पहचान प्रकट करना है दण्डनीय अपराध
बड़वानी 15 अक्टूबर/सामान्यतः यह पाया जाता है कि जानकारी के अभाव में जनसामान्य द्वारा सोशल मीडिया तथा अन्य मीडिया प्लेटफार्म पर किसी भी पीड़ित बालक/बालिका अथवा महिला की पहचार उजागर कर दी जाती है जो कि कानूनन अपराध है तथा ऐसे प्रकरणों में दोषी के विरूद्ध भारतीय दण्ड संहिता में सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है।
जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास विभाग श्री गफ्फार खांन से प्राप्त जानकारी अनुसार लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 23 के अंतर्गत सक्षम विशेष न्यायालय की अनुमति प्राप्त किये बगैर पीड़ित बालक/बालिका के संबंध में किसी मीडिया में कोई रिपोर्ट, बालक की पहचान, जिसकें अंतर्गत उसका नाम, पता, फोटो, चित्र, परिवार का ब्यौरा, विद्यालय, पड़ोस या किन्ही अन्य विशिष्टियों का प्रकटन या उस पर कोई टिका-टिप्पणी करना जिससे पीड़ित बालक/बालिका की ख्याति का हनन या उसकी गोपनीयता का अतिलंघन होना प्रभावित होता हो, दण्डनीय अपराध है। जिसमें दोषी को 1 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किये जाने का प्रावधान है।
उन्होने बताया कि पाक्सों अधिनियम की धारा 23 में यह प्रावधान भी है कि मीडिया या स्टूडियों या फोटो चित्रण संबंधी सुविधाओं का कोई प्र्रकाशक या स्वामी या इनमें कार्यरत किसी कर्मचारी के द्वारा संयुक्त या पृथ्क रूप से किसी पीड़ित बालक/बालिका की जानकारी को इस प्रकार के माध्यमों से सार्वजनिक किया जाता है तो इसकी समस्त जिम्मेदारी प्रकाशक या स्वामी की रहेगी।
इसी प्रकार किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 74 के तहत विधि का उल्लंघन करने वाले या देखरेख और संरक्षण के जरूरतमंद बालक/बालिका या किसी बाल पीड़ित या किसी अपराध के साक्षी बालक/बालिका की पहचान किसी समाचारपत्र, पत्रिका या दृश्य-श्रव्य माध्यम या संचार के सिकी अन्य रूप में की गई रिपोर्ट में ऐसे नाम, पते या विद्यालय या अन्य किसी विशिष्ट को प्रकट करना दण्डनीय अपराध है जिसके अंतर्गत दोषी के विरूद्ध 6 माह का कारावास या 2 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजा का प्रावधान है।
पहचान प्रकट करना दण्डनीय अपराध है।
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