राष्ट्र संत पद्मभूषण जैनाचार्य श्री रत्नसुंदर सुरीश्वरजी एवं अनुयोगाचार्य वीररत्न विजयजी का 45 साधु, साध्वी सहित हुआ भव्य नगर प्रवेश।

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राष्ट्र संत पद्मभूषण जैनाचार्य श्री रत्नसुंदर सुरीश्वरजी एवं अनुयोगाचार्य वीररत्न विजयजी का 45 साधु साध्वी सहित हुआ भव्य नगर प्रवेश
अधिकार न होकर भी प्राप्ति की उत्कंठा वही रावण, अधिकार होते हुए भी त्याग की अभिलाषा वही राम – रत्नसुंदर सुरीश्वरजी
देवास। श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ मंदिर पर राष्ट्र संत, पद्मभूषण विभूषित, राज प्रतिबोधक, सरस्वती लब्ध प्रसाद, गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड से सम्मानित, 338 पुस्तकों के लेखक पूज्य जैनाचार्य श्री रत्नसुंदर सुरीश्वरजी एवं पूज्य अनुयोगाचार्य श्री वीररत्न विजयजी म.सा. तथा 45 साधु साध्वी भगवंतों का पदार्पण हुआ। इस अवसर पर पूज्यश्री की नगर प्रवेश की भव्य शोभा यात्रा निकाली गई जिसमें बड़ी संख्या में गुरू भक्त उपस्थित थे। जैन समाज के सभी पुरूष एवं महिला मण्डलों ने अपने मण्डल की वेशभूषा धारण की जो कि आकर्षण का केन्द्र बनी हुई थी। भजनों की धुन पर भक्तों ने झूमते, नाचते, गाते हुए उत्साहपूर्वक गुरू भक्ति की। महिलाएं कतारबद्ध होकर मस्तक पर कलश धारण कर चल रही थी। देवास विधायक गायत्री राजे पवार ने अगवानी उद्बोधन दिया। इस अवसर पर नगर के सभी धार्मिक, सामाजिक, व्यापारिक एवं राजनैतिक संगठन के प्रतिनिधि उपस्थित थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक एवं पदाधिकारी बड़ी संख्या में मौजूद थे। पूज्यश्री को कामली अर्पण मांगीलाल छगनीराम जैन परिवार एवं गुरू पूजन हुकुमचंद अमरचंद जैन परिवार द्वारा किया गया। स्वामिवात्सल्य का लाभ प्रतापमल जावंतराज भण्डारी फाईल्स एवं नवकारशी का लाभ कैलाश कुमार इंदरमल जैन भोमियाजी द्वारा लिया गया।
 श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ मंदिर से शोभा यात्रा प्रारंभ हुई जो कि श्री आदेश्वर मंदिर होकर जेल रोड स्थित प्रवचन स्थल पर धर्मसभा के रूप में परिवर्तित हुई। राम वही आराम विषय पर विशाल धर्मसभा को उपदेशित करते हुए पूज्यश्री ने कहा कि अधिकार क्षेत्र में ना होने के बावजदू सीता प्राप्ति की उत्कंठा हो वही रावण है। जबकि अधिकार होते हुए भी राजगद्दी के त्याग का पराक्रम हो वही राम है। राम के पास जाकर यह मांगना है कि आप वंदनीय, प्रशंसनीय ही नहीं अनुकरणीय भी हो। आप जैसा पराक्रम शायद मुझमें न हो लेकिन आपके अधिकार त्याग के मार्ग पर चलना शुरू कर सकूं यह शक्ति अवश्य प्रदान करना। तो ही हम राम की पसंदगी वाले भक्त बन सकेंगे। आपने कहा कि राम के जीवन में चार सौंदर्य के दर्शन होते हैं ये हैं कर्म सौदर्य, वचन सौंदर्य, विचार सौंदर्य एवं गुण सौंदर्य। राम का त्यागमय जीवन ही उनका कर्म सौंदर्य है। अधिकार प्राप्ति के लिए जो बबाल नही करता वही महाविजेता है। हमें भी छोटी छोटी बातों के अधिकार को त्यागकर कर्म सौंदर्य को निखारना होगा। यही राम मार्ग है। वचन सौंदर्य से परिलब्ध राम की 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या वापसी पर उन्होंने कहा कि यदि भरत के मन में जरा भी संक्लेष होगा तो मैं राजगद्दी पर नहीं बैठुंगा। राम ने कभी अपने वचनों में विकृति नहीं आने दी। यही राम प्रदत्त शिक्षा हमें ग्रहण करना होगी तो ही हमारे अंदर राम का प्रार्दुभाव हो सकेगा। हम स्वयं हमारे शरीर एवं दूसरों को जो वस्तु देते हैं वह अपशिष्ट या नाशवान हो सकती है, लेकिन शब्द ही ऐसी वस्तु है जो अच्छे रूप में स्वयं या किसी को भी देंगे तो कई गुना अच्छे रूप में हमें पुन: प्राप्त होगी। राम के पास विचार एवं मन के सौंदर्य का भरपूर भंडार था। आपने जीवन में विचार एवं मन से भी किसी का अनिष्ट नहीं चाहा यही राम का दिल जीतने वाला राजमार्ग है। उत्कृष्ट गुण सौंदर्य से भी राम प्रकृष्ट रूप से भरपूर थे। 14 वर्ष वनवास के बाद राम सबसे पहले कैकई के चरणों में जाकर झुके। कैकई की आखों में पश्चाताप के आंसू देखकर उन्होंने कहा कि मंै आपका उपकार कभी नहीं भुला पाउंगा। क्योंकि कौशल्या ने तो मुझे राम के रूप में जन्म दिया है। लेकिन राम का जीवन संवार कर उसे रामचंद्र आपने ही बनाया है। यही राम का गुण मार्ग है। यदि हमें राम पसंद है तो राम के जीवन के ये चार सौदर्य अपने जीवन में उतारकर हम भी राम बन सकतेे हैं।
इस अवसर पर दुर्गेश अग्रवाल, कल्पक गांधी, नरेश भंडारी, राजेन्द्र मूंदड़ा, राधेश्याम सोनी, शशिकांत यादव, संतोष विजयवर्गीय, प्रेम चौधरी, द्वारका मंत्री, विलास चौधरी, अशोक जैन मामा, शैलेन्द्र चौधरी, दीपक जैन, भरत चौधरी, सत्यनारायण वर्मा, बसंत चौरसिया, पूर्व महापौर रेखा वर्मा, दिनेश भूतड़ा पप्पी, अशोक सोमानी, देवकृष्ण व्यास, शीतल गेहलोत आदि सहित बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।
आगामी आयोजन
प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि पूज्यश्री के आठ दिनों तक प्रतिदिन प्रेरक प्रवचनमाला प्रात: 9.15 से 10.30 तक चलेगी। आज महाभारत का मनोमंथन विषय पर प्रवचन होंगे।
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