लालदुहोमा बनेंगे मिज़ोरम के मुख्यमंत्री, ज़ेडपीएम ने 27 सीट जीत कर पेश किया सरकार बनाने का दावा

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(ख़बर हलचल न्यूज़)

आइजोल। मिजोरम में जोरम पीपल्स मूवमेंट (ZPM) ने 40 सदस्यीय सदन में 27 सीट जीतकर मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) को बुरी हरा दिया और सत्ता हासिल कर ली है।एमएनएफ को 10 सीट पर जीत मिली जबकि भाजपा को दो और कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली। जीत हासिल करने वाले जेडपीएम के प्रमुख नेताओं में पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लालदुहोमा (Lalduhoma) भी शामिल हैं। उन्होंने सेरछिप सीट पर मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के जे. माल्सावमजुआला वानचावंग को 2,982 मतों से हराया है। जबकि मुख्यमंत्री जोरमथंगा आइजोल ईस्ट-प्रथम सीट पर जेडपीएम उम्मीदवार लालथनसांगा से 2,101 मतों से हार गए।

कभी इंदिरा गाँधी के गार्ड रहे लालदुहोमा आज बनेंगे मिज़ोरम के मुख्यमंत्री

लालदुहोमा का सबसे बड़ा परिचय यह है कि वे 1977 बैच के 74 साल के पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं। राज्य में मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे निकलने से पहले से ही वह अपने राज्य मिजोरम में एक जाना-पहचाना नाम बन चुके है। मिजोरम के बाहर के जिन लोगों ने उनका नाम पहले सुना होगा, उसमें वे उनको दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराए जाने वाले देश के पहले सांसद और फिर विधायक के रूप में याद करते होंगे। मगर सोमवार को उन्होंने ईसाई-बहुल उत्तर-पूर्वी राज्य की राजनीति में सबसे बड़ी उथल-पुथल पैदा कर दी। अब लालदुहोमा ने मौजूदा मुख्यमंत्री जोरमथांगा को सत्ता से बेदखल कर दिया है। उम्मीद है कि देश में अब उनका नाम सही कारणों से चर्चा में आएगा।

म्यांमार की सीमा से लगे चंफाई जिले के तुआलपुई गांव में जन्में लालदुहोमा की शिक्षा ही गरीबी से मुक्ति का साधन थी. उन्होंने पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन किया, जिससे तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश के पहले सीएम सी चुंगा का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ। जिन्होंने उन्हें 1972 में अपने कार्यालय में प्रधान सहायक के रूप में नौकरी दी। लालदुहोमा ने इसके साथ गौहाटी विश्वविद्यालय में एक शाम के पाठ्यक्रम के लिए दाखिला लिया। ग्रेजुएट की उपाधि हासिल की और पांच साल बाद सिविल सेवा परीक्षा पास की। गोवा में तैनात एक आईपीएस अधिकारी के रूप में वह ड्रग माफिया के खिलाफ क्रूर थे।
उन्होंने इतनी मजबूत प्रतिष्ठा बनाई कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रभावित होकर उनका 1982 में नई दिल्ली तबादला कर दिया और बाद में उन्हें अपनी सिक्योरिटी का हिस्सा बना लिया। इंदिरा गांधी के कहने पर लालदुहोमा ने विद्रोही नेता लालडेंगा के मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) को बातचीत की मेज पर लाने में मदद की। 1984 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, कांग्रेस में शामिल हो गए और मिजोरम से सांसद चुने गए। एक सांसद के रूप में अयोग्यता को निमंत्रण देते हुए उन्होंने चार साल बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया।

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