देवास/खतेगांव-जैसा बरतन पर नाम लिखने से वह संसार मे नही गुमता, ऐसा ही नरतन पर परमॉत्मां का नाम होने से संसार सागर मे नही गुमता , हम अपनी छवि छिपाऐ और परमॉत्मां की छवि छपाऐ,दाता भीख नही सीख भी देता है। दाता के द्वार पर भिखारी नही भक्त बनकर भी जाऐ, परमॉत्मां से रोज रोज मॉगने ही नही मिलने भी जाऐ, हम कृपा दृष्टि और क्रूर दृष्टि मे अंतर समझे, यदि कृपा दृष्टि से देगा तो संबंध भी बनाऐ रखेगा, और यदि हमे क्रूर दृष्टि से देगा तो, सव कुछ देगा पर संबंध नही जोड़ेगा, भगवान ने रावण, कंस, दुर्योधन, को भी दिया, और सुदामा, गोपी, अर्जुन, केवट अहिल्या,शबरी को भी दिया, पर इनसे संबंध भी वनाऐ रखा,वह खाली भीख ही नही सीख भी दे, भिक्षा के साथ हमे जीवन जीने की शिक्षा भी मिले,यहॉ सव है, माल या माला, उपन्यास या उपनिषद,हरिद्वार या बियरवार,दाम या नाम,मोबाइल या माला, निर्णय अपना है कि हम क्या ले, प.नीरज महाराज ने कहॉ कि कथा आडम्बर की नही आत्मज्ञान की होनी चाहिऐ।कथा और धर्म तो मॉ के दूध के समान है इसमे हम किसी आडम्वर को नही मिला सकते,उन्होने कहॉ कि मांगने वाले हाथ कभीआशिर्बाद नही दे सकते और आशिर्बाद देने वाले हाथ कभी मांगते नही,हम मॉल वालो से नही माला वालो से भी संबंध रखे ।उक्त विचार श्रीमद्भागवत कथा में कथावाचक परम पूज्य आचार्य पंडित नीरज महाराज रहटगांव ने पटवारी मोहल्ले में दुबे परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को कथा का रसपान कराते हुए कहा की परमॉत्मां ने कहॉ कि दुनिया भले माॉल वालो के के साथ है पर मै तो मॉला वाले के साथ रहता हूं, पति पत्नि का रिश्ता भी माल का नही माला का ही है, वरमाला, दहेज का नही, ऐसा ही करमाला मन का संबंध धन से जुड़ने लगे। जिससे जीवन कलह युक्त हो गया, हम भगवान के यहॉ जाऐ तो दर्शन करे प्रदर्शन ना करे, सजो कम भजो ज्यादा, रामायण की सूर्यपंखणा सजकर गई थी तो नाक कटा कर वापस आई थी, पर शबरी भजकर गई थी तो राम को पाई थी, कथा के माध्यम से सुमधुर भजन भी गाए।
जैसे बर्तन पर नाम लिखने से गुमता नही है वैसे ही आत्मा पर परमात्मा का नाम लिखने से मनुष्य संसार के झमेलों में गुमता नही है…
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