इंदौर की बसें नहीं… सिस्टम की इज्ज़त लूटने की चलती फिरती फैक्ट्रियां!

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ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी, सेंधवा में हंस ट्रेवल्स और अब राजेंद्र नगर की वर्मा बस—तीन-तीन शर्मनाक हादसे, लेकिन पुलिस और तंत्र की नींद उतनी ही गहरी… जितना बसों में कंडक्टरों का नशा। बेटियाँ डर में जीती हैं, और व्यवस्था अपनी ढीली रीढ़ पर इज्जत का बोझ ढोने का नाटक करती रहती है।

देवेन्द्र मराठा

इंदौर और आसपास के रास्तों पर बसें नहीं दौड़ रहीं—यहां बेशर्मी का धुआँ और प्रशासन की सुस्ती का जहर तैर रहा है। ऑस्ट्रेलियाई महिला खिलाड़ियों के साथ हुए दागदार हादसे से सबक लेना तो दूर, सेंधवा में हंस ट्रेवल्स में हुई छेड़खानी ने फिर बता दिया कि यात्रियों की सुरक्षा यहां किस्मत का खेल है। और जब लगा कि इससे ज्यादा गिरावट क्या होगी—तो वर्मा ट्रेवल्स की बस में एक महिला नेशनल शूटर से बदतमीजी कर राजेंद्र नगर पुलिस की नींद को ही भ्रष्टाचार की शराब में डुबो दिया। तीन हादसे… एक ही सच—यहाँ बसें चलती हैं, सुरक्षा नहीं। कुछ दिन पहले ऑस्ट्रेलिया की महिला क्रिकेटर्स के साथ छेड़खानी कर पूरे देश की नाक कटवा चुके जिम्मेदारों के चेहरे से कालिख अभी निकली भी नहीं थी कि सेंधवा में हंस ट्रेवल्स में महिला से बदतमीजी का मामला सामने आ गया। बजरंग दल ने बस मालिक को थाने उसके ऑफिस बुलाने का अल्टीमेटम दिया, सड़क पर बवाल मचा, लेकिन मालिक? वह तो ऐसे गायब हुआ जैसे कानून उसकी जेब की चाबी से चलता हो। मजाल है, जो वह मौके पर आ जाए—क्योंकि उसे पता है कि किराये की कुर्सियों से चलने वाली व्यवस्था उसके आगे नतमस्तक रहती है। लेकिन असली गिरावट तो राजेंद्र नगर की वर्मा ट्रेवल्स ने दिखाई। थाने से कुछ ही मीटर दूर खड़ी होने वाली बसों में चालक–परिचालक शराब के नशे में यात्रियों को छूने की हिम्मत कर लेते हैं—इससे ज्यादा शर्म क्या होगी? यह वही पुलिस है जो बाहर से पढ़ने आए छात्र का तो वेरिफिकेशन करवा लेती है, लेकिन बसों में घूम रहे आधे नशे में धुत्त ड्राइवर-कंडक्टर कौन हैं, कहाँ से आए हैं—इसका कोई हिसाब ही नहीं। आदेश चाहे कमिश्नर दे दें, गाइडलाइन चाहे रोज निकले—राजेंद्र नगर की पुलिस को तो मानों आंख बंद कर बस हादसे का इंतजार करने की ट्रेनिंग दी गई है। रविवार रात नेशनल शूटर से बदतमीजी हुई—और सोमवार सुबह वही बस पुणे के लिए रवाना भी! सोचिए, कितनी मरी हुई संवेदनाएं चाहिए ऐसे क़दम उठाने के लिए? रातभर दर्जनों महिलाएँ अपने बच्चों के साथ उसी बस में सफर कर रही थीं, लेकिन जिम्मेदारों को होश सुबह की चाय के बाद आती है। नशे में धुत्त स्टाफ को पकड़ने के बजाय वे फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर यह बताने लगते हैं कि “देखो, हमने आरोपी पकड़ लिया”—जैसे अब आरोपी पकड़ने से अपराध हमेशा के लिए बंद हो जाता है। इंदौर से देवास, महू, पीथमपुर तक दौड़ती बसें अगर शराब की मशीन से चेक कर ली जाएँ तो आधे ड्राइवर-कंडक्टर सड़क पर ही उतर जाएँ। पर ऐसा कौन करेगा? क्योंकि यहाँ सबकुछ चलता है—ट्रैफिक से लेकर RTO और RTO से लेकर थानों तक। यह कोई सिस्टम नहीं—यह चलती फिरती ‘शुभ-लाभ’ मशीनरी है, जो सड़क पर बेटियों से ज्यादा नोटों को सुरक्षित रखती है।किताबों में कानून पढ़ाने और भाषण देने से सुरक्षा नहीं मिलती। व्यवस्था उतनी ही जिंदा होती है, जितनी उसकी सजगता होती है। और यहाँ? यहाँ तो पूरा तंत्र जैसे इन बस मालिकों के दरवाज़े पर गिरवी रखा है। याद रखिए—जहाँ जिम्मेदार सो जाएँ, वहाँ अपराधी नहीं… अराजकता राज करती है। बेटियों की सुरक्षा अगर बसों में भी तय नहीं कर पा रहे, तो कुर्सियों पर बैठने का हक़ किसने दिया? लेकिन यह जानता है सब जानती है

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