इन्दौर प्रेस क्लब ने आयोजित किया आँखन देखी-कानन सुनी’, पत्रकारों ने सुनाए 1992 की पत्रकारिता के अनुभव

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मुट्ठी में सरयू की रेत से शुरू हुआ बाबरी विध्वंस- हेमन्त शर्मा

कृष्णकुमार अष्ठाना, डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी, कीर्ति राणा, हेमन्त शर्मा, दिनेश सोलंकी एवं दिलीप लोकरे ने साझा किए अनुभव

इंदौर। ‘इतना आसान भी नहीं था अयोध्या में पहुँच कर पत्रकारिता कर पाना, बस-ट्रेन बन्द कर दी थीं, अयोध्या से मोटरसाइकल से ग्वालियर जाकर फ़ोटो और ख़बर अख़बार के दफ़्तर में लिखवाई। ख़बर भेजने का एकमात्र माध्यम फैक्स या फिर टेलीफ़ोन द्वारा डेस्क ख़बर लिखाना था। अयोध्या में हज़ारों कारसेवक मुट्ठी में सरयू नदी की रेत लेकर बाबरी ढाँचे तक पहुँचे थे। वहाँ पहुँचने पर कारसेवकों ने गुम्बद पर भगवा झंडा लहरा दिया और इसके बाद तो शाम होते-होते बाबरी ढाँचा समतल मैदान में तब्दील हो गया। कई कारसेवक वहाँ लौटते हुए अपने साथ वहाँ की मिट्टी और ईंटे साथ लेकर आ गए थे।’ यह बात उस दौरान अयोध्या में चौथासंसार अख़बार से गए वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त शर्मा ने कही।


कारसेवकों की टोली की व्यूह रचना की प्लानिंग

’कारसेवकों में टोली की व्यूह रचना ऐसी की गई कि सबसे पहले आंध्र प्रदेश के नांदयाल के कारसेवक सरयू से ढाँचे की तरफ़ बढ़ेंगे, फिर महाराष्ट्र के कारसेवक।
उसका कारण यह था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव का संसदीय क्षेत्र आंध्र प्रदेश का नांदयाल था, वहाँ के लोगों पर गोली चलाने का आदेश प्रधानमंत्री न दे सके और उनके पीछे महाराष्ट्र के कारसेवक इसलिए क्योंकि तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री शंकरराव भावराव चव्हाण थे, वे महाराष्ट्र से आते थे। वे भी गोली चलाने के आदेश कम से कम नहीं देंगे। इसी कारण कारसेवकों के जत्थे की व्यूह रचना इस प्रकार की गई।’ यह बात वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त शर्मा ने अपने वक्तव्य में बताई।

1992 के श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के दौर के साक्षी रहे वरिष्ठ पत्रकारों और छायाकारों के अपने अनुभव गुरुवार को इंदौर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित ’आँखन देखी-कानन सुनी’ कार्यक्रम में उन्होंने साझा किए।

प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने विषय प्रवर्तन करते हुए उस दौर को याद करते हुए कहा कि ‘उस दौर में पत्रकारिता और फ़ोटोग्राफी करना आसान नहीं था, आज जो अनुभव हमारे वरिष्ठ साझा कर रहे हैं, इससे नई पीढ़ी को लाभ होगा।’

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकुमार अष्ठाना ने कहा कि ’अयोध्या में कारसेवा नई पीढ़ी को गौरव से साक्षात्कार कराने की थी। हालांकि उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने कहा था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इसके बावजूद कारसेवक सैंकड़ो किलोमीटर पैदल चलकर अयोध्या पहुँचे थे। उस समय एक नारा बहुत चला था “सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे।” उस वक्त सरयू नदी कारसेवकों के रक्त से लाल हो गई थी।’

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी ने कहा कि ‘हम इतिहास को देखें तो धर्म के नाम पर बड़े-बड़े युद्ध हो रहे हैं, जिसमें हज़ारों नहीं लाखों लोग मारे जा रहे हैं। ऐसे दौर में अयोध्या सांस्कृतिक एकता की अद्भुत मिसाल है।’

वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने कहा कि ‘पुलिस प्रशासन की मुश्तैदी से शहर में बाबरी ढाँचे के ध्वस्त होने के बाद भी दंगा नहीं हुआ। 90 के दौर में कारसेवकों के स्वागत में ज़मीन पर रामरज बिछाई जाती थी और आज जब अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है तो आकाश भगवामय हो गया है।’

वरिष्ठ पत्रकार और छायाकार दिनेश सोलंकी ने कहा कि ‘महू में बाबरी विध्वंस के बाद दंगा नहीं हुआ था। एहतियात के तौर पर 8 दिन का कर्फ्यू लगा दिया गया था। रामशिला पूजन के समय यहाँ दंगा हो गया था। इस पूजन में 5 हज़ार लोगों को आना था, लेकिन इसमें करीब 25 हज़ार लोग एकत्रित हो गए थे।’
वरिष्ठ छायाकार दिलीप लोकरे ने कहा कि ’80 और 90 का दशक बड़ा ही संवेदनशील रहा। ऐसे दौर में फ़ोटोग्राफी करना बड़ा कठिन काम था। 6 दिसंबर के बाद जब इंदौर में एहतियात के तौर पर पुलिस प्रशासन ने कफ्र्यू लगा दिया था और कोई ढील भी नहीं दी, तब मीडिया ने प्रशासन से सवाल किया था कि अन्य शहरों में दंगे होने के बावजूद कर्फ्यू में ढील दी जा रही है, तो इंदौर अछूता क्यों? इसका असर यह हुआ कि प्रशासन ने अगले ही दिन सुबह और शाम को कुछ घंटों की ढील दी थी।’

‘अवध में आ गए रघुराई’ का हुआ लोकार्पण

इस मौके पर पत्रकार व मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ’अविचल’ द्वारा रचित गीत ‘अवध में आ गए रघुराई’ का लोकार्पण भी किया गया और गीतकार व गायक रोहित रघुवंशी का अतिथियों द्वारा सम्मान किया गया।

अतिथि स्वागत प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी, महासचिव हेमन्त शर्मा, कोषाध्यक्ष संजय त्रिपाठी व शैलेष पाठक ने किया। संचालन मुकेश तिवारी ने किया। आभार उपाध्यक्ष दीपक कर्दम ने माना।

इस मौके पर कार्यकारिणी सदस्य राहुल वावीकर, वरिष्ठ पत्रकार संजय जोशी, सुनील जोशी, रवीन्द्र व्यास, के.पी.एस. जादौन, डॉ. कमल हेतावल, राजीव उपाध्याय, राजेंद्र कोपरगांवकर, मांगीलाल चौहान, कैलाश मित्तल, लक्ष्मीकांत पंडित, बी.के. उपाध्याय, विद्युत प्रकाश पाठक, कमलेश सेन, महेश मिश्रा, विनोद शर्मा, प्रवीण जोशी, मार्टिन पिंटो, लोकेंद्र थनवार, धर्मेंद्र शुक्ला, खन्नू विश्वकर्मा, सोनू मसीह, हर्ष जैन, चेतन मोहनवानी सहित बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी मौजूद थे। वहीं अभ्यास मंडल के शिवाजी मोहिते, साहित्यकार विनीता तिवारी, मणिमाला शर्मा, मराठी साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक अश्विन खरे, मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य नितेश गुप्ता, राधिका मंडलोई, पंच कन्या संस्था की डॉ. समीक्षा नायक, प्रो. अखिलेश राव, दामोदर विरमाल, लोकेंद्र राठौर, किशोर कोडवानी, सुभाष सिंघई, दीपक सिरालकर, डॉ. अजय जैन, बसंत सोनी, प्रांजल शुक्ल, पवन तिवारी, चेतन जोशी, रोहित रघुवंशी सहित अनेक साहित्यिक, बौद्धिक संगठन के लोग उपस्थित थे।

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