वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री अभय छजलानी, वेदप्रताप वैदिक, सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, श्रीकृष्ण बेडेकर, दिलीपसिंह ठाकुर और सुरेन्द्रसिंह पंवार को याद किया
इंदौर। जिन्हें पद का कोई गुमान नहीं था, जिन्होंने शहर को एक नई पहचान दी। जो एक लक्ष्य के साथ सतत काम करते रहे और मूल्यनिष्ठ पत्रकारिता के प्रति प्रतिबद्ध रहे। इनकी लेखनी का लोहा पूरे देश ने माना। जिन्होंने साहस के साथ अपनी बात को बेबाकी के साथ कहा भी और लिखा भी। जिन्होंने ताउम्र अक्षरों की आराधना की और शब्दों की सत्ता से अपनी धाक जमाई। ये सभी शहर की दमदार आवाज थे। ये विचार विभिन्न वक्ताओं के हैं, जिन्होंने इंदौर प्रेस क्लब द्वारा पिछले दिनों दिवंगत हुए अपने वरिष्ठ साथी पत्रकार पद्मश्री अभय छजलानी, वेदप्रताप वैदिक, सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, श्रीकृष्ण बेडेकर, दिलीपसिंह ठाकुर और सुरेन्द्रसिंह पंवार को स्मरण सभा में पुष्पांजलि देते हुए व्यक्त किए।
राष्ट्रीय कवि श्री सत्यनारायण सत्तन – जो फलेगा वह झड़ेगा, जलेगा वो बुझेगा, लेकिन कीर्ति को काल भी खपा नहीं सकता। अक्षर अक्षय है, जिसकी सत्ता कभी समाप्त नहीं होती। जिन्होंने पत्रकारिता को एक नई दिशा दी और उसे समाज में प्रतिष्ठित किया।
सांसद श्री शंकर लालवानी – अभय जी अच्छे काम की हमेशा तारीफ करते थे और गलती होने पर डांटने से भी चूकते नहीं थे। वैदिक जी भाषाविद होने के साथ ही वेदों के अच्छे जानकार थे। दिलीपसिंह ठाकुर स्पष्टवादी थे, चतुर्वेदी जी अंग्रेजी प्रोफेसर होने के बावजूद भी उनकी हिन्दी में गहरी पकड़ थी। मराठीभाषी होते हुए भी बेडेकर जी का हिन्दी के प्रति लगाव था। इन सभी साथियों का जाना शहर के लिए बड़ी क्षति है। नई पीढ़ी इनके बताए हुए मार्ग पर चले।
प्रो. सरोज कुमार – मंच पर प्राय: आने वाले अतिथियों के चेहरे दिखते थे, जबकि आज हमसे जुदा होने वाले पत्रकार साथियों के फोटो हैं। जो बड़ी दुख की बात है। एक साथ छ: पत्रकारों का जाना ऐसा मानो किसी जहाज से कुछ अच्छे लोग उतर गए हों। जहाज डगमगाने लगे। बेडेकर जी मराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर होने के साथ एक रसिक कलाकार भी थे। अभय जी जीवनकाल में किवंदति बने। कई खेल संगठन और मैदान, स्टेडियम अभयजी की देन है।
पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा – अच्छे व्यक्ति हमारे बीच से चले जाते हैं, लेकिन उनके विचार अनन्तकाल तक इस संसार में गूंजते रहते हैं। समाज उनके कार्यों की पूजा करता है। ऐसी शख्सियत से हम सभी को प्रेरणा लेना चाहिए।
श्री सुशील दोशी – भाषा के प्रति समर्पित थे पद्मश्री छजलानी जी, वेदप्रताप वैदिक, श्रीकृष्ण बेडेकर, सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, दिलीप सिंह ठाकुर। इंदौर में रहकर सभी ने हिन्दी को पूरे देश में प्रतिष्ठा दिलाई और पत्रकारिता को जीया।
म.प्र. ओलंपिक एसोसिएशन के उपाध्यक्ष श्री ओम सोनी – पद्मश्री छजलानी जी एक ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने 90 के दशक में प्रदेश की पहली खेल नीति बनाई। उषा राजे होलकर स्टेडियम उन्हीं की देन। इंदौर में आज जो खेलों की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हो रही हैं, उसके पीछे मुख्य भूमिका अभय जी की रही है।
वरिष्ठ पत्रकार श्री सतीश जोशी – अभय जी, वैदिक जी, चतुर्वेदी जी मेरे गुरु रहे, जिनसे मैंने पत्रकारिता सीखी। दिलीप ठाकुर बहुत विनम्र व्यक्ति थे और श्रीकृष्ण बेडेकर एक अद्भुत कलाकार थे। सुरेंद्र पंवार हिन्दी के अच्छे जानकार थे।
एमपीसीए के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार श्री अभिलाष खांडेकर – खेल पत्रकारिता के मापदंड स्थापित किए अभय जी और चतुर्वेदी जी ने। खेल संकुल बनाने में अभय जी महत्वपूर्ण भूमिका रही। वैदिक जी व्यक्तित्व बड़ा प्रखर था और उन्होंने मूल्य आधारित पत्रकारिता की। वे दिल्ली में इंदौर के राजदूत थे। बेडेकर जी की मालवा से अधिक महाराष्ट्र में ज्यादा ख्याति।
वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रकाश हिंदुस्तानी – आज हमारे बीच जो ये वरिष्ठ साथी नहीं रहे हैं, उन्होंने इंदौर को पूरे देश में ख्याति दिलवाई और नए मानक स्थापित किए।
अभ्यास मंडल के उपाध्यक्ष श्री अशोक कोठारी – अभ्यास मंडल के शहर हित से जुड़े कार्यों को बढ़ावा देने में अभय जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनमें नागरिकता का बोध कूट-कूटकर भरा था।
वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रवीण शर्मा – पद्मश्री अभय जी नईदुनिया रूपी उपवन के एक ऐसे मालिक थे, जिन्होंने एक पुष्प को पल्लवित किया। हिन्दी की ख्याति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने में वैदिक जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दिलीप ठाकुर अपने कार्य के प्रति निष्ठावान थे। बेडेकर जी बेबाक और स्पष्टवादी कलाकार थे।
नाट्यकर्मी श्री उदय इंगले – श्रीकृष्ण बेडेकर महाराष्ट्र छोड़कर इंदौर आए और यहीं के होकर रह गए। मराठी में प्रकाशित दीपावली विशेषांक महाराष्ट्र में सबसे लोकप्रिय था। वे एक अंतरर्देशीय पत्र सारांश का प्रकाशन करते थे जो पूरा हस्तलिखित होता था।
वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र शुक्ला – 70 के दशक से मैंने अभय जी के साथ काम किया। वे कुशल पत्रकार, संपादक होने के साथ ही एक बेहतर इंसान भी थे। नईदुनिया में रहते हुए उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। दिलीप ठाकुर अपने काम के प्रति बहुत कर्मठ थे और पुलिस प्रशासन में इनकी गहरी पकड़ थी। श्रीकृष्ण बेडेकर को कैलिग्राफी में मास्टरी थी।
सेवा सुरभि के श्री अतुल सेठ – इंदौर में खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने में पद्मश्री अभय जी मुख्य भूमिका रही है। शहर में संचालित हो रही कई खेल संस्थाएं उन्हीं की देन है। वैदिक जी, चतुर्वेदी जी, बेडेकर जी, दिलीप जी इन सभी का सेवा सुरभि के कार्यक्रमों प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग रहा।
इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने स्मरण सभा के प्रारंभ में अपने दिवंगत साथियों के बारे में अवगत कराते हुए कहा कि हिंदी पत्रकारिता के जनसुलभ अध्याय, मध्य भारत में चौथे स्तंभ के रूप में नए आयाम स्थापित करने वाले, हिंदी पत्रकारिता की नर्सरी माने जाने वाले अखबार नईदुनिया को वटवृक्ष बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले योद्धा पद्मश्री अभय छजलानी जी आज हमारे बीच नहीं रहे। नईदुनिया से जुडऩे और नईदुनिया को जीने के साथ ही अभय जी इंदौर शहर के विकास और प्रगति के लिए हमेशा प्रयास करते रहे। आज शहर में उद्योगों की स्थापना और नर्मदा का जल इंदौर में लाने में भी अभय जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
नईदुनिया के सफर का आगाज अभय जी के बाबूजी श्री लाभचंद छजलानी जी ने साइकिल पर अखबार बांटकर किया था। बाबूजी से प्रेरित होकर अभय जी ने नईदुनिया को एक परिवार के रूप में स्थापित किया। वह इस शहर की दमदार आवाज थे। उस समय नईदुनिया का ऐसा रूतबा था, जहां न सिर्फ महापौर, विधायक, सांसद के टिकट और मंत्रिमंडल के चेहरे तय होते थे, बल्कि जीत-हार की रणनीति भी यहीं बैठकर बनती थी। अभय जी से मिलने के लिए बड़े-बड़े अफसर घंटों इंतजार करते थे। इसे अभय जी का वैभव कहें या नईदुनिया की दमदारी कि अखबार के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री से लेकर कई शीर्ष हस्तियां शामिल होती थी। सालों तक यह देखा गया कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री इंदौर आने के बाद सबसे पहले नईदुनिया पहुंचते थे और अभय जी से मिलने के बाद ही उनके इंदौर में कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू होता था। शहर से जुड़े मुद्दों को लेकर वे हमेशा मुखर रहते थे और ऐसे सैकड़ों उदाहरण है, जब नईदुनिया की पहल के चलते ही सरकार को अपने निर्णय बदलना पड़े। इंदौर के हित में काम करने वाली संस्थाओं की अभय जी खुलकर मदद करते थे। अभ्यास मंडल इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। उनके पास अलग-अलग विषयों से जुड़े विशेषज्ञों की टीम थी। इस टीम की मदद से वे अखबार को कन्टेंट के मामले में सालों तक दूसरे अखबारों से आगे रखने में कामयाब रहे। उनकी ब्रांड वैल्यू कितनी ज्यादा थी, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज से 20 साल पहले जब किसी कार्यक्रम की सूचना शहर में किसी तक पहुंचती थी, तो उसका एक प्रश्न यह भी रहता था कि अभय जी आ रहे हैं। मतलब किसी कार्यक्रम में अभय जी का पहुंचना कितना मायने रखता था।
पत्रकारिता के अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर इंदौर को एक अलग पहचान दिलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक का मंगलवार को निधन हो गया। डॉ. वैदिक हिन्दी समाचार एजेंसी भाषा के संस्थापक संपादक थे। अंतर्राष्ट्रीय मामलों में खासकर अफगानिस्तान के मामले में उनकी विशेषज्ञता का लाभ की बार केंद्र सरकार भी लेती थी। उन्होंने हिन्दी के गौरव को स्थापित करने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी। डॉ. वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ानेवाले योद्धाओं में वैदिकजी का नाम अग्रणी है।
प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी की गिनती वरिष्ठ प्राध्यापक के साथ ही वरिष्ठ खेल पत्रकार के रूप में भी रही है। साहित्य जगत में भी उनका योगदान मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर के प्रधानमंत्री के रूप में लम्बे समय तक रहा। प्रो. चतुर्वेदी ने सन् 1980 से देश के विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में क्रिकेट पर आधारित लेखन की शुरूआत की। विभिन्न अखबारों एवं पत्रिकाओं में क्रिकेट पर आधारित आठ सौ से भी ज्यादा लेख एवं रिर्पोट्स लिखीं। उनके लिखे लेख और आलेख तो चर्चित हुए ही, क्रिकेट पर लिखी उनकी पुस्तकें भी चर्चा में रहीं। देश के प्रसिद्ध कि’केटर विजय हजारे द्वारा अंग्रेजी में लिखित पुस्तक का ‘मैं और मेरे समकालीन’ शीर्षक से हिंदी अनुवाद किया। देश के ख्यातनाम प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित ये पुस्तकें क्रिकेट पर आधारित बेस्ट सेलर बुक्स में शामिल की जाती हैं। देश के एकमात्र ऐसे लेखक रहे, जिनकी क्रिकेट पर अभी तक हिन्दी में 14 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इतनी अधिक पुस्तकें देश में किसी भी व्यक्ति ने किसी भी भाषा में किसी भी खेल पर नहीं लिखीं। सन् 1965 में मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एम.पी.सी.ए.) के सदस्य बने। पिछले 25 वर्षों से एम.पी.सी.ए. की मैनेजिंग कमेटी के सदस्य हैं। पिछले 6 वर्षों से एम.पी.सी.ए. की टेक्नीकल कमेटी के प्रमुख हैं। इन्दौर डिवीजनल क्रिकेट एसोसिएशन की स्थापना से ही उसके आजीवन सदस्य हैं तथा संभागीय क्रिकेट एसोसिएशन के दस वर्ष तक सचिव रहे तथा पाँच साल तक ‘इस्पोरा’ (इन्दौर स्पोर्ट्स राइटर्स एसोसिएशन) के अध्यक्ष रहे।
इंदौर प्रेस क्लब के वरिष्ठ सदस्य एवं मराठी पत्रिका शब्द दर्वल के संपादक श्री श्रीकृष्ण बेडेकर का पिछले दिनों अल्प बीमारी के बाद निधन हो गया। विचारों की निर्भीक अभिव्यक्ति और बेवाक बयानी के लिए पहचाने जाने वाले श्रद्धेय बेडेकर साहब लेखन के अलावा कई विधाओं में सिद्धहस्त रहे हैं। आज की पीढ़ी के लिए वे आदर्श व्यक्तित्व थे, जो न केवल उत्कृष्ट लेखन करते हैं, बल्कि वह लेखन अत्यंत सुंदर लिपि में होता था। आप एक अच्छे चित्रकार और गायक भी थे। वरिष्ठ पत्रकार, प्रभात किरण के प्रधान संपादक श्री प्रकाश पुरोहित ने सालों पहले श्री बेडेकर से जुड़े अपने एक कॉलम में उन्हें इंदौर का अलबर्ट पिंटो की संज्ञा दी थी। इंदौर प्रेस क्लब के प्रति श्री बेडेकर का विशेष स्नेह था। अपने बेबाकी के लिए मशहूर श्री बेडेकर के तीखे तेवर मैंने खुद शहर के कई मीडिया संस्थानों में अपने सेवाकाल के दौरान देखें हैं। महाराष्ट्र के मुंबई शहर में जन्मे, श्री बेडेकर जी ने अपना बहुमूल्य समय इंदौर में निवास करते हुए मराठी के साथ-साथ हिंदी भाषा, साहित्य, चित्रकला, संगीत, नाटक, पत्रकारिता व सुंदर हस्तलिपि आदि विषयों में अपना भरपूर योगदान दिया। अपनी जुझारू और कठिन परिश्रम से परिपूर्ण कार्यशैली से उन्होंने अनेक क्षेत्रों में जो महारत हासिल की है, उसके कई मराठी भाषी व हिंदी भाषी विद्वान कायल रहे हैं। उदाहरण वतौर ज्ञानपीठ विजेता वी.वी. शिरवाडकर, पी.एल. देशपांडे, विजय तेंदुलकर, सई परांजपे, पं. जितेन्द्र अभिषेकी, डॉ. जयंत नारलीकर, डॉ. अनिल काकोडकर वैसे ही बालकवि बैरागी, डॉ. शचिन्द्र भटनागर, डॉ. रमेश सोबती, प्रमोद त्रिवेदी आदि।
पत्रकारिता और नईदुनिया के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा देने वाले सहज सरल और कर्मठ स्व दिलीप सिंह ठाकुर कॉलेज के दिनों से ही लेखन की ओर आकर्षित हुए थे। एलआईसी जैसे संस्थान में नौकरी लग जाने के बाद भी वे इंदौर से बाहर नहीं रह पाएं और मात्र आठ दिनों में नौकरी छोड़कर वापस इंदौर आ गए। पत्रकारिता की बात की जाए तब शुरुआत आठ दस दिन दैनिक भास्कर और फिर नईदुनिया का जो दामन थामा तब लगातार 27 वर्षों तक नईदुनिया के साथ रहे। दिलीप जी शुरुआती दौर से ही सिटी डेस्क पर रहे और यही कारण रहा कि वे पुलिस प्रशासन में अपनी गहरी पैठ बनाने में सफल रहे। वे शहर की नब्जÞ को पहचानना जानते थे और किसी भी विभाग में अपने सोर्स कैसे विकसित किए जाए इसमें उनकी महारत हासिल थे। कलेक्टर कार्यालय, नगर निगम जैसे महत्वपूर्ण विभागों को कवर करने के अलावा शहर की सामाजिक गतिविधियों पर भी वे नजर रखा करते थे। और सामाजिक संगठनो के प्रमुखों से लगातार मिलते रहते थे। नईदुनिया में अभय छजलानी जी और महेन्द्र सेठिया जी दिलीप जी पर ही नगर डेस्क की जिम्मेदारी दिया करते थे। नए साथियों को तराशना और उन्हें प्रेस विज्ञप्ती लिखने से लेकर पेज लगाने तक का प्रशिक्षण अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच दिलीप जी देते थे। संबंधो को केवल कुछ समय नहीं बल्कि बरसो बरस तक संबंधो में भावनाओं की गर्माहट बनाएं रखना यह दिलीप जी का मूल स्वभाव था। उन्होंने सदा नईदुनिया के मूल्यों के अनुरुप पत्रकारिता की। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी से साक्षात्कार लेना हो या फिर किसी भी केंद्रीय मंत्री से हवाई अड्डे पर जाकर बातचीत करना हो दिलीप जी के पास प्रश्नों का पिटारा हरदम तैयार रहता था। उनकी कार्यप्रणाली बेहद आकर्षक थी और वे नगर में जाने वाली हरेक खबर को वे प्रत्यक्ष रुप से देखते थे।
कई अखबारों में संपादकीय डेस्क का हिस्सा रहे वरिष्ठ साथी श्री सुरेन्द्र सिंह पंवार का पिछले दिनों निधन हो गया। उन्होंने प्रूफ रीडर के रूप में अपने कार्य की शुरुआत की और सब एडिटर बने। बहुत ही मिलनसार और खुश मिजाज व्यक्ति थे। श्री पंवार अपने काम के प्रति इतने सजग थे कि किसी भी शब्द के बारे में कन्फ्यूजन होने पर तुरंत शब्दकोश का सहारा लेते थे। श्री पंवार ने कई मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएं दीं।
स्मरण सभा में इंदौर प्रेस क्लब उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी, दीपक कर्दम, महासचिव हेमन्त शर्मा, सचिव अभिषेक मिश्रा, कोषाध्यक्ष संजय त्रिपाठी, कार्यकारिणी सदस्य विपिन नीमा, प्रवीण बरनाले, अभय तिवारी, राहुल वावीकर, महिला प्रतिनिधि प्रियंका पाण्डे, संयुक्त संचालक जनसंपर्क आर.आर. पटेल, श्वेतकेतु वैदिक, पुनीत चतुर्वेदी, हरेराम वाजपेयी, अभ्यास मंडल के शिवाजी मोहिते, प्रवीण जोशी, सेवा सुरभि के ओमप्रकाश नरेडा, वरिष्ठ पत्रकार मुकेश तिवारी, मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’, मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर, पुष्पेन्द्र दुबे, घनश्याम यादव, छोटेलाल भारती, अनिल भोजे, कबीर जनविकास समूह के सुरेश पटेल, लक्ष्मीनारायण कसेरा, वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप दीक्षित, ब्रजभूषण चतुर्वेदी, उमेश रेखे, विभूति शर्मा, संजय जोशी, विक्रम कुमार, अन्ना दुरई, सुभाष सातालकर, अद्धेन्धु भूषण, विभूति शर्मा, जितेन्द्र व्यास, अनुराग तागड़े, संजय गुप्ता, श्रुति अग्रवाल, विकास मिश्रा, सुमित ठक्कर, नाज पटेल, किरण वाईकर, लोकेश सोलंकी, उज्जवल शुक्ला, राजेश ज्वेल, के.के. झा, हर्षप्रकाश पंडित, दीपक यादव, कपिश दुबे, शक्ति सिंह, वीरेन्द्र वर्मा, राजेन्द्र कोपरगांवकर, नवीन जैन, राजेश मिश्रा, डॉ. कमल हेतावल, मंगल राजपूत, लोकेन्द्र थनवार, धर्मेन्द्र शुक्ला, पंकज शर्मा, के.एल. जोशी, जयसिंह रघुवंशी, दिनेश सोलंकी, निशिकांत मोडलोई, अजय सारडा, पवन भलिका, संपत धूत, नीलेश भूतड़ा, योगेश राठी, मधुसूदन भलिका, अलका सैनी, उषा नाथ, सारिता काला, बुरहानुद्दीन शकरूवाला, शिवप्रसाद चौहान, चन्दू जैन, पुरुषोत्तम बाघमारे, दिनेश सालवी, प्रदीप चौधरी, गिरीश कानूनगो, शरद डुंगरवाल, कैलाश सिसोदिया, ओमप्रकाश फरकिया, अशोक शर्मा, दिनेश पुराणिक, प्रकाश तिवारी, अनिल त्रिवेदी, लक्ष्मीकांत पंडि़त, सुनील वर्मा, बी.के. उपाध्याय, चेतन मोहनवानी, अजय तिवारी, पुष्पेन्द्र दुबे, धर्मेश यशलाहा, नीतेश पाल, दिलाप भालेराव, मार्टिन पिंटो, प्रकाश कजोडिय़ा, विनोद गोयल, कांग्रेस के राजेश चौकसे, गिरधर नागर, पिंटू जोशी, अमन बजाज, सच सलूजा, देवेन्द्रसिंह यादव, संतोष गौतम, रीटा डागरे, विवेक खंडेलवाल, गिरीश जोशी सहित कई गणमान्य उपस्थित थे। अंत में दो मिनट का मौन रखकर सभी दिवंगत साथियों को पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई