डॉ. वैदिक पर एकाग्र देश की पहली पुस्तक ‘हिन्दीयोद्धा डॉ. वेदप्रताप वैदिक’ लोकार्पित

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इन्दौर। शहर में पत्रकारों की पुरातन संस्था इन्दौर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित इन्दौर मीडिया कॉनक्लेव में बुधवार को राजेन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यान के दौरान डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ द्वारा लिखी पुस्तक ‘हिन्दी योद्धा: डॉ. वेदप्रताप वैदिक’ का लोकार्पण मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ, इन्दौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव, इन्दौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, पद्मश्री जनक पलटा, प्रेस क्लब उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी, प्रेस क्लब महासचिव हेमंत शर्मा, समाजसेवी अजय चौरड़िया व वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा द्वारा किया गया।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक के परिचय और हिन्दी प्रेम को दर्शाने वाली देश की पहली पुस्तक है। डॉ. वैदिक के हिन्दी के प्रति अवदान पर कोई भी पुस्तक नहीं लिखी गई।

डॉ. अर्पण जैन अब तक 15 से अधिक किताबें लिख चुके हैं और उन्हें साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश शासन द्वारा अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार व जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी द्वारा अक्षर सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।

इस अवसर पर सैंकड़ों पत्रकार, साहित्यकार और विद्यार्थी इत्यादि मौजूद रहे। कार्यक्रम संचालन संजय पटेल व आभार प्रेस क्लब उपाध्यक्ष दीपक कर्दम ने माना।

डॉ. वैदिक पर हिन्दी अवदान को रेखांकित करती देश की पहली पुस्तक

देश के सुप्रसिद्ध पत्रकार एवं विचारक, पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अनेक क्षेत्र में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी, मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक डॉ. वेदप्रताप वैदिक के हिन्दी के प्रति अनन्य भक्ति के परिचय को समायोजित करते हुए डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने उनके अवदान को रेखांकित करते हुए एक पुस्तक ‘हिन्दीयोद्धा डॉ. वेदप्रताप वैदिक’ लिखी है, जिसका प्रकाशन वर्ष 2025 में संस्मय प्रकाशन, नई दिल्ली से हुआ है।
इस पुस्तक में डॉ. वैदिक के सम्पूर्ण परिचय के साथ उनके जीवन के अनछुए पहलू, जो हिन्दी भाषा के लिए उनके संघर्ष, कार्य और अवदान के साथ-साथ कुछ क़िस्से, जो डॉ. वैदिक का हिन्दी प्रेम दर्शाते हैं, उनको सम्मिलित किया गया है। साथ ही, डॉ. वैदिक ने समय-समय पर हिन्दी का महत्त्व दर्शाने वाले आलेख लिखे हैं, उनमें से चुनिन्दा आलेखों का संकलन भी पुस्तक में है।
जैसे- अंग्रेज़ से ज़्यादा ख़तरनाक अंग्रेज़ी’, ‘हिन्दी कैसे बने विश्वभाषा?’, ‘तमिल ख़ुद सीखेंगे हिन्दी’, ‘हिन्दी के लिए खुला विश्व-द्वार’, ‘हिन्दी दिवस जनता कैसे मनाए?’ इत्यादि।
इस पुस्तक का एक उद्देश्य यह है कि आम जनमानस जो डॉ. वैदिक और उनके हिन्दी प्रेम के बारे में जानना चाहता है, उनसे परिचित होना चाहता है, वह सरल भाषा में उनसे जुड़ सके। साथ ही, दूसरा उद्देश्य यह है कि जो शोधार्थी डॉ. वैदिक पर अध्ययन करना चाहते हैं, उनके हिन्दी के प्रति अवदान पर कार्य करना चाहते हैं, सीखना और अनुसरण करना चाहते हैं, वे इस पुस्तक की सहायता से प्रारंभिक खाँका तैयार कर सकते हैं।
निःसंदेह किताबें समय का शिलालेख होती हैं। आज डॉ. वैदिक के देह त्याग किए लगभग 2 वर्ष बीत गए, किन्तु वे अक्षरदेह के रूप में हम सभी के बीच हैं। उन्हीं अक्षरों की साधना से ही डॉ. वैदिक अनंतकाल तक पुस्तकों के माध्यम से जनमानस के बीच उपस्थित रहेंगे।
ऐसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य की स्थापना के लिए यह देश की पहली ऐसी पुस्तक है, जो उनके अवदान का संक्षिप्त परिचय देती है।

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