उम्मीदों का ऐतिहासिक करतारपुर गलियारा

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ठीक 30 साल पहले 9 नवंबर 1989 को पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को बांटने वाली बर्लिन की दीवार गिराने की शुरुआत हुई थी। ठीक 30 साल बाद 9 नवंबर 2019 को ही पाकिस्तान और भारत के बीच बना करतारपुर गलियारा भारत के सिख श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। दुनिया के 2 महाद्वीपों में घटीं इन 2 ऐतिहासिक घटनाओं के बीच अंतर सिर्फ 30 साल का ही नहीं है बल्कि और भी कई सारे फर्क हैं।

मगर सबसे मोटा फर्क यह है कि 30 साल पहले की घटना से उन 2 देशों के फिर से एक होने की शुरुआत हुई थी जिनके बाशिंदे 28 सालों से विभाजन का दंश झेल रहे थे। बर्लिन की दीवार ढहने से जो हुआ था, वैसा करतारपुर गलियारा खुलने से वैसा कुछ नहीं होने जा रहा है। इस गलियारे से सिर्फ भारत के सिख श्रद्धालु पाकिस्तान स्थित अपने सबसे बड़े आस्था स्थल पर मत्था टेकने जा सकेंगे, इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा। इसके बावजूद इस घटना के ऐतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता।दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच रंजिश उतनी ही पुरानी है जितना पुराना भारत का विभाजन है। उस विभाजन से अस्तित्व में आया पाकिस्तान है और उतना ही पुराना है दोनों देशों के बीच दोस्ती का रिश्ता बनाने की कोशिशों का सिलसिला।
हालांकि ऐसी कोशिशों को पलीता लगाने वाले तत्वों की कमी भी दोनों तरफ नहीं है। ऐसे तत्व दोनों देशों के सत्ता प्रतिष्ठान में भी हैं, दोनों तरफ की सेनाओं में भी हैं और दोनों तरफ राजनीतिक स्तर पर गुमराह किए कुछ आम लोग भी हैं।

बहरहाल, गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के मौके पर करतारपुर साहिब गलियारे को खोलने की पाकिस्तान की पहलकदमी भारत के सिख श्रद्धालुओं के लिए बहुत बड़ी राहत है। इस फैसले से भारत के सिख श्रद्धालु तो गद्-गद् हैं ही, साथ ही दोनों देशों के वे तमाम लोग भी खुश हैं, जो चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के तनावभरे रिश्ते खत्म हों, सीमाओं के बंधन शिथिल हों और लोगों की आवाजाही बढ़े।करतारपुर साहिब सिखों के सबसे पवित्र आस्था केंद्रों में शुमार होता है। गुरु नानक देव ने अपने जीवन के 18 वर्ष यहीं बिताए थे और यहीं पर उनका देहावसान हुआ था। उनकी पवित्र स्मृति में यहां पटियाला के राजा भूपिंदरसिंह की दी हुई दान की राशि से गुरुद्वारा बनाया गया था।
क्या है करतारपुर कॉरिडोर
– यह स्थान पंजाब के गुरदासपुर जिले में भारतीय सीमा से करीब 4 किलोमीटर दूर पाकिस्तान वाले पंजाब के नारोवाल जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। दोनों देशों के बीच बेबनाव के चलते इतनी-सी दूरी के बावजूद भारतीय सिखों को दूरबीन से अपने इस आस्था स्थल के दर्शन करके संतोष करना पड़ता था।महज 1 साल पहले दोनों देशों में बनी सहमति के मुताबिक भारत सरकार ने गुरदासपुर जिला स्थित डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक गलियारे का निर्माण किया और सरहद से करतारपुर साहिब तक गलियारे के निर्माण का जिम्मा पाकिस्तान सरकार ने उठाया। दोनों ही तरफ निर्माण कार्य तेजी से हुआ और महज 10 महीने के भीतर गलियारा बनकर तैयार हो गया- आस्था का और रिश्तों का गलियारा।
इस गलियारे का बनना और श्रद्धालुओं के लिए उसका खुलना बताता है कि रिश्तों के बुरे दौर में भी सद्भाव बनाने वाले कुछ कदमों के जरिए तनाव का माहौल कुछ हल्का किया जा सकता है। हालांकि दोनों के बीच रिश्तों में सुधार के लिए पिछले वर्षों में कई प्रयास हुए लेकिन कोई भी सिरे नहीं चढ़ पाया। जब भी कोई बड़ी पहल हुई, पाकिस्तान की धरती पर पलने वाले आतंकवादी गुटों ने किसी न किसी वारदात के जरिए उस पहल को बेअसर करने का काम किया। उधर पाकिस्तानी हुकूमत भी ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकी जिससे यह लगे कि वह आतंकवादियों पर नकेल कसने के प्रति गंभीर है।

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