बोलने सुनने वालों को देखा अब की बार करने वालों को मौका*

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*बोलने सुनने वालों को देखा अब की बार करने वालों को मौका

 

जी हाँ, सात दशकों से लोकतंत्र निर्माण की प्रक्रिया में भारत की जनता ने हर उस व्यक्ति पर भरोसा किया जिसने सपने दिखाये, जिसने नई राह बताई, नए लोग जोड़े, पर उनमें से सभी यानि शत प्रतिशत तो कामयाब ही नहीं हुए। जनता के सपने टूटे, जनमत का विश्वास खारिज़ हुआ।
कई नए प्रतिमान गढ़े गए, नए किरदार गठित हुए और मलाल का ठेका केवल जनता के हाथ आया।
पर इस बार मध्यप्रदेश की विधानसभा चुनाव में संभवत प्रथम बार ही एक दिव्यांग जो न बोल सकते हैं न ही सुन सकते हैं पर फिर भी दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते इन्फोसीस जैसी बड़ी कम्पनी में नौकरी करने वाले जो अपनी तात्कालीन नौकरी छोड़ कर सतना का चुनाव मैदान संभालने वाले हैं और उनका कहना (संकेतक भाषा में जैसा उन्होंने ज्ञानेन्द्र पुरोहित जी के माध्यम से बताया) है कि ‘वो बोलने-सुनने वाले नहीं है बल्कि जनता के लिए कार्य करने वाले हैं। सच भी तो है… इस लोकतंत्र में जो बोलने और सुनने वाले थे वो झूठे आश्वासनों का अंबार ही तो लगा पाये…
*दिव्यांग शक्ति का दर्शन तो देखने को मिलेगा इस बार सतना के बाज़ार में….*
ईश्वर की सत्ता में जरूर चुनाव नहीं होते इसलिए अदम्य साहसी लोगों को ईश्वर पृथ्वी पर भेजता है।
सुदीप शुक्ला भी ऐसे ही शूर साहसी व्यक्तित्व हैं, जो सत्ता के पारंपरिक ठेकेदारों को जनता दरबार दिखा कर संग्रहित शक्तियों का शौर्य बताना चाहते हैं।
कई मुद्दों पर बेबाक टिप्पणी, जीत के बाद क्या खाका खींचना है वो भी तैयार है और कैसे चुनाव लड़ना है उसकी भी तैयारी…
सब कुछ इतना परिपक्व जैसे मानो स्वर्ग के देवताओं से शक्तियाँ मांगकर धरती के रिक्तस्थान को भरना चाहते हो सुदीप….

परिणाम चाहे जो हो पर लड़ाई तो निश्चित तौर पर लड़ी जाएगी… हो सकता है सतना के मैदान से विधानसभा में पहुँचकर जनमत के लिए भले के बड़े काज शिद्दत के साथ ही निभाएं….
होगा भी यही, बस सतना की जनता अपने क्षेत्र के दिव्यांग लाड़ले का विजय तिलक कर दे तो… हर बार किसी से उम्मीद की है, एक बार तो सतना ने ही दृष्टिहीन सूरदास जी को सासंद चुना है तो फिर एक बार सुदीप जी पर भरोसा जताएं ताकि गुलशन में गुलजार हो जाए लोकतंत्र…..

अनुरोध सहित…..
*-डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*
खबर हलचल न्यूज, इंदौर
www.arpanjain.com

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