*स्वस्थ तन,मन की प्राप्ति हेतु भारतीय साधना पद्धति है योग*- *साध्वी अखिलेश्वरी*
*मन रहता है चंचल ,योग से बांधे*
#आपसी प्रेम ,विश्वास संयम व पर टिका है पारिवारिक जीवन
*अंजड़* -अंजड़ समिस्थ ग्राम पिपरी,बोरतलाय
मन की चंचलता हमेशा गतिमान रहती है उसे केवल योग से ही केंद्रित किया जा सकता है मांगलिक भवन में आयोजित भागवत ज्ञान गंगा में ये कहते हुए साध्वी अखिलेश्वरीजी ने आज तृतीय दिवस पर कथा को भगवान कपिल व उनकी माता देवहूति प्रसंग से प्रारम्भ करते हुए योग के बारे में कहा कि ,यह आध्यात्मिक प्रकिया है। हैं ,जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है।
दीदी मां ने बताया कि जब माता देवहूती ने उनके ही पुत्र से जब मन को संयमित कर साधना के लिए रास्ता पूछा तब भगवान कपिल ने इंद्रियों को वश में करने व आध्यात्म के साथ विभिन्न ज्ञान के लिए अष्टांग योग की महिमा बताकर योग का रास्ता बताया।दीदी मां ने कहा कि मन बहुत चंचल होता है वो हमेशा गतिमान होकर विचारो को बनाता रहता है ऐसी स्थिति i में मनुष्य में असमंजसता बनी रहती है चंचल मन को बांधने यानी स्थिर करने का का कार्य योग का होता है मन में उठने वाले विभिन्न तरह के भाव को नियंत्रित कर संयमित करने का कार्य हमारी सनातन प्राचीन संस्कृति का एक रूप योग ही है।देवहूतीभी मन की अस्थिरता के कारण संयमित होकर भगवान का ध्यान नई लगा पाई। तब कपिल भगवान ने कहा कि अनियंत्रण मन के में भक्ति नहीं उतरती। मन को बांधना ही पड़ता है।और ये योग से संभव है। इस तरह उन्होंने आठ प्रकार के योग बताए हैं- यम,नियम,आसन, प्राणायाम
योग की महिमा को बताते हुए दीदी मां ने कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए स्वस्थ शरीर के साथ स्वस्थ मन का होना बहुत जरूरी है। भारत में योग का अस्तित्व सनातन काल से चला आ रहा है और पूरे विश्व में भी योग इसीकी देन है। पर आज व्यक्ति का अध्यात्म जीवन ईश्वर भक्ति को त्याग कर सांसारिक सुखों की विलासिताओं के दलदल में फंसता जा रहा है। जिस तरह मन भागवत शुद्ध करता है वेसे ही योग तन को शुद्ध कर देता है। ऊर्जा भर देता है। , प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि। दीदी मां ने योग करने से तीन लाभ बताए आत्मा की शुद्धि, तन की शक्ति और मन की प्रसन्नता बढ़ जाती है। उन्होंने कहा आप योग करिए जैसे ही आप योग करेंगे आप स्वयं ही प्रसन्न हो जाएंगे ।
#भगवान शिवशक्ति का प्रसंग सुनाते हुए साध्वीजी ने सुखी दांपत्य जीवन के बारे में बताया उन्होंने कहा कि हमारे पारिवारिक जीवन में प्रेम,संयम, विश्वासऔर समर्पण होना चाहिए। जिन परिवार में आपसी प्रेम है आदर है मर्यादा है उनका जीवन सन्तुष्ट व लंबा होता है समझौतों पर टिका हुआ दाम्पत्य बड़ेदुष्परिणाम लाता है। और आज इसी बात का दुख है कि इस नए युग में अधिकतर रिश्ते भावनात्मक ना बनकर केवल समझौतों पर बन रहे है।
दीदी मां ने बताया कि भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा क्योंकि उन्होंने मन पर संयम व धैर्य नही रखा।और पतिआज्ञा का उलंघनकिया। स्त्री में संयम, धैर्य,व समानता की यदि भावना हे तो परिवार अपने आप ही मजबूत है वो टूट नही सकता। दीदी मां ने आज बढ़ते एकल परिवार पर चिंता व्यक्त करते हुए समझाया कि घर की धुरी का केंद्र पति व पत्नी होते है यदि उन दिनों में सामंजस्यता है आपसी समझ है तो परिवार टूटेगा नही और मजबूत होगा। और बढ़ते वृद्धाश्रम में कमी आएगी।