*मानव सेवा की पेश की अनूठी मिसाल*
*कंडो से किया दाह संस्कार*
*सेंधवा से कपिलेश शर्मा – *शहर में शनिवार को मानव सेवा समिति द्वारा एक अनूठी पहल की गई। पहली बार लकड़ी नहीं, बल्कि गोबर के कंडे से अंतिम संस्कार हुआ। यह पहल सफल साबित हुई। इससे पर्यावरण प्रदूषण पर न सिर्फ अंकुश लगेगा, बल्कि मृतक के परिजनों का आर्थिक बोझ भी कम होगा। इसे ईको फ्रेंडली दाह संस्कार भी कहा जा सकता है।उक्त पहल महावीर कालोनी स्तिथ निवासी मृतक कलावतीबाई जायसवाल के निधन के पश्चात उनके पुत्र मनोज अनिल ओर सुनील जायसवाल की इच्छा अनुसार बताया कि वे अपनी माताजी का अंतिम सस्कार में लकड़ी नहीं, वरण कण्डे का इस्तेमाल करना चाहते है इसके लिए उहने मानव सेवा समिति के नीलेश जैन से सम्पर्क किया फिर मानव सेवा समिति के नीलेश जैन पीयूष शाह पंकज शाह मनोज पटेल सन्तोष जैन में मिलकर सेंधवा स्तिथ राधाकृष्ण गो शाला से शुद्ध गाय के गोबर से बने कण्डे लिए ओर उस कंडो से मृतक की अंतिम सस्कार की प्रकिया सम्पन करवाई मानव सेवा समिति के नीलेश जैन ने बताया कि इस ईको फ्रेंडली दाह संस्कार के तीन बड़े फायदे है इससे पेड़ों की कटाई रुकेगी – दाह संस्कार के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई होती है। यह ऐसी धार्मिक प्रक्रिया है जिस पर रोक भी नहीं लगाई जा सकती।इसलिए कंडे को लकड़ी का अच्छा विकल्प माना गया है। पेड़ों की कटाई से हरियाली खत्म हो रही है, साथ ही इससे प्रदूषण का स्तर कम होगा ओर प्रदूषण के स्तर को कम करने में यह कारगर पहल होगी।खर्च भी कम होगा – एक दाह संस्कार में 350-450 किलो से अधिक लकड़ी का इस्तेमाल होता है, जिसकी कीमत 3000 रुपये तक है। ओर आज इस प्रक्रिया में 600 कण्डे ही लगे जिनकी कीमत सिर्फ 1500 रुपये हुई कंडे की राख करेगी नदी साफ – कंडे की राख नदियों को साफ करेगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि पानी में तरह-तरह के कैमिकल होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं। कंडे की राख पानी को स्वच्छ करने में सहायक है।भविष्य में भी शहर में किसी को भी कंडो से अंतिम सस्कार करवाना हो तो उनकी मानव सेवा समिति की पूरी टीम इस कार्य के लिए अपनी सेवा देंगे*।