नर्मदा की गोद में हुआ सियाराम बाबा का प्रभुमिलन

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सियाराम मय सब जग जानी

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मध्यप्रदेश के खरगोन जिले की कसरावद तहसील में एक छोटा-सा गाँव है तैली भट्यांण। वैसे तो यह गाँव नर्मदा के तट पर प्राकृतिक सौंदर्य से आह्लादित है किन्तु इस गाँव की प्रसिद्धि देश-विदेश में होने का महत्त्वपूर्ण और एकमात्र कारण हैं संत सियाराम बाबा।
कुछ 60-70 वर्ष पहले इस गाँव में बाबा आए और तब से लेकर आजतक तैली भट्यांण में ही बाबा ने अपना आश्रम बना लिया। बाबा ने कुटिया बनाई, हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की और सुबह-शाम राम नाम का जप और रामचरितमानस का पाठ करते रहते थे बाबा।

बाबा का जन्म मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ, कक्षा 7-8 तक पढ़ाई की, फिर एक गुजराती साहूकार के यहाँ मुनीम का कार्य करने लगे। उसी काम के दौरान एक सन्यासी के दर्शन बाबा को हुए, मन में वैराग्य जागा, राम काज का भाव जागृत हुआ और वे हिमालय पर साधना के लिए चले गए। यहाँ तक कि, बाबा के नाम के पीछे की कहानी भी बड़ी मज़ेदार है। कहते हैं कि बाबा ने 12 वर्षों तक मौन धारण करके रखा हुआ था। वहीं, जब 12 वर्ष बाद उन्होंने अपना मुख खोला, तो उनके मुख से पहला शब्द निकला ‘सियाराम’। इस वजह से गाँव के लोगों ने उनका नाम सियाराम रख दिया और अब सियाराम बाबा के नाम से ही पूरे क्षेत्र में वे जाने जाते थे।
इसके अलावा, बाबा ने 10 वर्षों तक खड़ेश्वर तप भी किया था। एक बार बाबा के खड़ेश्वर तप के दौरान नर्मदा नदी में बाढ़ आ गई थी और पानी बाबा के नाभि तक आ गया, लेकिन बाबा अपनी जगह पर ही बने रहे। बाबा टस से मस नहीं हुए, माँ रेवा वहाँ से चली गईं, यह बाबा के तपबल का ही परिणाम है।


निराभिमानी बाबा सियाराम नियमित नर्मदा स्नान करते थे और नर्मदा परिक्रमावासियों की सेवा करते थे। आश्रम में उनके लिए भोजन इत्यादि की व्यवस्था भी रहती है। परिक्रमावासियों के ठहरने के लिए बाबा ने यात्री निवास भी बनवाए हैं। कई बार नर्मदा की बाढ़ की वजह से गाँव के कई घर डूब जाते हैं। यहाँ तक कि, ग्रामीण लोग ऊँची और सुरक्षित जगह चले जाते हैं। लेकिन बाबा अपना आश्रम व मंदिर छोड़कर कहीं नहीं जाते थे। बाढ़ के दौरान मंदिर में बैठकर रामचरितमानस का पाठ करते थे। बाढ़ उतरने पर ग्रामवासी उन्हें देखने आते तो बाबा कहते थे, ‘माँ नर्मदा आई थीं, दर्शन व आशीर्वाद देकर चली गईं। माँ से क्या डरना, वो तो मैया हैं।’
वर्तमान में जहाँ बाबा का आश्रम है, वह डूब में जाने वाला है। मध्यप्रदेश सरकार ने बाबाजी को मुआवज़े के 2 करोड़ 51 लाख दिए थे, दानी बाबा ने मुआवज़े की पूरी राशि खरगोन के समीप ही ग्राम नांगलवाड़ी में नाग देवता के मंदिर में दान कर दी ताकि वहाँ भव्य मंदिर बन सके और भक्तों को सुविधा मिले। यहाँ तक कि श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में मन्दिर निर्माण में भी बाबा ने ढाई लाख रुपए दान किए।

बाबा के आश्रम का नियम है कि वहाँ केवल 10 रुपए ही दान में स्वीकार किए जाते हैं, और दानदाता का नाम रजिस्टर में बाबा दर्ज करते हैं। उन पैसों से नर्मदा परिक्रमावासियों का खाना और रहने की व्यवस्था वर्षों से आश्रम में होती आ रही है। वें जब तक स्वस्थ रहें तब तक प्रतिदिन 15 घण्टे से अधिक मानस का पाठ करते थे। लाखों भक्तों की आस्था के केंद्र तैली भट्यांण में विशेषकर गुरु पूर्णिमा एवं सामान्य दिनों में भी बाबा का पूजन करने बड़ी संख्या में उनके भक्त आते हैं। प्राप्त जानकारियों के अनुसार 109 वर्ष की आयु है बाबा की थी।
मोक्षदा एकादशी, बुधवार को प्रातः 6.10 बजे बाबा ने देह त्याग कर अपने धाम प्रस्थान कर दिया। अंतिम यात्रा में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी शामिल हुए थे।


परम प्रतापी संत जीवन भर जो एक लंगोट में रहते थे, ठंड हो, गर्मी हो चाहे बरसात हो, लाखों-करोड़ों देशी-विदेशी भक्तों की आस्था के केन्द्र संत सियाराम बाबा अपना कार्य स्वयं करते थे। माँ नर्मदा और हनुमान जी के भक्त बाबा ने अपने जाने का समय भी एकादशी चुना, आज लाखों भक्तों की उम्मीद निराशा में बदल गई, ऐसे संत हज़ारों वर्षों में एकाध बार जन्म लेते है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
लेखक, इंदौर (म.प्र.)
09406653005
arpan455@gmail.com

[ लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]

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