तुर्किये ने इस बार नहीं अलापा कश्मीर राग तो पाक के पेट में उठा मरोड़; एर्दोगन की चुप्पी के क्या मायने

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तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने साल 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद से पहली बार इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अपने संबंधोन में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। इस साल लगभग 35 मिनट के अपने संबोधन में उन्होंने गाजा की मानवीय स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया, जहां हमास के खिलाफ इजराइल के हमलों में 40 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा 2019 में वापस लिए जाने के बाद एर्दोगन ने हर साल UNGA सत्र में दुनियाभर के नेताओं के सामने कश्मीर का उल्लेख किया था। इस दौरान वह भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ताएं किए जाने का समर्थन भी करते रहे हैं।

इस साल एर्दोगन ने गाजा में फलस्तीनियों की दशा की ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया और संयुक्त राष्ट्र पर आम लोगों की मौतें रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों की ओर इशारा करते हुए कहा, “दुनिया इन पांच से बड़ी है।” उन्होंने कहा, “गाजा बच्चों और महिलाओं की दुनिया की सबसे बड़ी कब्रगाह बना गया है।” उन्होंने अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के प्रमुख देशों समेत पश्चिमी देशों से हत्याएं रोकने का आह्वान किया।
पाक के पेट में मरोड़
एर्दोगन द्वारा कश्मीर का उल्लेख न करने को तुर्किये के रुख में आए स्पष्ट बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। यह ऐसे समय में हुआ है जब तुर्किये भारत की सदस्यता वाले ब्रिक्स समूह में शामिल होने की कोशिश कर रहा है। एर्दोगन के इस कदम पर पाकिस्तान में बड़ी चर्चा छिड़ी है कि आखिर तुर्किए ने ऐसा क्यों कहा और हर बार की तरह इस बार भी कश्मीर का मुद्दा क्यों नहीं उठाया। पाकिस्तान की पूर्व राजनयिक और संयुक्त राष्ट्र में देश की राजदूत रह चुकीं मलीहा लोधी ने तुर्किये के रुख में आए स्पष्ट बदलाव पर टिप्पणी की है। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, “पिछले पांच साल के विपरीत, राष्ट्रपति एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। उन्होंने 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में ऐसा किया था।’

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