बरसो से जमे डाक्टर, अब बन गये शहंशाह, अव्यवस्था औऱ लापरवाही का अड्डा बना देवास जिला अस्पताल ।

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अव्यवस्थाओं और लापरवाही का अड्डा बना देवास जिला अस्पताल

* मरीजों को इंदौर रेफर करके देवास अस्पताल प्रशासन झाड़ लेता है पल्ला

* न मशीने दुरुस्त है न ही डॉक्टरों की मंशा, मरीज होते रहते है परेशान

 

देवास। मध्य प्रदेश का देवास जिला अस्पताल बदहाली के आंसू रो रहा है। जिले के सबसे बड़े अस्पताल में व्यवस्थाओं के लाख दावे किए जाए, लेकिन फिर भी व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आ रही है। जिला अस्पताल में लगातार मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जबकि मरीजों को यहां नियमित सुविधाएं नहीं मिल रही है। जबावदार सीएमएचओ डॉक्टर अधिनस्थों के ऊपर जवाबदारी डालकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। जिला अस्पताल में सुविधाएं पर्याप्त नहीं होने से अधिकांश मरीजों को इंदौर रेफर किया जा रहा है।

विगत दो दिन पूर्व बल्लई जागीर स्टेशन रोड निवासी भागवंती बाई को अचानक दर्द उठा और उनके पुत्र उन्हें इलाज के लिए शाम में जिला अस्पताल ले गए, वहां ड्यूटी के दौरान उपस्थित डॉक्टर ने बिना जाँच करे ही मरीज को इंदौर एम वाय अस्पताल के लिए रेफर कर दिया और कहा की हमारे यहाँ मशीन नहीं है, ऐसी स्थिति में मरीज के परिजन परेशान होकर इंदौर एम वाय अस्पताल ले कर आये जहाँ उनका इलाज जारी है। किन्तु डॉक्टर की लापरवाही से एक बड़ा हादसा भी हो सकता था।

आसपास और नगरजनों को होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के लिए उम्मीद की किरण बनें महात्मा गाँधी जिला अस्पताल की हालत खस्ता है। गरीब और अमीर दोनों ही इलाज के लिए जिला अस्पताल ही जाते है पर वहां जाने पर कभी डॉक्टर नहीं तो कभी मशीने ख़राब होने के चलते इंदौर रेफर करने का दौर हो जाता है। जिला अस्पताल में न तो मरीजों को सुविधाएं मिल रही हैं और न ही संसाधन उपलब्ध हो पा रहे हैं। कई बार मरीजों को डॉक्टरों के अभाव में दूसरे अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है। हादसों के बाद अस्पताल पहुंचने वाले घायलों को वहां न तो वार्डब्वाय मिलता है और न ही स्ट्रेचर। इधर डॉक्टरों के समय पर ड्यूटी पर नहीं पहुंचने और नर्सों द्वारा मरीजों को सेवाएं नहीं देने के मामले आम बात है।

देवास जिला अस्पताल में 6 माह से नहीं हो रहा ब्लड टेस्ट, मरीज परेशान

देवास के सबसे बड़े जिला अस्पातल में हर रोज सैंकड़ों मरीज पहुंचते हैं। इन मरीजों को मिलने वाली नियमित सुविधाएं कई महीनों से बंद पड़ी है। चिकित्सकों की कमी के कारण अस्पताल के कई विभागों में मरीजों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई है। कई महत्वपूर्ण विभागों पर ताले लगे हैं, जबकि कई चिकित्सक समय से अस्पताल ही नहीं पहुंचते। अस्पताल में डायलिसिस कैंसर यूनिट संचालित हैं, लेकिन अस्पताल में करीब छह माह से खून की जांच तक नहीं हो पा रही है।

सड़क हादसों में घायल होने वाले मरीजों को भी अस्पताल राहत देने में असमर्थ है। हड्डी के मरीजों के ऑपरेशन इस अस्पताल में करीब डेढ माह से बंद पड़े हैं तो वहीं खून की जांच करने वाली मशीन भी जून से बंद है। अस्पताल में अक्टूबर माह से ऑपरेशन थियटर का प्रमुख उपकरण सी-आर्म भी खराब हो गया है। अस्पताल में बायोकेमेस्ट्री मशीन खराब होने से खून की करीब 20 प्रकार की जांच यहां नहीं हो पा रही है। अस्पताल प्रशासन ने इसकी सूचना संबंधित कंपनी को दी थी, लेकिन कंपनी ने मशीन ठीक नहीं होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया।

मामले में आरएमओ डॉ. एम.एस. गोसर का कहना है कि बायोकेमेस्ट्री मशीन के लिए भोपाल की कंपनी को रिपोर्ट भेजी गई है, अब नई मशीन के लिए प्रस्ताव भेजा गया है, जल्द ही नई मशीन उपलब्ध करवा दी जाएगी।

अव्यवस्थाओं का स्थायी सेंटर है अस्पताल

जिला चिकित्सालय परिसर में मरीजों की सुविधा के लिए शासन द्वारा लाखों की लागत से कैंटिन भवन का निर्माण किया गया है, लेकिन 2 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी ठीक ढंग से चालू नहीं किया गया है। परिसर में मरीजों व उनके परिजनों के साथ चेन छीनना, सामान चोरी होने जैसी घटनाएं हो रही हैं। ठेकेदार द्वारा रखे गए सुरक्षा गार्ड भी अपनी ड्यूटी सही तरीके से नहीं करते।   जनसुनवाई में नहीं आते, जिससे समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाता।

बरसो से जमे डाक्टर, अब बन गये शहंशाह

अस्पताल प्रशासन की की लापरवाही और अव्यवस्थाओ के चर्चे कई बार आला अधिकारियो तक भी पहुचे, किंतु धनबल, बाहुबल के आगे किसकी चलती है , वो डाक्टर अभी भी यथावत जमे हुए है, तबादले का आदेश आता ही नही, और यदि आ भी जाए तो नेताओ के कारण ख़ारिज भी हो जाता है | माना जाता है कि राजनीतिक स्तर पर और स्थानीय नेताओ के साथ अधिकारियो से भी गहरे ताल्लुक़ात होने के कारण कभी गर्दन पर ट्रांसफर की तलवार नहीं लटकती।

महीने मे औसत ५०-६० केस होते है इंदौर रेफर:

हमारे द्वारा जब जानकारी माँगी गई तो पता चला की हक़ीकत क्या है इस अस्पताल की, हर माह भोले भाले ग्रामीणजनो को मामूली बीमारी मे भी कर दिया जाता है इंदौर एम वाय अस्पताल रेफर। सबसे ज़्यादा प्रसव के केस होते है रेफर। और तो और १० मेसे लगभग ८ केस ग्रामीण आदिवासीजनो के होते है जो नही जानते बीमारी की गंभीरता केवल डाक्टर के शब्दो को सही मान कर ही कार्य करते है।

राजनीतिक पनाह मे नर्से और डाक्टर :

जिन जनप्रतिनिधियो और नेताओ पर राजनीति के साथ साथ समाज की ज़िम्मेदारी होती है , जिनका कार्य है नगर की व्यवस्थाओ की और ध्यान देना वे केवल चुनाव के दौरान ही हमदर्दी दिखाते है जनता को उसके बाद में तो भूल ही जाते है जनता का दर्द , जनता बेचारी द्रोपदी है जिसका चिर हरण ये दुस्शासन अपने फायदे के लिए हमेशा ही करते आ रहे है। पूर्व मे भी कई बार नर्सो एवं डाक्टरो की अभद्रता के चर्चे हो चुके है जाइंट डायरेक्टर तक पहुंचे परन्तु जाँच के नाम पर खोखली कार्यवाही और मामला चलता फिरता कर दिया जाता है। क्योंकि अस्पताल में पदस्थ नर्सो से लेकर डाक्टरो तक सभी राजनीतिक प्रभावशैली है , किसी का मित्र नेता है तो किसी का भाई ….किसी का सगा संबंधित …..इसी कारण किसी को कोई भय नही है यहाँ, इसका दुष्परिणाम बैचारी जनता भुगतती है।

 

जिला अस्पताल में डिलेवरी के लिए पैसा मांगने की शिकायतें लगातार आती रहती हैं लेकिन डर कर कोई शिकायत दर्ज नहीं कराता हैं। ओर पैसा मांगने की बात तो अस्पताल कि दिनचर्या बन गई है। वरिष्ठ अधिकारियों को सबकुछ मालूम होते हुए भी अनजान बनकर अपनी मोन स्वीकृति देकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे है।

पूर्व में एसडीएम ने भी चेताया था

प्रसूति वार्ड में गड़बड़ी की शिकायत कुछ दिनों पूर्व एसडीएम जीवन रजक के पास भी पहुंची थी। अलसुबह पहुंची दो प्रसूताओं को बिना देखे निजी अस्पताल के लिए रैफर कर दिया गया था। एसडीएम शिकायत के बाद तुरंत ही जिला अस्पताल पहुंचे थे व अस्पताल स्टाफ के दुव्र्यवहार पर नाराजगी जताई था व चेताया था कि आगे से ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए।

अगर कोई लिखित में डिलेवरी के लिए पैसा लेने की शिकायत लेकर आता हैं तो संबंधित पर तुरंत ही कार्रवाई की जाती हैं।- डॉ. एमएस गौसर, आर एम ओ जिला अस्पताल देवास

हाल ही में निरिक्षण के दौरान मिले डाक्टरों और नर्सों को शोकाज नोटिस

प्रशासन की तरफ से जिला अस्पताल के 74 लोगों को शोकाज नोटिस थमाए गए हैं। इनसे तीन दिन में जवाब मांगे गए हैं। कलेक्टर कार्यालय से जारी नोटिस के बाद जिला अस्पताल में हड़कंप की स्थिति बन गई हैं। जिन्हें नोटिस थमाए गए हैं उनमें 13 डॉक्टर के साथ ही 21 स्टाफ नर्स भी शामिल हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को भी नोटिस दिए गए हैं। दो दिन पहले कलेक्टर शाम के समय जिला अस्पताल औचक निरीक्षण के लिए पहुंचे थे। यहां कई विसंगतियों पर कलेक्टर ने जमकर नाराजगी जताई थी। कलेक्टर के निर्देश पर अपर कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी ने यहां का हाजरी रजिस्टर भी अपने साथ रख लिया था। हाजरी रजस्टिर में अस्पताल स्टाफ के डॉक्टर व नर्स सहित अन्य की उपस्थिति को लेकर गड़बड़ी सामने आई थी जिसके बाद अस्पताल स्टाफ को नोटिस थमाए गए हैं।

इन डॉक्टरों को मिला नोटिस

जिला प्रशासन दरा 13 डाक्टरों को भी शोकाज नोटिस देकर जवाब मांंगा गया हैं। जिन डॉक्टरों को नोटिस दिया गया हैं उनमें डॉ. एनके सक्सेना, डॉ. एसएस मालवीय, डॉ. ए श्रीवास्तव, डॉ. विजया सकपाल, डॉ. मनीषा मिश्रा, डॉ. पवन पाटीदार, डॉ. देवेंद्र आर्य, डॉ. गरीमा शाह, डॉ. पलक शर्मा, डॉ. भगवान सिंह गुर्जर, डॉ. खुशबू विखार, डॉ. कपिल सोलंकी, डॉ. हेमंत पटेल को नोटिस दिया गया।

इन नर्सों को मिला नोटिस:

जिला अस्पताल में कार्यरत 21 स्टाफ नर्स को भी नोटिस देकर तीन दिन में जवाब मांगा गया हैं। जिन्हें नोटिस दिया गया हैं उनमें पूजासिंह, शर्मिला नागले, योगिता अमूले, आरबी पंडारकर, करूणा रोहाते, उपासना यादव, रंजना दास, लखमा कलेश, मंजू गुप्ता, शिल्पा मोरिया, रीमा येडे, चंदा कुमारी, सुषमा वर्मा, धन्यादास, सोनम मेशरम, सीमा वर्मा, शिवकुमारी तिवारी, कृष्णा परमार, रूबीना मसीहा, मंजू गोल्ड, मीना पटेल को नोटिस दिया गया हैं।

मंगलवार रात को कलेक्टर के साथ अस्पताल का निरीक्षण किया था। निरीक्षण में लगभग 74 कर्मचारी दिन रात की शिफ्ट में अनुपस्थित पाए गए थे। इनसे तीन दिन में जवाब मांगा गया हैं। जवाब के बाद कार्रवाई की जाएगी। डाक्टर, नर्स व अन्य कर्मचारियों को नोटिस दिए गए हैं। -नरेंद्र सूर्यवंशी (अपर कलेक्टर देवास)।

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