सामजिक समरसता का संदेश देता है धार जिले के सुसारी में गणगौर पर्व पर होने वाला गुड़ तोड़ का आयोजन

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सुसारी। गणगौर का पर्व और घर में रबी की फसल आने के बाद की खुशी के बीच दशकों से चली आ रही गुड तोड़ की परंपरा को सुसारी में गुरुवार की शाम गणगौरी तीज पर्व पर इस का आयोजन किया गया जिसमे एक 21 फिट के लकड़ी के पोल पर गुड की पोटली लाल कपड़े में बांधी गई जिसे लेने के लिए जेसे युवा इस पोल पर चढ़े तो उन्हें रोकने के लिए वनवासी अंचल की महिलाओ ने उन्हें रोकने के लिए हरी लकड़ियों से पीटा।
गुरुवार शाम को बस स्टेंड परिसर में गुड़ तोड़ का आयोजन किया गया परिसर के मध्य 21 फिट ऊंचे लकड़ी के पोल पर गुड की पोटली बांधी गई जिसे लेने के लिए सर्व समाज के युवाओं की टीम ने आयोजन स्थल से आने के पहले ढोल से पूरे ग्राम का भ्रमण किया और ग्राम के मंदिरो में भगवान का और मोहल्ले में बुजुर्गो का आशीर्वाद ले कर बस स्टेंड परिसर पर पहुंची।
लकड़ियों की मार के बीच तोड़ा गुड़ बस स्टेंड परिसर स्थित सत्यनारायण मंदिर परिसर में 25 युवाओं की टीम शाम 6 बजे पहुंची युवाओं ने महिलाओ के हाथो हरी लकड़ी की मार से बचने के लिए प्लास्टिक के पाइप से बने क्रास आकार को लेकर ढोल के साथ पहुंचे जबकि युवाओं को गुड़ की पोटली तक पहुंचने से रोकने के लिए आदिवासी समुदाय की 6 से 8 महिलाओ ने उन्हें हरी गीली लकड़ियों से पीटा इसके बावजूद युवा इस लकड़ी के खभे पर चढ़कर गुड़ उतार लेते है।
पांच बार गुड़ उतरने के बाद लकड़ी का खभा उखाड़ा जाता है – गुड़ तोड़ने के लिए युवा पांच बार इस लकड़ी के खभे पर चढ़ कर गुड़ की पोटली उतारते हैं इस दौरान उन्हें मार से बचाने के लिए युवा साथी लड़की से मार से बचाने के लिए खुद मार खाते रहते है यह प्रकिया पूरी पांच बार दोहराई जाती है इसके बाद अपने आखिरी शोर्य का प्रदर्शन करने के लिए यह युवा मैदान में जिस लकड़ी के खंभे को जमीन से उखाड़ कर ले जाते है इस आयोजन को देखने के लिए बस स्टेंड परिसर पर हजारों की संख्या में ग्रामीण एकत्रित होते है।क्या है गुड तोड़ – गुड़ तोड़ की परंपरा काफी प्राचीन समय से चली आ रही है इसे लेकर गांव के बुजर्ग बताते है की रबी की फसल के घर आने के बाद की खुशी के साथ गणगौर पर्व आ जाता है ऐसे में उस समय गुड़ से मुंह मीठा कराया जाता था ऐसे में यह गुड़ तोड़ की परंपरा रबी की ठंड में जो फसल पकाने की समस्या आती है उसे गुड तोड़ में हरी लकड़ी से मार माना जाता है और गुड़ तोड़ने की मेहनत को फसल पकाने की मेहनत से जोड़ा जाता है इसके बाद फसल के बाद की खुशी को गुड़ तोड़ की खुशी से जोड़ा जाता है।

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