कचरे के ढेर में गुम थी मासूमों की ‘जिंदगी’, मिली उम्मीद की नई रोशनी

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हमारे देश में ऐसे कई बच्चे हैं जिनका भविष्य कचरे के ढेर में ही खोकर रह गया है। एक बड़ी फौज ऐसे बच्चों की इस देश में है, जो कि अपनी पारिवारिक दयनीय स्थिति के चलते कचरे से पन्नियां, लोहा, प्लास्टिक बीनकर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने में लगे हुए है और इसी कचरे के बीच इनका बचपन कहीं खो जाता है। दो जून की रोटी की जुगाड़ के चलते ये पढ़ाई से वंचित होकर समाज की मुख्य धारा से ही बाहर रह जाते हैं।

लेकिन नीमच में जिला प्रशासन ने ऐसे बच्चों के लिए कुछ अलग ही करने की ठानी है। पन्नी व कचरा बीनने वाले ऐसे बच्चे अब यहां आम बच्चों के साथ रहकर पढ़ाई करते हुए अपना सुनहरा भविष्य तराशने में जुटे दिखाई पड़ रहे हैं।सरकारी सर्वे के मुताबिक शहर में कचरा बीनने वाले बच्चों की तादाद करीब 150 है। कचरा बीनने वाले बच्चे अपने परिवार के लिए आर्थिक रूप से मददगार बन जाते हैं। धीरे-धीरे यही उनका रोजगार भी बन जाता है। लेकिन इस बार सर्वे में 30 ऐसे बच्चों को चिन्हित किया गया है, जो कचरा तो बीनते ही थे साथ ही पढ़ाई में भी रुचि रखते थे। इसके लिए जिला कलेक्टर अजय गंगवार के मार्गदर्शन में जिला पंचायत सीईओ भव्या मित्तल ने इन बच्चों के लिए अनूठी योजना तैयार करते हुए जिला मुख्यालय पर ही एक 100 सीटर हॉस्टल बनाया है।
इसमें आम गरीब परिवार के बच्चों के साथ ही कचरा बीनने वाले बच्चों को भी जोड़ा गया और करीब 25 बच्चों का दाखिला हॉस्टल में करवाया गया, जहां पर उन्हें सुबह उठकर ब्रश करने से लगाकर रात को सोने के लिए गद्देदार बिस्तर तक मिलता है।
इसी परिसर में चल रहे प्राथमिक विद्यालय में बच्चों का एडमिशन भी करवाया गया है, जहां वे पढ़ते भी हैं। अब बच्चों को स्कूल में पढ़ना काफी अच्छा लग रहा है। यहां तक कि बच्चे अब यहां अपना भविष्य भी तलाशते हुए कोई पुलिस में जाने की चाह रखता है, तो कोई शिक्षक बनना चाहता है।

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