हमारे सीमित जीवन से असीमित प्राप्त करने की उम्मीद ही दुखों का कारण है- जैनाचार्य रत्नसुंदर सूरीश्वरजी महाराज।

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देवास। संसार का हर व्यक्ति चाहता है कि मेरा जीवन नंदन वन बन जाए, जंगल वन नहीं बने । लेकिन इसकी तैयार खुमारी है क्या आपके पास ? जिस प्रकार एक डॉक्टर आपके शरीर को चेक करके बता देता है कि आपको इतनी गंभीर बीमारी है और उसे दूर करने के लिए इतना चेेलेंज परहेज एवं उपचार करना पड़ेगा। वहां हम तैयार हो जाते है और शारीरिक बीमारी पर काबू भी पा लेते हैं। लेकिन आपका मन भी अनेक गंभीर बीमारियों से पीडि़त और त्रस्त है। क्या आपने अपने मन एवं जीवन को चेक किया कि वो इतना बीमार और अस्वस्थ क्यों है। समस्या तो भगवान महावीर एवं राम के जीवन में भी थी लेकिन उन्होने गुरू तथा धर्म की शरण लेकर उन सभी समस्याओं से पार पा लिया। मैं दावे के साथ कहना चाहता हूँ कि हो सकता है कि आपके शरीर की किसी गंभीर बीमारी का इलाज दुनिया के किसी भी डॉक्टर के पास ना हो लेकिन आपका मन एवं जीवन कितना भी गंभीर बीमार,अशांत एवं दुखी क्यों न हो। यदि आपकी उसे प्रभु एवं गुरू की मदद से ठीक करने की तैयारी है तो सौ प्रतिशत वह बीमार मन ठीक हो सकता है। इसके लिए हमें जीवन में चार कदम उठाने होंगे। पहला चेक, दूसरा चेंज, तीसरा चेलेंज, चौथा चेरिटी नेचर। विशाल धर्मसभा को उपदेशित करते हुए आठ दिवसीय प्रवचन माला के तृतीय दिवस जीवन एक नंदन वन विषय की व्याख्या करते हुए यह बात जैनाचार्य श्री रत्नसुंदर सुरीश्वरजी म.सा. ने कही। आपने कहा कि हमें स्वयं को चेक करना होगा कि परिस्थिति अनुसार हम प्रिंसिपल या सिद्धांत तो नहीं बदल रहे हैं। दिन भर के 24 घंटे हमारी कोई एक स्थाई पहचान है या नहीं। हर साधु के पास एक जैसे गुण नहीं होते लेकिन उनकी साधुता पहचान पक्की है। ऐसी ही हमारी कोई पहचान है क्या। हम सदैव हमारी तुलना हमसे उच्च स्थान वाले से करते हैं और हमारे मन की प्रसन्नता को खो देते हैं। आपने कभी अपने मन की मस्ती, प्रसन्नता एवं स्वस्थता चेक करने का प्रयास किया है कि वो कहां चली गई? रिचनेस ओर हैप्पीनेस में कोई संबंध नहीं है। रिच व्यक्ति हैप्पी होगा यह कतई आवश्यक नहीं है। फिर क्यों हम हमारे मन की सुख शांति को तिलांजलि देकर घोर महत्वाकांक्षी बनते हुए गाड़ी के पीछे भागने वाले कुत्ते के समान बन गए हैं। वह कुत्ता कभी गाड़ी को पार नहीं कर सकता है यह हम भली प्रकार जानते हैं। फिर हमारे सीमित जीवन से हम क्यों असीमित प्राप्त करने की उम्मीद रखते हैं। यदि ऐसा जीवन हमें बदलना है तो चैलेंज स्वीकार करना पड़ेगा, यह कठिन जरूर है लेकिन असंभव कदापि नहीं। जिस प्रकार शरीर की बीमारी ठीक करने के लिए कोई भी चेलेंंज स्वीकार कर लेते हैं उसी प्रकार मन की बीमारी दूर करने के लिए भी चेलेंज स्वीकार करना ही पड़ेगा। हमें कभी हमारे जीवन के गिरते स्तर को देखकर पीड़ा ही नहीं होती, पश्चाताप के खून के आंसू नहीं टपकते । इसीलिए हम चेलेंज के रूप में प्रभु एवं गुरू के द्वारा सुझाए सद्मार्ग पर चलने का प्रयास ही नहीं करते। यदि हम हमारे मन को मनमानी नहीं करने देना चाहते हैं तो निश्चित रूप से गुरू शरण हमारे जीवन को स्वस्थ बनाकर ही छोड़ेगी। पूज्यश्री ने कहा कि मैं यहां राष्ट्र, शहर, समाज या परिवार को परिवर्तित करने नहीं आया हूँ। मैं तो सिर्फ व्यक्ति को परिवर्तित कर सुधारना चाहता हूँ। समाज तो स्वत: ही सुधर जाएगा। व्यक्ति का अपने स्वयं पर शासन चल पाए यही मेरे प्रवचन का सद्परिणाम है। इन जीवन सुधार के बाद चेरिटी नेचर याने दान युक्त स्वभाव विकसित करना होगा। दान सिर्फ धन का नहीं शुभ कार्यो में समय, सद्ज्ञान एवं शुभ भावों का दान भी महादान होता है। ये ही चार मार्ग हमारे जीवन को नंदन वन बनाने के श्रेष्ठ मार्ग हैं। यदि आप अप्रिय नहीं लोकप्रिय बनना चाहते हो तो अपने तीन स्वभावों में चेंज करना होगा। पहला शिकायत स्वभाव, दूसरा क्रोध स्वभाव, तीसरा तुलनात्मक स्वभाव। जीवन में से शिकायत,क्रोध एवं दूसरों से तुलना करने के हमारे स्वभाव में परिवर्तन कर हम निश्चित रूप से हमारे जीवन को नंदनवन बना सकते हैं।
धर्मसभा के दौरान महापौर सुभाष शर्मा ने पूज्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। दोपहर में माईजेनिज्म स्कूल के बच्चों की ज्ञान पाठशाला का आयोजन पूज्यश्री के सानिध्य में हुआ।
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