के अरण्य में भटकने वाले को वासना रूपी शूर्पणखा परेशान करती है। शूर्पण खा अर्थात काम वासना रावण की बहन ने जब लक्षमण से विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्षमण ने उसके नाक कान काट दिये। संत श्री ने कहा कि यहां लक्षमण ने सोचा कि असूरों को ढूंढने का इससे सरल उपाय कोई नहीं हो सकता। कथा प्रसंग में रावण द्वारा सीता का हरण के पश्चात राम लक्षमण द्वारा वन में सीता की खोज करते हुए शबरी से मुलाकात तथा शबरी को नवदा शक्ति का ज्ञान देते हुए भक्त शबरी का उद्धार का मार्मिक वर्णन किया।
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