ग़ज़ल की दुनिया का मुकम्मल शेर है अज़ीज़ अंसारी

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*ग़ज़ल की दुनिया का मुकम्मल शेर है अज़ीज़ अंसारी*

—- डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’

जैसा नाम वैसा ही स्वभाव, वैसी ही आत्मीयता, वैसा ही निश्छल स्नेह, वैसी ही शांति और सरलता की प्रतिमूर्ति और सबसे बड़ी बात तो यह की ग़ज़ल के मायने जब वो समझाते है तो लगता है खुद ग़ज़ल बोल रही है कि मुझे इस मीटर में, इस बहर में, इस रदीफ़ और इस काफिये के साथ लिखो।
हम बात कर रहे है इंदौर के खान बहादूर कम्पाउंड में रहने वाले अज़ीज़ अंसारी साहब की जो वर्ष २००२ की मार्च में आकाशवाणी इंदौर से केंद्र निदेशक के दायित्व से सेवानिवृत हुए हैं पर उसके बाद भी अनथक, अनवरत और अबाध गति से साहित्य साधना में रत हैं। हिंदी-उर्दू की महफ़िल और अदब की एक शाम कहूँ यदि अंसारी जी को तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लगभग १० से अधिक किताब और सैकड़ों सम्मान जिनके खाते में हो, कई वामन तो कई विराट कद को सहज स्वीकार करते, नवाचार के पक्षधर, अनम्य को सिरे से ख़ारिज करने के उपरांत हर दिन होते नव प्रयोगों को सार्थकता से अपनी ग़ज़ल, अपनी जबान और अपने लहजे में उसी तरह शामिल करते हैं जैसे पानी में नमक या शक्कर।
७ मार्च १९४२ को मालवा की धरती इंदौर में पिता श्री ईदू अंसारी जी के घर जन्मे अज़ीज़ अंसारी जी वैसे तो एमएससी (कृषि), डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन एन्ड रूरल जर्नलिस्म तक अध्ययन कर चुके हैं और बचपन से उर्दू-हिन्दी साहित्य में रूचि रखते हैं। सन १९६४ से साहित्य की जमीन पर गोष्ठियों के माध्यम से सक्रियता की इबारत रच रहे हैं। जहाँ साहित्य के झंडाबरदार साहित्य के गलीचे को जनता के पांव के नीचे से खसकाने वाले बन रहे है और अस्ताचल की तरफ बढ़वाना चाह रहे है पर ऐसे ही दौर में अंसारी जी नए जोश और उमंग के साथ नवाचार का स्वागत करते हैं।
साफगोई और किस्सों की एक किताब जो बच्चों को भी उसी ढंग से हौसला देते हैं जैसे तजुर्बेदारों या कहूँ विधा के झंडाबरदारों को टोकते हैं उनकी गलती पर।
बात जब हाइकु की हुई तो अंसारी जी कहते है कि ‘सलासी’ जानते हो? उर्दू में सलासी भी तीन लाइन में लिखे शेर हैं जिसमें रदीफ़ भी होता है और काफिया भी मिलता है। बहुत से किस्से और कहानियों के बीच हिन्दी के उत्थान की बात आई तो पेट की भाषा बनाने के लिए उनकी भी चिंता साथ मिल गई। और यही कहा की साथ हूँ, जब चाहो, जैसे चाहो बताना जरूर। एक स्कूल में जगह है अपने पास चाहो तो यहाँ भी कुछ संचालित कर सकते हो।
शहर की साहित्यिक जमात में अदावत का एक नाम जो इसलिए भी मशहूर है क्योंकि आकाशवाणी पर कई रचनाकारों को मंच देकर तराशा भी और हीरा भी बनाया। आपके सुपुत्र सईद अंसारी जी जो वर्तमान में आजतक के मशहूर न्यूज एंकर है। इन सब के अतिरिक्त अंसारी जी के पास सैकड़ों किस्से हैं, जिनमे शामिल है शहर की विरासत और ग़ज़ल की बज्म।
बहर और मीटर में अपनी बात कहने वाले अज़ीज़ अंसारी जी जीवन में भी मीटर में ही रहते हुए मुकम्मल शेर बनकर जिंदगी की ग़ज़ल गुनगुना रहे हैं।
*डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं स्तंभकार
संपर्क: ०७०६७४५५४५५
अणुडाक: arpan455@gmail.com
अंतरताना:www.arpanjain.com
[लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान,भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।]

*ग़ज़ल की दुनिया का मुकम्मल शेर है अज़ीज़ अंसारी*

—- डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’

जैसा नाम वैसा ही स्वभाव, वैसी ही आत्मीयता, वैसा ही निश्छल स्नेह, वैसी ही शांति और सरलता की प्रतिमूर्ति और सबसे बड़ी बात तो यह की ग़ज़ल के मायने जब वो समझाते है तो लगता है खुद ग़ज़ल बोल रही है कि मुझे इस मीटर में, इस बहर में, इस रदीफ़ और इस काफिये के साथ लिखो।
हम बात कर रहे है इंदौर के खान बहादूर कम्पाउंड में रहने वाले अज़ीज़ अंसारी साहब की जो वर्ष २००२ की मार्च में आकाशवाणी इंदौर से केंद्र निदेशक के दायित्व से सेवानिवृत हुए हैं पर उसके बाद भी अनथक, अनवरत और अबाध गति से साहित्य साधना में रत हैं। हिंदी-उर्दू की महफ़िल और अदब की एक शाम कहूँ यदि अंसारी जी को तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लगभग १० से अधिक किताब और सैकड़ों सम्मान जिनके खाते में हो, कई वामन तो कई विराट कद को सहज स्वीकार करते, नवाचार के पक्षधर, अनम्य को सिरे से ख़ारिज करने के उपरांत हर दिन होते नव प्रयोगों को सार्थकता से अपनी ग़ज़ल, अपनी जबान और अपने लहजे में उसी तरह शामिल करते हैं जैसे पानी में नमक या शक्कर।
७ मार्च १९४२ को मालवा की धरती इंदौर में पिता श्री ईदू अंसारी जी के घर जन्मे अज़ीज़ अंसारी जी वैसे तो एमएससी (कृषि), डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन एन्ड रूरल जर्नलिस्म तक अध्ययन कर चुके हैं और बचपन से उर्दू-हिन्दी साहित्य में रूचि रखते हैं। सन १९६४ से साहित्य की जमीन पर गोष्ठियों के माध्यम से सक्रियता की इबारत रच रहे हैं। जहाँ साहित्य के झंडाबरदार साहित्य के गलीचे को जनता के पांव के नीचे से खसकाने वाले बन रहे है और अस्ताचल की तरफ बढ़वाना चाह रहे है पर ऐसे ही दौर में अंसारी जी नए जोश और उमंग के साथ नवाचार का स्वागत करते हैं।
साफगोई और किस्सों की एक किताब जो बच्चों को भी उसी ढंग से हौसला देते हैं जैसे तजुर्बेदारों या कहूँ विधा के झंडाबरदारों को टोकते हैं उनकी गलती पर।
बात जब हाइकु की हुई तो अंसारी जी कहते है कि ‘सलासी’ जानते हो? उर्दू में सलासी भी तीन लाइन में लिखे शेर हैं जिसमें रदीफ़ भी होता है और काफिया भी मिलता है। बहुत से किस्से और कहानियों के बीच हिन्दी के उत्थान की बात आई तो पेट की भाषा बनाने के लिए उनकी भी चिंता साथ मिल गई। और यही कहा की साथ हूँ, जब चाहो, जैसे चाहो बताना जरूर। एक स्कूल में जगह है अपने पास चाहो तो यहाँ भी कुछ संचालित कर सकते हो।
मुझे अंसारी जी से मिलवाया है मेरे अजीज़ मित्र किशोर सिंह भाई जी ने, अंसारी जी एक ऐसी शख्सियत और शहर की साहित्यिक जमात में अदावत का एक नाम जो इसलिए भी मशहूर है क्योंकि आकाशवाणी पर कई रचनाकारों को मंच देकर तराशा भी और हीरा भी बनाया। आपके सुपुत्र सईद अंसारी जी जो वर्तमान में आजतक के मशहूर न्यूज एंकर है। इन सब के अतिरिक्त अंसारी जी के पास सैकड़ों किस्से हैं, जिनमे शामिल है शहर की विरासत और ग़ज़ल की बज्म।
बहर और मीटर में अपनी बात कहने वाले अज़ीज़ अंसारी जी जीवन में भी मीटर में ही रहते हुए मुकम्मल शेर बनकर जिंदगी की ग़ज़ल गुनगुना रहे हैं।
*डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं स्तंभकार
संपर्क: ०७०६७४५५४५५
अणुडाक: arpan455@gmail.com
अंतरताना:www.arpanjain.com
[लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान,भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।]

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