इंदौर में आयोजित किया गया देवर्षि नारद जयंती कार्यक्रम, विगत वर्ष दिवंगत पत्रकारों को दी गई श्रद्धांजलि

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पत्रकारिता को बहुआयामी होना चाहिए- श्री तिवारी

इंदौर। विश्व संवाद केंद्र मालवा, प्रेस क्लब इन्दौर तथा पत्रकारिता विभाग देवी अहिल्या विवि द्वारा देवर्षि नारद जयंती के उपलक्ष्य में बुधवार को एसजीएसआयटीएस के गोल्डन जुबली सभागार में व्याख्यान आयोजित हुआ,
जिसमें मुख्य वक्ता मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी, अध्यक्ष मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर रहे।

सर्वप्रथम मां सरस्वती व देवर्षि नारद जी के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम का आरंभ हुआ। बालक माधव शर्मा ने वैदिक पद्धति से श्री नारद स्त्रोत का पाठन किया।
इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने गत वर्ष में पत्रकारिता जगत के वे स्तंभ जिनका निधन हुआ, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। पद्मश्री अभय छजलानी, डॉ. वेद प्रताप वैदिक, महेन्द्र सेठिया, विमल झांझरी, प्रोफेसर सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, श्रीकृष्ण बेडेकर, दिलीप सिंह ठाकुर, कल्याण सिंह निराला, सुरेन्द्र सिंह पवार व एस एम यूनुस, प्रफुल्ल को श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके संस्मरण सुनाए।


मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर जी ने कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में प्रस्तावना रखते हुए कहा कि नारद जी का संचार का उद्देश्य लोक मंगल था। उन्होंने देव और असुरों के मध्य भी संवाद किया, ताकि समाज को उसका लाभ प्राप्त हो जाए। स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व, पत्रकारिता का उद्देश्य देश की स्वतंत्रता था किंतु अब पत्रकारिता अपने उद्देश्य से दूर होती दिखती है,
मुख्य वक्ता के रूप के उपस्थित मध्यप्रदेश के सूचना आयुक्त और वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहत तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि पत्रकारों का उद्देश्य मात्र समाचारों का प्रेषण करना नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण इतिहास को जानना है। श्री तिवारी ने उदाहरण देते हुए कहा कि भोजशाला का जब विवाद चल रहा था, तब उस विषय को कवरेज करने वाले पत्रकारों को भी भोजशाला के इतिहास के विषय में पता नहीं था, वे केवल कवरेज के बारे में ही सोच रहे थे, यह ऐसा कार्य है कि आप दिन भर खुदाई करें और आपको कुछ भी प्राप्त न हो।
श्री तिवारी ने आगे कहा कि जब अंग्रेज़ देश में शोषण कर रहे थे, तब सामान्य भारतीयों ने अपनी क्षमता के अनुसार अनेक समाचार पत्र प्रारंभ किए, आज पत्रकारिता को भारत के मूल्यों के संरक्षण के लिए कार्य करना होगा।
पुराने समय में पत्रकारों ने विषम परिस्थितियों में भी भारत की संस्कृति का व्यापक प्रचार–प्रसार सीमित संसाधनों के बावजूद किया परंतु आज की संसाधनों से भरपूर मीडिया का रोल अत्यंत संकुचित हो गया है।
टीवी बहस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती है।
संस्कृति को क्यों बचाना है? पाकिस्तान का भूगोल तो वही है पर वहाँ भारत की संस्कृति कितनी कम हुई हमें यह समझना है। हमारे जिस भूभाग में एक भी भारतीय कम हुआ तो वहाँ उतनी ही भारत की संस्कृति कम हो जाती है।
सच तो यह है कि हम भारत के खण्डित हो जाने के पश्चात आज बचे खुचे भारत में उस विखण्डन के दुर्भाग्य को ढो रहे हैं। अPपने पूर्वजों की संस्कारों की पूंजी को बचाना हमारा धर्म है, इसे रक्षित कर इसे अगली पीढ़ी को सौंपना है।
साथ ही, पत्रकारों को पूरे देश का भ्रमण करना चाहिए, ऐतिहासिक इमारतें बोलती हैं, यही से आपका उद्देश्य स्पष्ट होगा। पत्रकारिता अब बहु आयामी होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम अपने 108 उपनिषदों मे कुछ और जोड़ तो नहीं सकते परंतु उनको संरक्षित कर सकते हैं तथा आगे की पीढ़ी को सौंप सकते हैं।


उन्होंने ध्यान कराया कि विगत हज़ार वर्ष हमारी गुलामी के 1000 वर्ष नही वरन हमारे संगठित संघर्ष का गौरवशाली  इतिहास है। पत्रकारिता को भारत की संस्कृति को बचाने का हर संभव उपक्रम करना आज की आवश्यकता है।
परिसंवाद में नईदुनिया के प्रान्त संपादक ईश्वर शर्मा ने श्रोताओं के मन में उमड़ते प्रश्न मुख्य वक्ता के सम्मुख रखे।
विश्व संवाद केन्द्र के अध्यक्ष श्री दिनेश गुप्ता ने आभार प्रकट किया व कार्यक्रम का संचालन मातृभाषा उन्नयन संस्थान के डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने किया।
कार्यक्रम मे इन्दौर के पत्रकार , साहित्यकार, विद्यार्थी  तथा प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित रहे।

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