बहती हवा-सा था वो…. यार हमारा था वो…

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सोहनकागजीकोअश्रुपूरित_श्रद्धांजलि

सच तो यही से शुरू होता है कि वो मस्ती में जीता था, खुश रहता था, चिंताओं के लबादे कभी नहीं ओढ़ता बल्कि हमें समझाता था कि जिन्दगी जी लो भाई.. कल का कोई भरोसा नहीं है।
हुआ भी यही कि कल का कोई भरोसा ही नहीं रहा…
13 फरवरी की सुबह अचानक से उसका मोटरसाइकिल से दुर्घटनाग्रस्त होना, 13 की ही शाम को उसके दिमाग की शल्यक्रिया तो हुई पर फिर सोहन भाई उस अस्पताल से हमारे बीच न लौटा।
दुर्घटना के ठीक एक दिन पहले 12 फरवरी को मुझे फोन लगा कर कहता है आ जाओ गाँव मुझे याद आ रही है, एक घण्टे तक मस्ती करता है, 10 दिन पहले ही थोड़ी-सी बहकी बातें करता है कि मैंने ये कर दिया, वो कर दिया, सबको समझा दिया कि मैं मर जाऊँ तो कैसे रहना आदि-आदि तमाम सारी बातें, पर किसे अंदाजा था कि दादू ऐसे चले भी जाएगा।
जिसके काँधे पर मस्ती करते थे, उसे काँधा देना भी किसी पहाड़ को अकेले काटने से कम नहीं है, ईश्वर किसी को यह दुःख न दें, पर जरूर यह हमारे कर्मों की गति रही होगी तो यह दुःख भी मेरे और कपिल भाई के हिस्से आ गया।
हमें डाँटना, गालियाँ देना यह तो उसकी नियमित आदत थी पर उससे भी बड़ी आदत यह कि हमारी छोटी-सी भी सफलता उस सोहन दादू को नाचने का एक अवसर दें देती थी, पूरे गाँव को बताता रहता था कि देखों मेरे भाइयों ने आज ये किया…. अनुभव तो तब हुआ जब कल उसके ही अंतिम संस्कार में एक बुजुर्ग दादाजी मिले वो बोले कि आप अर्पण हो, मैंने कहा हाँ, तो वो बोले आप ही हिंदीभाषा का प्रचार कर रहे हो,
मैंने फिर कहा हाँ दादाजी, आपको कैसे मालूम तो बोले हर दूसरे दिन सोहन आपका बताता था, वो दादा जी प्रधानाचार्य रहें है नब्बे के दशक में और हिंदी पढ़ाते थे।
कमाल की बात तो यह थी कि सोहन दादू की हर खुशी में अर्पण और कपिल को जोड़ लेता था, कुल गिनती के 10 नामों में उसकी जिंदगी सिमटी हुई थी।
हर सुख-दुःख में तीन तो हमेशा साथ ही मिलेंगे सोहन दादू, कपिल भाई और मैं…पर न कल कपिल भाई संभल पाया और न ही मैं…।
दोस्त नहीं बड़ा भाई था दादू… तीनों की कोई बात एक दूसरे से छुपी हुई नहीं, हर दुःख साथ में बाँटा, हर सुख साथ में जिया, पर हमसे न जाने कौन-सी ग़लती हो गई थी जो दादू रूठ कर चला गया और यह दुःख हमें अकेले झेलना पड़ा।
झेलते भी कैसे नहीं, क्योंकि सच तो यह भी है कि पिछले एक महीने से वो कई तरह की तरंगें छोड़ रहा था जिसमें उसने ये जरूर समझाया था कि वो हमारा साथ छोड़ देगा, पर यह मन कहाँ समझ पाता है।
19 जनवरी से लेकर 12 तक वो कई बार ऐसी बातें कर चुका था कि समय कम होना दिख रहा हो।
दादू पर आपने ये ठीक नहीं किया, कैसे आपका मन मान गया हमें अकेला छोड़ने का…
आप तो हिम्मत देते थे कि हौसलों से लड़ों, पुलवामा की बरसी पर कवि कुमार विश्वास की पंक्तियाँ सुनाते ‘है नमन तुमको…’ और कभी कहते कि ‘हिम्मत मत हारना अनुज, ये समय भी नहीं रहेगा…’, कभी तो देर रात कहते कि ‘ये ख़बर सुधारो और अभी दो…’ जब मैं मज़ाक में कहता कि नींद आ रही है तो जवाब आता कि तुम्हारे वापस उठने से पहले लोगों तक पहुँचा दूँगा रे खबर….
दादू, लाखों बातें हैं, हजारों यादों के दस्तावेज… मनावर की एक होटल में पूरी रात नाचना, मस्ती करना, बेना और शिखा के लिए फरियाली मिक्चर भेजना….
कमाल करते हो दादू, 11 को नेहल आई तो आपने ही कहा था कि मैं 2-3 दिन में कुक्षी जाऊँगा तो मिक्चर घर लें जाऊँगा और आदी भांजे से भी मिल लूँगा। दादू सबकुछ अब आँखों के सामने से गुजर रहा है। शायद वक्त भी नहीं चाहता था इस हवा को हमारे साथ रहने देना…
पर सोचा नहीं था कि यह भी मंजर देखना पड़ेगा, वैसे दादू हर बार मुझे तो यही कहता था कि भाई तेरे कंधे पर जाऊँगा रे… तुम दोनों से बड़ा मैं हूँ, तो तू औऱ कपिल मुझे ले जाना… कल यह भी हो गया दादू, अब बात दें इस सजा का कारण…
आँसू गद्दार निकले, जिन्होंने बगावत कर दी है दादू….
अब यही प्रार्थना है कि हमें तू खुद ही हिम्मत दें जो यह वज्रपात भी हम सहन कर सकें….

सोहन दादू आप इस दुनिया को शरीर से अलविदा तो कह गए पर ये असम्भव है कि आप हमसे दूर हो पाओं।
ईश्वर आपको अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें….

ॐ शान्ति…

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
इन्दौर,

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