हाथ जोड सबकों सलाम कर प्यारे… वोट के लिए काम कर प्यारे

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हाथ जोड सबकों सलाम कर प्यारे…
वोट के लिए काम कर प्यारे
आनंद जैन इंदौर ।पूरानी फिल्म का गाना हाथ जोड सबकों सलाम कर प्यारे…जीने के लिए कुछ काम कर प्यारे…वरना ये दुनिया जीने नहीं देगी। इस चुनावी घमासान में फिट बैठ रहा है। कारण इस बार किसी का जादू नहीं चल रहा है। पिछले बार तो मित्रों मोदी की जादू की झपी ने ऐसे कमजोर प्रत्याशियों को भी विधायक बनाकर सरकार बना दी थी । जो किसी भी मायने में राजनीति के काबिल न थे।इस बार मामला उलट है। मतदाताओं को रोज बडता डीजल, प्रेटोल का दाम,आसमान छुता गैस टंकी का भाव दिखाई दे रहा है। इसे भूल भी जाए तो नोट बंदी के बाद आई मंदी से आई बेरोजगारी की मार ने झकझोर कर रख दिया है। इस चुनाव में कही न कही मतदाता इस बार अपनी तकलीफ का हिसाब करने के लिए तैयार है। ऐसे में सत्तारूढ़ पार्टी की वापसी हो पाना संभव नहीं है।मतदाताओं को पक्ष में करने के लिए की जाने वाली बडी-बडी सभाओं की खाली कुर्सियां, बडे नेताओं के खाली दिखते रोड शो भी यही बया कर रहे है कि कहीं न कहीं कुछ तो मामला गड बड है। लोगों को मैसेज के साथ फोन काल किया जा रहा। घर – घर दस्तक देनी पड रही है। हाथ जोडकर सलाम करना पड रहा है।पांव पढकर प्रणाम करना पड रहा है। फिर भी हालत पतली देख कई नेता आला नेताओं से गुहार लगा रहे है पैसों के बिना काम नहीं चलेगा? जैसा कि कल चली एक आडियो रिकार्ड में सुनने में आया। कैसे कार्यकर्ता बिना पैसे के काम नहीं कर रहे है?बडे नेताओं की सभा का कोई असर नहीं हो रहा है। 1रु. किलो गेहूँ,2 रु. किलो चावल के साथ 200 रु.महिने की बिजली कहां तक मतदाताओं को रिझा पाऐगी।कल तक जो मजदूर अपना व परिवार का पेट पालता था वह मंदी की मार झेल रहा है। बेरोजगार घूम रहा है।तो कैसे उसका वोट पक्ष में गिरेगा? व्यापारियों की पार्टी कहलाने वाली पार्टी क्या व्यापारियों को खुश कर पाई?धंधे की मंदी से व्यापार को उबार पाई?फिर कैसे पक्ष में वोट डलेगा? इन सभी परेशानियों के चलते कहीं न कहीं सत्तापक्ष को यह डर बैठ रहा है कि कल विपक्ष में न बैठना पड जाऐ।

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