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प्राप्ति के बाद तृप्ति नहीं तो मुक्ति असंभव है -जैनाचार्य रत्नसुंदरसुरि
आज होगा 7 दिवसीय प्रवचन माला का समापन
देवास। वस्तु की प्राईज नहीं वेल्यू महत्वपूर्ण है। शरीर के अंगों की प्राईज निकालें तो कुछ रूपयों की हो सकती है लेकिन इसी शरीर का सदुपयोग हमें भगवान बना सकता है तथा दुरूपयोग शैतान। बीते कल, आज और कल के लिए हमारे पास 6 चीजें बची हुई है। बीते कल के लिए एक चीज स्मृति, आज के लिये तीन चीज श्रुति, कृति एवं रूचि तथा आगामी कल के लिए दो हैं प्राप्ति और तृप्ती। माना संसार की कई बातें आपके हाथ में नहीं है लेकिन भूतकाल की स्मृति तो आपके हाथ में ही है ना? भगवान बुद्ध पर किसी ने थूंक दिया। अगले दिन वह क्षमा मांगने आया तो बुद्ध ने कह दिया मैं तुम्हें नहीं पहचानता। फिर भी क्षमा कर देता हूँ। बाद में शिष्य ने बुद्ध से पूछा हे प्रभु इस व्यक्ति ने आपका तिरस्कार किया और आप कहते नहीं पहचानता। बुद्ध बोले कल जो व्यक्ति था उसके मन में क्रोध, जीभ में दुर्वचन एवं शरीर में उत्तेजना थी। लेकिन आज जो आया है उसके मन में शांति, जीभ में मधुर वचन एवं आँख में अश्रुधारा है। जब व्यक्ति ही बदल गया तो फिर द्वेष कैसा। हमें भी बीते कल की कटु स्मृति एवं गलत बातें संचित न करते हुए मधुर स्मृति एवं अच्छी बातों को ही याद रखना चाहिये। घर में से गंदगी को निकालते रहते हैं तो फिर मन मस्तिष्क में गंदी बातें सेव करके क्यों बैठे हैं उन्हें डिलिट कर दीजिये । फिर देखिये तनाव मुक्त जीवन की प्राप्ति होगी। कल, आज और कल विषय पर विशाल धर्मसभा को उपदेशित करते हुए यह बात पूज्य जैनाचार्य रत्नसुंदर सुरीश्वरजी म.सा. ने कही। आपने कहा कि आज के वर्तमान में जो तीन चीजें हमारे हाथ में है उनके अनुसार हम सुनना क्या चाहते हैं यह सुनिश्चित करना होगा। जहाँ गलत बात हो रही है वहां से बाहर निकल जाओ। हम पेट में तो अच्छी चीजें डालते है तो कान में खराब चीज क्यों ? इतना तो निश्चित करना ही पड़ेगा कि मजबूरी में ठीक लेकिन जानबूझकर गलत कभी नहीं सुनेंगे। इससे भी बढ़कर मेरे जो उपकारी एवं सहयोगी है उनकी प्रति गलत बातों का श्रवण तो करेंगे ही नहीं। हो सकता है बात सच्ची हो लेकिन हर सच्ची बात अच्छी नहीं होती। दूसरी बात जो आज हाथ में है वो है कृति। हमारी कृति याने कार्य क्या करें इसका भी पूर्ण विवेक होना चाहिये। क्रोध करना, गाली देना, दुव्र्यवहार या किसी का बुरा करना ऐसी कृति हमें जीवन में कभी आगे नहीं बढऩे देती। मैं चाहता हूँ कि आज से आप प्रतिज्ञा कर लो कि किसी को गाली देने में नारी के किसी भी स्वरूप का नाम नहीं लूंगा। झगड़ा आपका नारी को क्यों बीच में लाते हो। एक और निर्णय करना होगा कि क्रोध की शुरूआत मैं नहीं करूंगा। वर्तमान सुधारने की तीसरी स्टेप है रूचि। आपकी रूचि किस चीज में है। मंदिर और गुरू के समक्ष प्रवचन में आपका दूसरा चेहरा है जबकि बाहर की दुनिया में दूसरा। यह विरोधास्पद रूप कैसे चलेगा। तुम कहाँ हो यह महत्वपूर्ण नहीं तुम्हारी नजर कहाँ है यह महत्वपूर्ण है। कृति में कमजोर हो सकते हैं लेकिन रूचि तो अच्छे में ही होना चाहिये। दुश्मनी नहीं प्रेम रूचि, कृपण नहीं उदार रूचि, आँखों में विकार नहीं अविकार रूचि, वासना नहीं उपासना रूचि ही सर्वश्रेष्ठ है। रूचि को प्रमाणित भी करना पड़ेगा। जैसे ही मौका मिले रूचि को कृति और श्रुति में परिवर्तित हो जाना चाहिये। रूचि खोखली एवं निष्क्रिय नहीं सार्थक एवं सक्रिय तथा जिदपूर्ण होना चाहिये। आने वाले कल याने भविष्य के लिए दो चीजें हमारे बस में है पहली प्राप्ति, दूसरी तृप्ति। आपने जो चाहा वो मिल गया तो फिर तृप्ति है या नहीं जीवन में यह जानना होगा। प्राप्त करने के पहले सुनिश्चित करना होगा कि मनोवांछित प्राप्त के बाद तृप्त हो जाएंगे। यदि प्राप्ति के बाद तृप्ति नहीं तो प्राप्ति के पीछे पागल बनकर भागने का कोई औचित्य नहीं है। मन की सुख, शंाति और प्रसन्नता को दांव पर लगाकर यदि तृप्ति नहीं तो मुक्ति का स्वप्न देखना छोड दीजिए। रूपया कितना ही गिर जाए, रूपये के लिए आदमी को नहीं गिरना चाहिये। यदि वस्तु प्राप्ति ने अशांत बना दिया तो न वस्तु बचेगी न व्यक्ति। सुदामा कृष्ण के महल में गए तो वहां उन्हें कोई नहीं पहचानता था सिवा कृष्ण के। आप भी प्रभु से सच्चा प्रेम करते हो तो दुनिया आपको पहचाने या नहीं कोइ फर्क नहीं पड़ेगा। आप तो बस प्रभु भक्ति में मस्त बनकर समस्त परिपूर्ण परमात्मा बन जाओगे। दुनिया तो भक्त मीरा को जहर ही देती है, लेकिन प्रभु की ताकत उसे अमृत बना देगी। जीवन परिवर्तन के लिए छोटा ही सही प्रयास तो शुरू करो। भगवान से हम कहते हैं मेरे अपराध माफ कर दो लेकिन भगवान कहते है तू दुनिया के अपराध माफ कर दे मैं तेरे अपराध माफ कर दूंगा। बस ऐसी ही शुरूआत कर हम आत्मा से परमात्मा बन सकते हैं।
प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि देवास कलेक्टर श्रीकांत पांडे एवं पुलिस अधीक्षक अनुराग शर्मा ने पूज्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रवचन में सर्वधर्म एवं सर्वसम्प्रदाय के बड़ी संख्या में गुरू भक्त उपस्थित थे।