नई दिल्ली: यूरोपियन यूनियन के 27 सांसदों का जम्मू-कश्मीर दौरा को डल झील में सफर के साथ ही खत्म हो गया. शुरू से ही इस दौरे को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे. लेकिन अब यह सवालों के घेरे में घिर गया है. 27 में से चार सांसद कश्मीर गए ही नहीं. इन सांसदों की शिकायत थी कि उन्हें हालात समझने की खुली छूट नहीं दी जा रही थी. सवाल ये भी उठ रहा है कि इन सांसदों में ज़्यादातर दक्षिणपंथी रुझान वाले हैं। इस दौरे का इंतज़ाम किसने किया? किसने इसको पैसा दिया? इसके अलावा कश्मीर के कई नेताओं ने शिकायत की, कि उन्हें इस समूह से मिलने नहीं दिया गया.
सुरक्षा के बेहद कड़े इंतज़ामों के बीच ईयू सांसद श्रीनगर घूमते रहे. उनकी सैर के बीच इत्तिफाक से वो हिरासत केंद्र भी आए और पीछे छूट गए जहां दर्जनों क़ैद नेताओं के साथ तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी बंद हैं. लेकिन सरकार अगर इन्हें दिखाना चाहती थी कि सब कुछ ठीक है लेकिन ज़मीनी हालात इससे मेल नहीं खा रहे थे. स्थानीय नेताओं के मुताबिक आने वाले प्रतिनिधिमंडल के लिए सूनी सड़कें एक इशारा भर थीं.
ये साफ़ लग रहा था कि डेलीगेशन का दौरा बहुत सख़्त नियंत्रण के तहत हो रहा था. सांसदों ने सेना मुख्यालय में सेना अधिकारियों से मुलाकात की जहां उन्हें सुरक्षा के बारे में जानकारी दी गई. इसके अलावा उन्होंने पंचायत सदस्यों से भी मुलाकात की. लेकिन कई लोगों ने शिकायत की कि कोई भी अहम सामाजिक संगठन या कारोबारी संगठन या मुख्यधारा का राजनीतिक दल प्रतिनिधिमंडल से मिल नहीं सका. नेशनल कॉन्फ्रेंस के दो सांसदों ने बताया कि उन्हें ग्रुप से मिलने से रोका गया. यही नहीं, इनके दौरे के पीछे एक अनजान संस्था का हाथ होने की बात भी कही जा रही है. सरकार पर दोहरा रुख़ अपनाने का आरोप भी लगा और डल झील के सफ़र के साथ प्रतिनिधिमंडल का दौरा ख़त्म हुआ.