अच्छा मित्र और अच्छा चित्र ही अच्छा चरित्र निर्माण कर सकता है

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अच्छा मित्र और अच्छा चित्र ही अच्छा चरित्र निर्माण कर सकता है
मोबाईल का कैसे नहीं कैसा उपयोग करना ही मोबाईल प्रदत्त विकृ ति मिटा सकता है- जैनाचार्य श्री रत्नसुंदरसुरि
देवास। यदि हमारी जिद है कि हम सर्वप्रिय, लोकप्रिय एवं प्रभु प्रिय बने साथ ही पर्याप्त संपत्ति, जबरदस्त बुद्धि और हर क्षेत्र में सफलता मिले, इसके लिए हमें 6 उपाय करने होंगे। ये हैं अच्छे मित्र और अच्छा चित्र खोजना होगा। प्रेम और परोपकार को पाना होगा, पवित्रता एवं प्रसन्नता जिसमें भी मिले उसका हाथ सदा के लिए थामना होगा। अच्छा मित्र और अच्छा चित्र आपके अच्छे चरित्र का निर्माण करेगा। प्रेम और परोपकार तो परमात्मा बनने का श्रेष्ठतम तरीका है। पवित्रता और प्रसन्नता जिसमें भी है उसे आदर्श बनाकर उसकी राह पर चलना ही मानव जीवन की सर्वमान्य उपलब्धि है। मित्र पाँच प्रकार के होते है, ताली मित्र, प्याली मित्र, थाली मित्र, खाली मित्र और माली मित्र । हमें माली मित्र चुनना होगा जिस प्रकार से माली उपवन के पौधे की छटनी कर उसे संवारता है वैसे ही यह मित्र हमारे जीवन की बुराईयों को समाप्त कर उसे संवारता है। जीवन में किन चित्रों को देखना और सहेजना यही चुनाव हमारे जीवन के चलचित्र को निर्धारित करेंगे। मोबाइल को कैसे उपयोग करना यह मालूम है, लेकिन मोबाईल का कैसा उपयोग करना यह ज्ञान नहीं है। यही मोबाईल फोन से आई विकृति का मुख्य कारण है। सात दिवसीय प्रवचन श्रृंखला केे समापन सत्र में आज यह बात जैनाचार्य श्री रत्नसुंदर सुरीश्वरजी म.सा. ने कही। प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि इस अवसर पर बड़ी संख्या में सर्वसमाज के समाजजन एवं विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक एवं व्यापरिक संगठन के पदाधिकारी उपस्थित थे। साथ ही देवास के सभी सरस्वती शिशु मंदिर के विद्यार्थी, शिक्षक एवं अभिभावक भी विशाल संख्या में प्रवचन श्रवण हेतु मौजूद थे। पूज्यश्री ने कहा कि आज की शिक्षा प्रणाली विकृत हो गई है इसमें प्रेम, जीवन में आने वाले संघर्षो से मुकाबले की तैयारी एवं व्यक्ति को नैतिक ऊंचाई प्रदान करने वाला कोई ज्ञान नहीं है। छात्र परीक्षा की जिंदगी तो पास कर लेता है लेकिन जिंदगी की परीक्षा में फेल हो जाता है। युवा वर्ग से कहना चाहता हूँ अच्छा चित्र और मित्र आपको अच्छा चरित्र देगा, प्रेम और परोपकार आपको नैतिक ऊंचाईयां देगा, पवित्रता और प्रसन्नता धारण कर आप प्रभु का सामिप्य प्राप्त  कर लोगे। जीवन में अहंकार और ईष्र्या की समाप्ति ही प्रसन्न एवं उन्मुक्त जीवन का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। हमारी भारतीय संस्कृति की शिक्षण प्रणाली चार अनुकरणीय विशेषताओं से परिपूर्ण है। वर्तमान में भी इसका पालन आवश्यक है। ये हैं गर्भ संस्कार, गृह संस्कार, वर्ग संस्कार और कर्म संस्कार। गर्भ संस्कार शिशु को गर्भ से ही प्रदान किए जाते हैं। जैसे अभिमन्यु ने प्राप्त किए थे। हमारी संतान वह नहीं करेगी जो हम कहेंगे, वरन वही करेगी जो हम करेंगे। शुभ संस्कार घर से ही प्रदान किए जा सकते हैं। स्कूल कॉलेज में शिक्षकों द्वारा वही वर्ग संस्कार दिए जाना चाहिये जो व्यक्ति के कैरियर के साथ केरेक्टर का भी उत्थान करे। इन तीनों संस्कार के बाद व्यक्ति निश्चित रूप से शोभनीय एवं प्रशंसनीय कर्म ही करेगा।
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