संवाददाता अमृतलाल मारू
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दसई किशोरावस्था जिंदगी का एक ऐसा मुकाम है जहां से आगे का जीवन तय होता है ।इस मुकाम से जिस और कदम बढ़ते हैं आदमी उतना ही उधर उन्नत या पतनशील हो जाता है । फिर अगर इच्छा हो संसार से मोक्ष की और कदम बढ़े संयमी जीवन की ओर तो फिर क्या कहना ? नगर के युवा अजय नाहर ने संसार से उपराम होकर जिस संयम पथ को चुना उस पर 15 जनवरी से उनकी यात्रा आरंभ हो गई। भागवती दीक्षा, पंचुमुष्ठी केश लोचन जैसी प्रक्रिया से निखर कर अजय को नूतन मुनि के रूप में जिनभद्रविजय जी का नाम मिला।
जैन तीर्थ मोहनखेड़ा मे पिछले 3 दिनों से इस निमित्त आयोजन शुरू हुए थे । विभिन्न धार्मिक, सामाजिक परंपराओं के बाद बुधवार 15 जनवरी को दीक्षा का मुख्य आयोजन संपन्न हुआ। दीक्षा के साथ ही अजय की सांसारिक पहचान खत्म होकर एक मुमुक्षु के रूप में हुई जिन्हें गुरुदेव आचार्य श्री ऋषभ चंद्र सुरीश्वर जी महाराज सा.ने मुनि जिन भद्र विजय जी का नाम दिया। आयोजन में दूरदराज के अतिरिक्त दसई के आसपास के क्षेत्रों से भी समाज जनों के अलावा अन्य समाज के लोग भी शामिल हुए। आयोजन संपन्न होने के बाद मुनि श्री के सांसारिक सहपाठियों ने बताया कि धर्म के पथ पर चलना बड़ा कठिन है और संयम के मार्ग का चयन और अधिक दुर्गम है । हमारे बाल सखा ने जो पथ चुना है उससे हमें भी धर्म के प्रति और अधिक लगाव जागृत हुआ है। हम उनके इस निर्णय से गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं । चाहे हम किसी भी धर्म को मानते हो पर एक बात तो यह तय है कि पूर्व जन्म के पुण्य जब साथ देते हैं तभी ऐसा भाग्योदय होता है ।हमारे मुनि श्री अपने पथ पर सदैव आगे बढ़ते रहें और अपना लक्ष्य प्राप्त कर समस्त मानव जाति के लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें ऐसी हम कामना करते हैं। पिछले सप्ताह भर से मुनि श्री की दीक्षा क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई थी ।हर किसी ने इस निर्णय को सराहा । दीक्षा के बाद क्षेत्र से लोगों का मुनि श्री को वंदन करने के लिए मोहनखेड़ा जाने का सिलसिला जारी है ।