साहित्य में विशेषज्ञता की चर्चा की जाना जरूरी है- डॉ. दवे

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पुस्तक विमोचन एवं व्यंग्य विमर्श सम्पन्न

इन्दौर। किसी भी साहित्य का लेखक ही उस विषय का विशेषज्ञ होता है और समालोचना का कार्य भी वह स्वयं अधिक कुशलता और सब क्षमता के साथ कर सकता है। यदि व्यंग्यकार स्वयं ही व्यंग्य रचनाओं की समालोचना करे तो वह समालोचना उसकी उस विषय की विशेषज्ञता के साथ सामने आती है और वह उस विषय पर न्याय पूर्ण तरीके से प्रस्तुत होती है । विशेषज्ञ होने की क्षमता ईश्वर ने सभी को प्रदान नहीं की है, इसलिए साहित्य में विशेषज्ञता पर चर्चा होना जरूरी है।” उपरोक्त विचार साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे के द्वारा नगर की साहित्यिक संस्था ‘क्षितिज’ के द्वारा आयोजित श्री अश्विनी कुमार दुबे के व्यंग्य संग्रह ‘इधर होना एक महापुरुष’ पर चर्चा संगोष्ठी में व्यक्त किए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री सूर्यकांत नागर ने कहा कि,” लेखन का उद्देश्य की समाज कल्याण के लिए लिखना होता है और उसमें करुणा का स्वर आना जरूरी होता है। यदि कोई लेखक अपने लेखन में समाज की बात करता है तो यह उसका श्रेष्ठ प्रतिमान होता है। लेखक किस तरह सोचता है ,किस तरह प्रयोग करता है और किस तरह लिखता है, यह किसी भी विधा के लेखन में बड़ा महत्वपूर्ण होता है और जब वह समाज से जुड़कर लिखता है तो उसका लेखन महत्वपूर्ण हो जाता है। लेखक की प्रतिबद्धता किसके साथ है यह देखा जाना बड़ा महत्वपूर्ण है।”
साहित्यकार श्री महेश दुबे ने अपने उद्बोधन में कहा कि,” इन व्यंग्य रचनाओं में श्री दुबे की व्यंजनात्मक कुशलता का परिचय मिलता है ।कई आलेखों में उन्होंने साहित्य को राजनीति और राजनीति में साहित्य पर विमर्श किया है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में लोकतंत्र की बढ़ती आयु के साथ उसमें साहित्य कला और भाषा के सरोकार निरंतर घटते जा रहे हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि एक समर्थ साहित्यकार कही गई कथा को पुनर्नवा करते हुए अपनी शैली और अपने कथ्य में उसको उत्सर्जित करता है। अश्विनी जी के यह व्यंग्य आलेख पाठकों को रास्ते की तलाश की यात्रा में शामिल होने का आमंत्रण देते हैं। इनमें शब्दों और विचारों का चमत्कार पूर्ण प्रयोग है ।”
पुस्तक पर समीक्षा करते हुए कथाकार गरिमा संजय दुबे ने कहा कि,” व्यंग्य विधा की सबसे बड़ी जरूरत एक ऐसी दृष्टि है, जो उजले में भी काले को ढूंढ सके दिखा सके, यह अनाज बीनने जैसी कुशलता है कि पूरे अनाज में से कंकर निकाल कर उसे बताया जा सके, तो वस्तुतः व्यंग्य एक परिष्कार, साफ सुथरा करने की विधा है, अनाज को फटक कर, बीन कर उसे शुद्ध करने जैसा एक प्रयास। व्यंग्यकार यही तो करता है, विशाल जन समुदाय, मुद्दों, प्रवृतियों के विसंगतियों रूपी कंकर को निकालने का कार्य।”
पुस्तक पर प्रारंभिक व्याख्यान देते हुए अमृत दर्पण भोपाल के संपादक श्री चंद्रभान राही  ने कहा कि,” कोई भी रचनाकार निरंतर लेखन के द्वारा स्वयं को रचनाकार के रूप में स्थापित करने के प्रयास में लगा रहता है और निरंतर लेखन ही उसे उस स्थान पर स्थापित करता है, जिसका वह हकदार होता है ।श्री अश्विनी कुमार दुबे न सिर्फ व्यंग्य लेखन अपितु निरंतर कहानी और उपन्यास का लेखन कर रहे हैं और एक सशक्त कथाकार के रूप में उनका नाम चर्चा में है।”
प्रारंभ में संस्था अध्यक्ष सतीश राठी द्वारा संस्था का परिचय दिया गया ।अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए तथा श्री विकास दवे का सारस्वत सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन सीमा व्यास ने किया एवं आभार प्रदर्शन विजया त्रिवेदी के द्वारा किया गया।

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