राष्टपिता गांधी जी का स्थान हथियाने का प्रयास।

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राष्टपिता गांधी जी का स्थान हथियाने का प्रयास।

पता ही नहीं चला श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का स्थान ले लिया या यूं कहें की यह स्वीकार्यता किसने दी वाकिया कुछ ऐसा है क़ी धार जिले के मनावर तहसील मैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के प्रतिमा पर विगत कई दिनों से श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर लगा कर माला पहनाई गई है जब युवा कांग्रेस के लोकसभा अध्यक्ष श्री राधेश्याम मुवेल ने एक कार्यक्रम के तहत गांधीजी चौराहे पर कार्यक्रम किया तो वहां पर गांधी जी के समकक्ष श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर लगी हुई थी जिस पर माला भी पहनाई हुई थी।
श्रो मुवेल ने कहा हमे श्याम प्रसाद जी से किसी भी प्रकार से कोई आपत्ति नही है लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के साथ मुखर्जी की तस्वीर लगाने का क्या औचित्य है या इसके क्या मायने समझे यह समझ से परे है तस्वीर हटाने की शिकायत SDM मनावर को ,एवं कलेक्टर धार को भी की गयी लेकिन ये अधिकारी भी सायद रास्ट्र पिता महात्मा गांधी के महत्व को भूल गए यह तो सभी जानते हैं की महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया जाता है,लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि उन्हें यह उपाधि किसने दी थी? महात्मा गांधी को पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था। 4 जून 1944 को सिंगापुर रेडिया से एक संदेश प्रसारित करते हुए ‘राष्ट्रपिता’ महात्मा गांधी कहा था।
बताया जाता है कि नेताजी और महात्मा गांधी एक-दूसरे का भरपूर सम्मान करते थे, लेकिन इसके साथ दोनों के बीच कुछ मुद्दों को लेकर मतभेद भी थे।बताया जाता है कि नेता जी महात्मा गांधी के इस विचार से सहमत नहीं थे कि अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही स्वतंत्रता पाई जा सकती है।नेताजी का मानना था कि अहिंसा एक विचारधारा हो सकती है, लेकिन इसका किसी पंथ की तरह पालन नहीं किया जा सकता है।नेताजी का मानना था कि राष्ट्रीय आंदोलन को हिंसा मुक्त होना ही चाहिए, लेकिन जरूरत पड़ने पर हथियार उठाने से पीछे नहीं हटा जा सकता है। वहीं इसके उलट महात्मा गांधी का मानना था कि अहिंसा ही देश को स्वतंत्र कराने का एकमात्र रास्ता है।महात्मा गांधी कई अहिंसा आंदोलनों से अंग्रेजों को कई मोर्चों पर झुका चुके थे।

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