*हमने भी खोया था हिन्दी का एक ‘गाँव’*
_*—डॉ विवेकी रॉय जी आप आज भी याद आते हो…*_
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*–डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*
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साल 2016, नवंबर की 22 तारीख और उत्तरप्रदेश की पुण्यभूमि वाराणसी की गोद 93 वर्षीय ललित निबंध की आत्मा ने चिर विदाई ले ली थी।
हाँ नवंबर की ही 19 तारीख पर साल 1924 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के भरौली ग्राम में साहित्य की विधा ‘ललित विधा’ के सूर्य ने जन्म लिया था। प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक गाँव सोनयानी (गाजीपुर जिला) में हुई। महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ से पी-एच.डी. की। शुरू में कुछ समय खेती-बाड़ी में जुटने के बाद अध्यापन कार्य में संलग्न हुए।
‘मनबोध मास्टर की डायरी’ और ‘फिर बैतलवा डाल पर’ इनके सबसे चर्चित निबंध संकलन हैं और सोनामाटी उपन्यास राय जी का सबसे लोकप्रिय उपन्यास है।
हिन्दी साहित्य के प्रमुख ललित निबंधकारों में से एक डॉ. विवेकी राय का महाप्रयाण एक खालीपन तो छोड़ ही गया साथ ही साथ ललित निबंध भी उसके बाद मैं पढ़ नहीं पाया।
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, विद्या निवास मिश्र और कुबेरनाथ राय के साथ वो ललित निबंधकारों के चार स्तंभों में से एक थे।
वे शहरी चमक-दमक से दूर पूर्वांचल के सहज गवईं व्यक्तित्व को अपनी रचनाओं में ढालते हुए चुपचाप आजीवन साहित्य सर्जना करते रहे। उनके निबंध, उपन्यास, कहानी सभी में एक सहज गवईं गंध निसृत होता रहता है।
विवेकी राय जी का जिक्र हो और ‘गाँव’ को याद न करें तो बेमानी होगा ।
गाँव के अतिरिक्त आपने 50 से अधिक किताबें लिखी थी, जो भविष्य के गर्भ में पल रहे *खोजकर्ताओं* और वर्तमान के *सपनों* को निश्चित तौर पर रंग देने वाले साबित होंगे ।
किताबों से पन्ने पलटता हूँ तो खोजता हूँ मेरे प्रेरणा के पुंज को जो यह भी कहते थे कि *’हिन्दी तो गाँव का आँचल है और भोजपूरी हमारे अंचल की अस्मिता’*
वे ललित निबंध, कथा साहित्य और कविता कर्म के भी महाप्राण हैं। विवेकी राय जी का रचना कर्म नगरीय जीवन के ताप से तपाई हुई मनोभूमि पर ग्रामीण जीवन के प्रति सहज राग की रस वर्षा के समान है जिसमें भीग कर उनके द्वारा रचा गया परिवेश गवईं गंध की सोन्हाई में डूब जाता है। गाँव की माटी की सोंधी महक उनकी खास पहचान है।
सैकड़ो सम्मान, हजारों रचनाएं और लाखों पाठकों की आत्मा से गलबहिया लड़ाने वाले और हिन्दी की आत्मा यानि गाँवों का दर्शन देने वाले डॉ विवेकी रॉय जी आप आज भी याद आते हो… जिन्दा है आपकी यादें, आपका सृजन और आप….
ललित निबंध के असल महानायक डॉ. विवेकी रॉय जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ।
*-डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*
मातृभाषा उन्नयन संस्थान,
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