वाणिज्य की किताबों से निकली हिन्दी सेविका शिखा
एक स्त्री का दायित्व केवल यह ही नहीं होता की घर को संभाले, चूल्हे-चौके, बच्चें, परिवार तक की चार दीवारीमें सीमित रहे बल्कि उसके बाहर भी उसके सपनों का आकाश होता है। इसी बात तो सिद्ध किया है महिला सशक्तिकरण और सक्षमीकरण की आवाज़ बन कर उभरी नायिका शिखा जैन ने। जिसका जुनून ही उसके समाज में होने की पहचान है, जो हर समय ज़रूरतमंदों के साथ हो कर हिंदी भाषा की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापना हेतु अपने पति डॉ अर्पण जैन अविचल के साथ सबलता बन कर खड़ी हो गई, जिसने व्यवसाय और मुसीबत के दौर में भी अपने सिद्धांतों का साथ नहीं छोड़ा। हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में रहने वाली, और हिन्दी साहित्य जगत की सेवा क्षेत्र में कदम रखते हुए संपादक और प्रकाशक भी बनी शिखा जैन की । शिखा ने अपनी शिक्षा उज्जैन जिले की खाचरौद तहसील में विक्रम विश्वविद्धयालय के अंतर्गत शासकीय महाविद्यालय से बी. कॉम. स्नातक उसके बाद एम. कॉम स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की ।
४ सितम्बर को पिता शरदकुमार जी ओस्तवाल और माता राजेश्वरी जी ओस्तवाल के घर जन्मी शिखा अपने माता-पिता की दो संतान में सबसे बड़ी हैं। इनका एक छोटा भाई भी है। आपका विवाह धार जिले के कुक्षी निवासी श्री सुरेश जैन और श्रीमती शोभा जैन के सुपुत्र डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ के साथ हुआ। डॉ जैन प्रतिष्ठित साहित्यकार, पत्रकार, संपादक और सेन्स समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी होने के साथ-साथ कई सम्मान से नवाजे जा चुके लेखक और हिंदी सेवी है।
शिखा ने विवाह के उपरांत अपने सपनों को पंख देने के उद्देश्य से घर की दहलीज के बाहर पहली बार एक संस्थान में नौकरी हेतु कदम निकाला। उसके बाद पति के व्यवसाय में सहभागी बनने लग गई। धीरे-धीरे पति के रुझान के साथ कदमताल करते हुए शिखा स्वयं भी हिन्दी सेवा के मैदान में उतर गई। और संस्थान के नारे ‘हिन्दी के सम्मान में हर भारतीय मैदान में’ को आत्मसात करते हुए मातृभाषा.कॉम., हिंदीग्राम का संचालन आरंभ किया साथ ही स्त्री सम्मान और आधी आबादी की गूंज को मुखर करने के उद्देश्य से ‘वुमन आवाज़’ की स्थापना की।
वुमन आवाज़ के माध्यम से शिखा ने सबसे पहले स्त्रीशक्ति के एकत्रिकरण का कार्य किया। ९ मार्च २०१८ को महिला दिवस के दिन अपने संपादन में वुमन आवाज़ साझा संग्रह का विमोचन हुआ, जिसमें ५० से अधिक महिला रचनाकारों की रचनाओं को सम्मिलित किया। उसके बाद अगस्त माह में ५५ किताबों का विमोचन हुआ और वुमन आवाज़ द्वारा ६० महिलाओं का सम्मान किया गया।
इसके बाद लगातार हिंदी सेवा में तत्पर रहने वाली शिखा ने हिंदी भाषा के गौरव की स्थापना हेतु स्वयं को राष्ट्रसेवा के हवन में झोंक दिया। यहां से फिर एक नई राह खुली जो संपादन के साथ-साथ स्वयं का प्रकाशन की। फिर अपने पति डॉ. अर्पण जैन के सहयोग से एक प्रकाशन आरम्भ करने का संकल्प लिया जिसे फरवरी २०१९ को मूर्त रूप मिला। इस प्रकाशन का उद्देश्य हिन्दी साहित्य को कम से कम मूल्य पर एवं संचार माध्यमों एवं नई तकनीकियों के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु आंदोलन में सक्रिय सहभागिता।
शिखा आज कई संस्थाओं जैसे मातृभाषा उन्नयन संस्थान में राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, हिन्दी ग्राम में सह संस्थापक, मातृभाषा.कॉम में सह संस्थापक, साहित्यकार कोश में सह संस्थापक तथा सेन्स समूह में बतौर निदेशक शीर्ष दायित्व का निर्वहन कर रही हैं। इन सब के साथ–साथ कई साहित्यिक और गैर साहित्यिक संस्थानों में विभिन्न दायित्वों पर सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। शिखा छोटे से शहर से निकल कर बड़ी सोच के साथ वर्तमान में भी लगातार देश में कई भाषाई आन्दोलनों और संस्थानों में सक्रिय हैं। इस युवा उद्यमी के पास युवाओं के लिए सिर्फ एक सलाह है कि “ख़ामोशी से की गई मेहनत कभी ख़राब नहीं होती, जिम्मेदारी के साथ-साथ विश्वास के बीजों को रोपते हुए आगे बढ़ें।