भारतीय आबादी में तरूणाई की बहुलता और भविष्य की दिशा

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●अनिल त्रिवेदी

भारत सभ्यता, संस्कृति, पारिवारिकता और दर्शन के संदर्भ में बहुत प्राचीन समय से अपनी मौलिक समझ और व्यापक जीवन शैली से जीवन जीने वाला देश है। भारतीय जीवन पद्धति ,कृषि, पशुपालन, दस्तकारी ,परिवार व स्थानीय लोगों से प्रत्यक्ष व्यवहार के साथ ही दुनिया भर से समुद्री और सड़क मार्ग से व्यापार की प्राचीन परम्परा वाला देश समाज रहा है। भारत की मौलिक ज्ञान दर्शन की अपनी दीर्घ परम्परा रहीं हैं। आवागमन के संसाधनों की कमी होते हुए भी ज्ञान, दर्शन और व्यापार की समझ वाले भारतीय मनुष्य ने जीवन के हर क्षेत्र में अपना अनोखा अनुभवजन्य योगदान दिया है। भारतीय समाज में आज के कालखंड में एक विशेष परिवर्तन हुआ है।जो आधुनिक काल के भारतीय समाज में उभरती हुई सबसे बड़ी चुनौती है। भारतीय समाज या समूची मानव सभ्यता में ज्ञान की परम्परा या पद्धति मनुष्य- मनुष्य के बीच ही प्रत्यक्ष तौर पर एक दूसरे से आमने-सामने सानिध्य में रहकर ज्ञानार्जन करने से ही चलती आई है।पर सूचना तकनीक पद्धति के जन्म और दुनिया के चप्पे-चप्पे में एकाएक सारी दुनिया फैल जाने से भारत सहित दुनिया भर में ज्ञान हासिल करने और आपसी व्यवहार की समूची पद्धति ही बदल गई है। भारतीय समाज में सोच व्यवहार और जीवन जीने के परम्परागत तौर तरीकों में बहुत तेजी से बदलाव हो रहे हैं। आज जब भारतीय आबादी में युवा आबादी सबसे बड़ी संख्या वाली आबादी बन गई है।आज भारत में शून्य से लेकर चौदह वर्ष की आयु वर्ग के नागरिक भारतीय आबादी का पच्चीस प्रतिशत हो गये है और शून्य से लेकर पैंतीस वर्ष तक की आयु के नागरिकों की आबादी कुल आबादी का पैंसठ प्रतिशत हो गया है। यानी भारत की आबादी में युवा आबादी सारी दुनिया में सर्वाधिक है। भारतीय युवा ने पिछले दो-तीन दशकों में सारी दुनिया में अपने ज्ञान और सपनों को साकार कर दुनिया के प्रत्येक देश में और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। भारतीय युवा की इस लंबी छलांग ने भारतीय समाज में कई सारे नए सवाल खड़े किए हैं। सूचना तकनीक जन्य रोजगार के वैश्विक अवसरों के कारण भारत से बड़ी संख्या में युवा आबादी के समूची दुनिया में जाने से भारतीय समाज की संकल्पनाओं में मौलिक परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। दूर के देशों में बसे भारतीय युवा और भारत में ही अपने सपनों में रंग भरने में लगी विशाल युवा आबादी का अधिकांश अपने घर परिवार से दूर रहकर अपने भविष्य के सपनों को साकार करने हेतु हरसंभव प्रयास करने में लगा है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था ने भारत के युवाओं को अवसरों की तलाश में अपने घर परिवार से दूर कर दिया है। भारत के छोटे बड़े शहरों में हर कहीं एक दृश्य यह आम होता जा रहा है कि दुनिया में सर्वाधिक बच्चे और युवा आबादी वाले देश होने के बाद भी भारत के शहरों कस्बों के रहवासी बसाहटों में बच्चों और युवाओं का अभाव दिखाई देता है। भारत में बच्चे और युवा शक्ति की बहुलता होते हुए भी बच्चों और युवाओं को माता पिता या परिवार का निकट सानिध्य सुलभ नहीं है। भारतीय परिवार आभासी मुलाकात और व्यवहार की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।गांव कस्बों के बच्चे अवसर की तलाश में बड़े और मझौले शहरों में रहने आ गये या पढ़ लिख कर विदेश या देश के बड़े शहरों में सूचना तकनीक के संस्थानों में चले गए। ठंड के मौसम में जैसे ठंडे मुल्कों से प्रवासी पक्षी भारत के कई हिस्सों में आते हैं वैसे ही भारत के घरों में भी प्रवासी युवा पीढ़ी अपने घर परिवार में आकर चले जाते हैं। इसी तरह भारतीय समाज में माता पिता की भूमिका भी तेजी से बदल रही है। माता पिता भी दो चार या छः महीने के लिए अपने घर से निकल कर विदेश में बच्चों के पास रह आते हैं।पढे लिखे दिमागकश भारत और निरक्षर मेहनतकश भारत दोनों की नियति एक समान हो गई है। गांव समाज में काम और अवसर के अभाव ने परिवार के सदस्यों को शहरों में काम की तलाश में जाने का रास्ता दिखाया। जिससे गांव में खेत खलिहानों में काम करने वाले कम हो गये। शहरों में होस्टल खचाखच भीड़ भरे होते जा रहे हैं। भारतीय समाज में इस बदलाव से समृद्धि की चाह तो बढ़ी पर घर परिवार और समुदाय खाली होते जा रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था ने भारतीय समाज की गहराई को सतह पर ला दिया है। भारतीय परिवार और समाज आर्थिक विकास की चकाचौंध में अपनी प्राकृतिक जीवन शैली से दूर होकर अपनेपन को घर परिवार और समाज में निरंतर खो रहा है। भीड़ तो शहरी दुनिया में बढ़ती ही जा रही है पर सर्वाधिक युवा आबादी वाले भारत मे परिवार आभासी दुनिया का आचार विचार और व्यवहार तेजी से सीख रहे हैं।यह आज के काल की चुनौती है जिसका हल भी युवा और वरिष्ठ आबादी को हिल मिल कर ही खोजना होगा।

अनिल त्रिवेदी

अभिभाषक एवं स्वतंत्र लेखक
इन्दौर मध्यप्रदेश

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