थोथा चना बाजे घना…

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*थोथा चना बाजे घना….*
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*डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*

मध्यप्रदेश में चुनाव का महापर्व जारी है, इसी दरमियान देश के दूसरे बड़े राजनैतिक दल कांग्रेस का वचन पत्र यानि घोषणा पत्र जारी हो गया। वचन तो ऐसे मानो स्वर्ग के देवता को स्वंय यही अवतरित करवा लेंगे । _*वचन पत्र के 47.62 वें बिंदु में कांग्रेस का वचन है कि यदि पार्टी सत्ता में आती है तो सरकारी भवनों और परिसर में आरएसएस ‘शाखाओं’ की अनुमति नहीं दी जाएगी। साथ ही सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस ‘शाखाओं’ में भाग लेने की अनुमति देने के पहले भी आदेश रद्द कर दिया जाएगा।*_
अब कौन समझाए ज्यादा पढ़े लिखे हुए लोगों को, कि स्वयंसेवक संघ एक राजनैतिक दल नहीं बल्कि स्वपोषी विचारधारा है।
जिस तरह राष्ट्र में कई विचारधाराओं का अनुसरण किया जाता है वैसे ही स्वयंसेवक संघ भी उन्हीं में से एक है।
सबसे पहले तो कांग्रेस को ये समझना भी जरूरी है कि प्रदेश में या राष्ट्र में किन चीजों की आवश्यकता है, क्या विकसित और विकासशील विचारों की आवश्यकता है या दुर्भावनापूर्ण प्रतिबंधवादी विचारों की?
कांग्रेस के चाणक्य पहले ही टिकट वितरण में गच्चा तो खा ही चुके है फिर भी नहीं जागे, और जाते-जाते अपने बेतुके मंतव्य को वचन पत्र में शामिल कर खुद को ही ढोंगी सिद्ध करने में भी कसर नहीं छोड़ सके। पता नहीं कांग्रेस को *हिटविकेट* करवाने की आदत क्यों लग गई और कैसे लग गई । उस दिन संसद में भी राफेल पर मुखिया पूरे जोश से सत्तापक्ष को घेर चुके थे और अचानक आई सवारी ने जादू की झप्पी देना और आँख मारने के चलते अपना विकेट खुद ही गवाँ दिया वैसे ही मध्यप्रदेश में जरूरी मुद्दों पर खोखले साबित होकर गैर जरूरी मुद्दों पर खुद की फजीहत करवाने से भी नहीं चुके।
अरे घेरना ही था तो प्रदेश के 52% किसानों की बात करते, शोषितों, वंचितों के साथ व्यापम की हत्याओं की सीबीआई जाँच का वचन देते, अवैध रेत खनन रोकने का वचन देते, नई आबकारी नीति बनाने का वचन देते, दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर आरक्षण और 5वीं अनुसूची पर माई के लाल बनते, पत्रकार सुरक्षा कानून का कहते, राजभाषा हिन्दी होने के बावजूद भी हिन्दी की अनिवार्यता का वचन देते, पर नहीं…. हम तो ठहरे कुण्ठित मानसिकता के, हम तो संघ की शाखा पर प्रतिबंध लगाने का वचन देंगे। अरे महाराज, संघ की शाखा भोर में लगती है तब कोई सरकारी कार्यालय में काम नहीं होता, सरकारी कामकाज 10 बजे के बाद आरंभ होता है और शाखा का अधिकतम 8 बजे समापन हो जाता है। कम से कम विचार करके वोट मांगने जाओ, पहले बावरिया ने बावला बना दिया, अब वचनपत्र से चने का थोथा होना सिद्ध हो रहा है।
आखिर आम कांग्रेसी का क्या कसूर है जो अपने नेता के हिट विकेट को झेले और पार्टी को हाशिए पर आता देख कर आँख बंद कर ले?
संघ की शाखा में जाने से रोकना सरकारी संविधान में प्राप्त स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है, ये मत भूलो की भारत में रहने है तो संविधान को सर्वोपरि मानना ही होगा ।
काश ! जनता के हितों की बात की होती तो शायद सत्ता सुख की प्राप्ति का दिवास्वप्न भी साकार हो जाता।
बहरहाल चिंता तो इस बात की है कि अब क्या होगा चुनाव परिणाम।
वैसे किन कारणों से संघ की शाखा पर प्रतिबंध लगाना चाह रहे हो?
संघ की शाखा का विरोध कर रहे हो, तो यह किसी सरकारी संविधान में नहीं लिखा है कि स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लघंन करके संघ की शाखा में जाओ, वैसे भी शाखा का समय प्रात: 5.30 या 6 बजे होता है, तो मुझे नहीं लगता की इस समय कोई सरकारी दफ्तर आरंभ हो जाता होगा। वैसे भी इस प्रतिबंधवादी मानसिकता ने कांग्रेस का नुकसान किया है।
आपका आग्रह हो सकता है कि यहाँ जाओ या न जाओ पर जोर जबरदस्ती तो कहीं नहीं की जाती
और आपको लगता है कि संघ, सरकार चला रहा है तो ये भी जान लो पहले सरकार दस जनपथ से चलती थी, पर वर्तमान केन्द्र सरकार के बारे में कभी सुना है कि केशवकुंज का हस्तक्षेप रहा हो?
और यदि मान भी लिया जाए कि संघ सरकार के कार्यों में सलाह दे भी रहा है तो यह तो भारत की सत्य सनातन परंपरा है। यहाँ राजा अपने दरबार में राजपुरोहित या कहे संतों की मंत्रणा हेतु उन्हें स्वयं आमंत्रित करते थे।
और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक विचारधारा है और विचारधारा का हस्तक्षेप तो सुशासन हेतु आवश्यक भी है। ये मत भूलो कि नेहरू भी मार्क्सवादी यानी वामपंथी विचारधारा से प्रभावित रहें हैं और तात्कालीन नेहरू सरकार ने कई फैसले वामपंथ से प्रभावित हो कर लिए है। अरे मत भूलो *तुर्कमान गेट काण्ड*, जहाँ एक अधूरे स्वप्न से पोषित मानसिकता के चलते आपके ही नेता ने मस्जिद व समीप स्थल पर बुलडोजर चलना दिया था, आप तो तब भी मुस्लिम समुदाय के हितेषी नहीं थे, बल्कि ढोंग करते रहे वोट बैंक के चलते। अरे याद तो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना का प्रवेश भी होगा, वो भी कांग्रेस शासन की उपलब्धि है, आमेर के किले की लूट तो भूल नहीं गए?
1984 के दंगे तो आप भूल भी नहीं पाओंगे, 2002 में जिन पर आरोप थे वे बरी हो गए पर आप बरी नहीं हुए…. घोटालों की बात करोंगे तो जीप काण्ड से स्पेक्ट्रम तक सब याद आएगा ।
_ये पब्लिक है, सब जानती है_ इसलिए जरूरी मुद्दों की राजनीति करो, गैरजरूरी में उलझोगे तो जरूरी भी हाथ से जाएगा और बेवजह अपने ही इतिहास से घेराबंद हो जाओगे । प्रदेश को परिवर्तन इसलिए नहीं चाहिए कि संघ की शाखा में जाने पर प्रतिबंध लगे। समय अपने घाव भूलता नहीं है, वो चुन-चुन कर बदला लेता है।
बंबई में बैठे कविकुल के खलीफा साहिर लुधियानवी साहब लिखते है-
*कल और आएंगे नगमों की खिलती कलियाँ चुनने वाले,*
*हमसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले*
तो याद रखो पैर उतने ही बाहर निकालो जितने पर चादर ढँक सको, वर्ना सनद रहे जाँघ उघाड़ोगे तो पूरा शरीर नंगा हो जाएगा ।

*—डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’*
खबर हलचल न्यूज, इंदौर

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