शरणागत कांग्रेसियों की भीड़ भाजपा दफ़्तर में लग रही

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सियासी हालात देख हैरान हो रहे अवध बिहारी

भाजपा ने भी बाकायदा आयात डिपार्टमेंट ही खोल दिया

इंदौर, प्रदीप जोशी।
इन दिनों कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने का एक ख़ास दौर चल रहा है। सियासत में ऐसा होता भी है, जब जहाज डूबता है तो ख़ुद को बचाने के रास्ते तलाश किए जाते हैं। ऐसे में जहाज का कप्तान युद्ध समर छोड़ ख़ुद ही देशाटन पर निकला हो तो उसके योद्धा किसके भरोसे पर मैदान में टिके रहेंगे! बहरहाल, बात अब सियासी दलों से भी ऊपर निकल गई। मामला अब अवध बिहारी श्री राम तक आ पहुँचा है जो इन हालातों को देख ख़ासे हैरत में हैं। दशरथनंदन विस्मय से सुमित्रानंदन की ओर देख रहे, मानो पूछ रहे हों, ’अनुज! यह सब चल क्या रहा है? जिसे देखो आहत मन लिए भाजपा की ओर दौड़ लगा रहा है, तुर्रा यह कि राम जी का अपमान सहन न हुआ इसलिए कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं। यह प्रसव जैसी असहनीय पीड़ा अचानक अब क्यों उठी ? ख़ुद जगत का हाल जानने वाले कौशल्यानंदन भी यह बात नहीं समझ पा रहे।’ बहरहाल, बात आने वाले कांग्रेसियों की जिनके मन आहत हुए हैं। राम भक्तों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि बीते कई दशकों में राम मंदिर को लेकर कई संघर्ष हुए, कोर्ट कचहरी हुई, आंदोलन हुए। तब क्या इन नेताओं का मन पत्थर हो गया था जो हर आघात सह गया? अब जब अवधबिहारी अपने भव्यतम महल में विराज गए, तब इनके मन की पीड़ा ज़ाहिर हुई। कारण भी बड़ा दिलचस्प है कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का न्यौता इनके आलाकमान का ठुकराना इन्हें आहत कर गया।

नव नील नीरज सुंदरम
भव्यतम अयोध्या धाम के आँगन में आलोकिक परम धाम की गोद में भव्य शृंगारित मंदिर में विराजे श्री रामचंद्र जी आनंद विभोर हो उठे। अपनी नगरी के सौंदर्य और महल के भव्य स्वरूप को श्रीराम निश्चित रूप से निहार भी रहे होंगे। भारत ही नहीं पूरी दुनिया चकित है तो ऐसे में भक्त वत्सल श्री राघव कैसे मुदित न होंगे। 22 जनवरी से अपने कमल जैसे नयनों से पावनधाम को निहार रहे श्री राजीवलोचन की तंद्रा मार्च में भंग हुई। हैरानी से वे कांग्रेसियों को भाजपा की ओर भागते देख रहे हैं। बिना किसी शर्त नेता भाजपा की सदस्यता ले रहे हैं और भाजपा ने भी इसके लिए अलग डिपार्टमेंट खोल दिया। प्रेम से हर शरणागत को गले लगाना रघुनंदन को प्रिय है। पर भाजपा का इस तरह से दौड़–दौड़ कर कांग्रेसियों को गले लगाना दशरथनंदन को विस्मय में डाले हुए है। उनकी चिंता उस वानर सेना के सम्मान की है जिन्होंने अपने प्रभु की जन्मस्थली के लिए संघर्ष की पराकाष्ठा पार कर दी थी।

राम भक्तों का सम्मान बचाएँ हनुमान
कोई पाँच सौ साल से भी पुराना इतिहास है अयोध्याधाम पर आक्रमण का। बार–बार हमले और हर बार संवरने के किस्सों के बीच बरसों तक कौशल्यानंदन को तंबू में रहना पड़ा। चौदह बरस के वनवास में भी हालात इतने बुरे नहीं थे। कम से कम दुश्मन तो मुकाबले का था और साथी भी क़ाबिल थे। विक्रम संवत् 2080 को पोष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर आधुनिक भारत के हनुमान नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने राघवेंद्र सरकार को भव्य महल में विराजमान कर दिया। जानकीवल्लभ की अपने हनुमान से निश्चित यही अपेक्षा होगी कि इस आपाधापी में कहीं अयोध्याधाम के संघर्ष में शामिल भक्तों और प्राणों का उत्सर्ग करने वाले कार सेवकों के सम्मान को ठेस न लगने पाए।

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