आयोजन में मातृभाषा के कारण हुए अच्छे-बुरे अनुभवों को किया साझा
नागपुर । अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य पर कल 21 फरवरी को हिंदी की पाठशाला एवं इंडियन ट्रांस्लेटर्स ग्रुप की संस्थापक एकं निदेशक लतिका चावड़ा द्वारा एक अनूठे कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जहाँ देश भर के संस्थानों में मातृभाषा पर कविता पाठ और भाषण आदि देने की परम्परा रही है, वहीं इस परिपाटी को तोड़ते हुए, अनुवाद अध्ययन में पी-एच.डी. कर रहीं लतिका ने अपने इस अनोखे कार्यकम का आयोजन कर लोगों में उत्साह और ख़ुशी भरने का काम किया है। कार्यक्रम इस लिहाज़ से भी अलग रहा क्योंकि इसमें कोई विशिष्ट अतिथि या अध्यक्ष नहीं बल्कि उपस्थित प्रत्येक आगन्तुक विशिष्ट था जहाँ सबको अपनी बात रखने का अवसर दिया गया |
कोरोना काल के निर्देशों का पालन करते हुए, कार्यक्रम ऑनलाइन ज़ूम प्लेटफार्म पर आयोजित किया गया था जिसमें भारत भर से भारतीय एवं अप्रवासी भारतीयों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम का लक्ष्य केवल माँ मातृभाषा की केवल प्रशंसा ही नहीं बल्कि भारतीयों के मन में अपनी मातृभाषा के प्रति विश्वास बढ़ाना है और यह आभास दिलाना कि आपकी अपनी बोली और भाषा से कई बिगड़ते काम सुधारे जा सकते हैं। अपनी ही मातृभाषा में बोलने पर लोगों की अपनी जान बची है, तो उसीका प्रयोग कर औरों की जान बचाई भी जा सकती हैं। ऐसे अपने अनुभवों को साझा करने के लिए वृन्दावन, दिल्ली, हरिद्वार, जगन्नाथ पुरी, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, रायपुर, इंदौर, आगरा, नागपुर, सीतामढ़ी बिहार, सहारनपुर, सूरत आदि से उपस्थित रहे ।
विनती जी के अनुसार उनके पिताजी द्वारा उन्हें चुनौती मिलने पर उन्होंने हिंदी में दक्षता प्राप्त कर पत्रकारिता में पुरस्कार पाए और आज वे हिंदी में विज्ञान की पुस्तकें लिख रही हैं | वहीं वृन्दावन से पुष्पांग गोस्वामी जी ने ब्रजभाषा में ब्रज का रसिया गाकर वृन्दावन की होली की झलक दिखाई। सहारनपुर से युगांश दत्ता ने बताया कि उन्हें नौकरी के लिए एक साक्षात्कार में अंग्रेज़ी में बोलने पर मजबूर किया गया किन्तु वे मातृभाषा में बात करने पर अंत तक अडिग रहे। अपनी थाईलैंड यात्रा के दौरान सूरत निवासी लक्ष्य ठाकुर के मुंह से कभी एक वाक्य हिंदी में निकल गया, तो किसी भारतीय ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें टैक्सी ड्राईवर के रूप में मिले खुनी-डकैतों से बचा लिया। वहीं पतंजलि हरिद्वार के प्रख्यात ब्रह्मचारी कृष्णमिलन जी ने सबसे आग्रह किया कि अपने हस्ताक्षर अंग्रेज़ी नहीं बल्कि हिंदी एवं भारतीय भाषा में साफ़ अक्षरों में करें क्योंकि घिसे-पिटे और अधूरे अक्षरों के हस्ताक्षर का जीवन पर भी वैसा ही प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक अपनी बात को समक्ष रखने को आतुर था, अपने अनुभवों को साझा करने में प्रतिभागियों को समय कम पड़ रहा था, इसलिए अब शिक्षा क्षेत्र में अग्रणी संस्थान दिल्ली के शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने इसी कार्यशाला को आयोजित करने का संकल्प लिया है ।
ज्ञात हो कि ‘हिंदी की पाठशाला’ लतिका चावड़ा का हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के प्रति अभियान और कार्यशाला है जिसमें बच्चों को खेल-खेल में हिंदी सुधार, इंडोलॉजी अर्थात ही भारत ज्ञान और भारतीय संस्कृति का प्रशिक्षण दिया जाता है तथा इंडियन ट्रांसलेटर्स ग्रुप में अनुवाद कार्य होता है। इस कार्यक्रम की सफलता हेतु अधिवक्ता कुश चावड़ा का सहयोग प्राप्त था।