भारत के आम चुनावों में भारतीय मतदाता को केवल अपना मनपसंद जनप्रतिनिधि निर्वाचित करने का ही अधिकार नहीं है भारत के प्रत्येक मतदाता को निर्वाचन में प्रत्याशियों को नापसंद करने का भी संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। भारतीय मतदाता की सामान्य बुद्धि पर भारत का संविधान पूरा-पूरा भरोसा करता है तभी तो मतदान पत्र में निर्वाचन में खड़े प्रत्याशियों के साथ ही “इनमें से कोई नहीं “याने NOTA को 2009से शामिल किया गया। भारतीय मतदाता के इस महत्वपूर्ण अधिकार के पीछे भारत के आम नागरिकों या मतदाताओं को यह सर्वोच्च अधिकार प्राप्त हुआ है कि जो भी जनप्रतिनिधि निर्वाचन हेतु प्रत्याशियों की सूची में शामिल होने से मतपत्र में दर्शाया गया है उसमें से कोई एक को चुनना है तो उसके नाम के सामने के बटन को दबाकर अपनी पसंद को अभिव्यक्त कर सकता है। इसके साथ-साथ भारतीय मतदाता को यह अधिकार भी प्राप्त है कि यदि कोई भी प्रत्याशी मतदाता की पसंद का नहीं है तो मतपत्र में इनमें से कोई नहीं (NOTA)का बटन दबा कर अपनी नापसंदगी को भी निर्वाचन में जाहिर करने का संविधान सम्मत रूप से पूरा-पूरा अधिकारी हैं।इस तरह NOTAमतदाता का संकल्प भी है और विकल्प भी है। भारत का मतदाता राजनैतिक दलों का अविचारी अंधा समर्थक या गुलाम नहीं है। भारतीय मतदाता स्वतंत्रता के बाद से होने वाले प्रत्येक आम चुनाव में अपनी स्वतंत्र पसंद नापसंद के आधार पर मतदान करता रहा है तभी तो भारत की राजनीति में आजादी के बाद से इतने विविधता पूर्ण नतीजे आए और प्रत्येक आम चुनाव में भारतीय राजनीति में निरन्तर राजनैतिक बदलाव की दिशा हमें दिखाई देती हैं। भारतीय मतदाता प्रायः लोकसमझ से मतदान करता है। निरन्तर राजनैतिक बदलाव की दिशा भारतीय आम चुनावों के नतीजों के विश्लेषण से भारत के मतदाताओं की इस अनूठी विविधता पूर्ण मनःस्थिति की अभिव्यक्ति का हमें पता चलता हैं।
२०२४ का आमचुनाव इस कारण महत्वपूर्ण है कि भारतीय मतदाता को एक दल नहीं दो राष्ट्र व्यापी राजनैतिक समूहों या गठबंधनों के बीच अपनी पसंद नापसंदगी जाहिर करनी है।२०२४का आम चुनाव एक तरह से इसलिए भी अनोखा है कि आजादी के बाद पहला आम चुनाव हैं जिसमें लगभग चार सौ पचास लोकसभा क्षेत्रों में सत्तारूढ़ एन.डी.ए.गठबंधन और इंडिया गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। देश के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में चुनाव पूर्व आपसी व्यापक राजनैतिक सहमति के साथ मिलकर इतने बड़े पैमाने पर चुनाव लड़ने का यह पहला अवसर है। भारत के आम चुनाव में एक बड़े राष्ट्रीय दल के सामने गठबंधन बना कर लड़ने के प्रयोग तो काफी समय से चल रहे हैं पर इतने बड़े पैमाने पर दो राष्ट्रीय गठबंधन पहली बार भारतीय मतदाता के सामने राजनीतिक विकल्प के रूप में उपलब्ध हुए है।
२०२४के आम चुनावों में एक नया घटनाक्रम यह भारतीय मतदाता के सामने आया कि सूरत और इन्दौर में विपक्षी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के उम्मीदवार के नामांकन अवांछित दबाव और भय पैदा कर अलोकतांत्रिक तरीके से वापस करवाने की घटनाएं समूचे भारत ही नहीं दुनिया भर में चर्चा और चिन्ता का विषय बनी।सूरत में इस कारण सत्तारूढ समूह का उम्मीदवार तत्काल निर्विरोध निर्वाचित घोषित हुआ पर इन्दौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रत्याशी न होने से पहली बार भारतीय मतदाता और खासकर इन्दौर लोकसभा के मतदाताओं के अन्तर्मन में व्यापक और विपरीत प्रतिक्रिया हुई दिखाई देती हैं। इसके परिणामस्वरूप नोटा का बटन इन्दौर लोकसभा क्षेत्र के चुनाव में मतदाताओं के प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में व्यापक जन चर्चा का विषय बनता जा रहा है। इन्दौर लोकसभा चुनाव में इन्दौर के मतदाताओं का समर्थन १९८९से एक दल विशेष को ही लगातार मिलता रहा होने के बाद भी सत्तारूढ दल विशेष द्वारा कांग्रेस प्रत्याशी से मनमानी पूर्ण अवांछित दबाव बनाकर नामांकन पत्र वापस लेना गले नहीं उतर रहा है। इन्दौर के मतदाताओं के मन में यह सवाल उथल-पुथल मचा रहा है कि जिस राजनैतिक दल पर हम भरोसा कर पिछले पैंतीस वर्ष से मतदान कर विजय दिलाते रहे उस राजनैतिक दल को इन्दौर के मतदाताओं की प्रज्ञा पर विश्वास और भरोसा क्यों नहीं है? यही वह मूल बिंदु है जिसके कारण इन्दौर लोकसभा क्षेत्र में नोटा राजनैतिक मनमानी के खिलाफ सविनय अवज्ञा के रूप में उभरता जा रहा है।जो भारत के आम चुनावों में पहली बार उम्मीदवारों की जय पराजय को ही नहीं मतदाताओं के स्वयंस्फूर्त प्रतिरोध या सविनय अवज्ञा को भी अभिव्यक्त करने का एक नया तरीका विकसित कर सकता है जो नोटा के एक नया आयाम के रूप में विकसित हो सकता है! यदि ऐसा हुआ तो नोटा बटन भारतीय मतदाता को राजनैतिक प्रतिरोध का एक नया औजार प्रदान करेगा।
#अनिल त्रिवेदी,
अभिभाषक
त्रिवेदी परिसर ३०४/२भोलाराम उस्ताद मार्ग, ग्राम पिपल्याराव आगरा मुम्बई राजमार्ग इन्दौर मध्यप्रदेश।