मन हीरा बेमोल बिक गया…*

1,427 Views

*मन हीरा बेमोल बिक गया…*
====================
*डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*

आन्दोलन का उफान पर आना, जनभावनाओं को हथियार बनाना, सामाजिक कुरीतियों पर लगातार हमले करके उन्हें हटाने के सब्जबाग दिखाना, रोज-रोज का सामाजिक चेतना का संचार बताना, लाखों आन्दोलनकर्ताओं का साथ बताना, न जाने कितनी मंशाएं न जाने कितने सपनो की हत्याएं, फिर केवल खुद की राजनैतिक उम्मीदवारी के लिए सबको धता बता कर समझौता कर आना, कमोबेश हर राजनैतिक प्रेरित आन्दोलन का यही हश्र होता आया है ।
जिन कर्ताधर्ताओं के दिमाग में ‘स्व’ पोषण रहता है या स्वहित सर्वोपरि रहता है, वहाँ हर आन्दोलन का यही परिणाम होता है।
परिणति और परिणाम के बीच झूलती मानवीयता आज जब खुद को ठगा महसूस करती है तब इतिहास की गर्त में छिपे दर्द सामने आकर उलाहना देते हैं।
2009 में चिरंजवी का आन्दोलन, बाद में कांग्रेस से विलय, टीआरएस का आन्दोलन के लिए उपजना और फिर राजनीति में सक्रियता से जनभावनाओं का मखौल उड़ाना, पटेल-पाटीदार का अनामत आन्दोलन और फिर राजनीति में दम भरना, भ्रष्टाचार के विरुद्ध आम आदमी का बिगुल बजाना और फिर राजनैतिक मंशा के चलते अन्ना को दरकिनार करना, आदिवासियों को शोषित बताकर उनकी भावनाओं से खेलना और जयस के नाम पर खुद के टिकट पर सिमट-सा जाना इस बात की गवाही देता है कि ‘जन समस्याओं और सामाजिक भावनाओं से खिलवाड़ करने वालों के कारण ही भविष्य के सच्चे आन्दोलनकर्ताओं का कोई साथ देने खड़ा होने से भी डरेगा।

सत्य तो यह भी है कि किसी के चेहरे पर धोखेबाज का निशान नहीं उकेरा हुआ होता है, तभी तो जनता छली जाती है और जनभावनाओं का बलात्कार हो जाता है।

जनता को ठगने वाले ठगोरे जब जनसमस्याओं के लिए पहले इसलिए लड़ते हैं ताकि खुद का कद मजबूत कर सकें, फिर उसी कद के सहारे राजनैतिक मंशाओं को पूरा करने के लिए स्थापित राजनैतिक दलों को ‘ब्लेकमेल’ करना प्रारंभ करके टिकट हथियाते है। टिकट के दम पर फिर अपने ही लोगों पर रौब झाड़ना आरंभ करके स्वसत्ता का बोध कराते हैं। आखिर कब तब ये जनता ऐसे ही छली जाएगी?

जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस)के नाम से संगठन की सक्रियता भी पिछले विधानसभा चुनाव में पैदा हुई थी, जब उद्देश्य था कि आदिवासियों में व्याप्त कुरीति जिसमें दारू-मुर्गा बाँट कर वोट ले लिए जाते थे, उस पर अंकुश लगाना और समाज को जागरुक करना, पर समय के बल के सहारे डॉ.हीरा अलावा की मंशाएँ बलवान होती गई, इस बार चुनाव के ठीक कुछ माह पहले अपने राजनैतिक मंतव्य को जगजाहिर कर 80 सीटों पर आदिवासी हुकुमत का बिगुल फूंकने वाले संगठन को अदद कांग्रेसी का साथ मिलने लगा, अब जय जोहार और जय बिरसा का नारा जय इंदिरा और जय गांधी की बानगी कहने लगा ।
पूरे संगठन पर संदेह का काला टीका लगा कर हीरा अलावा ने कांग्रेस के टिकट पर मनावर से चुनाव लड़ना तो तय किया ही पर सैकड़ों आदिवासी उम्मीदों का गला भी घोट दिया।
आखिरकार राजनीति की कुत्सित चालों के चलते इसी माहौल में सामाजिक आन्दोलनों का दम घुटने लगा है, और सामाजिक अव्यवस्था व्यापत है।
भविष्य में यदि कोई अन्य आन्दोलनकर्ता भी पैदा हुआ तो लोगों में यह भय तो बना ही रहेगा कि उसकी नियत भी कही टिकट मांग कर सत्ता सुन्दरी के साथ नृत्य करने की तो नहीं है?
भोले आदिवासी अपने ही नेता द्वारा ठगे गए दु:ख तो इस बात का है।
कद्दावर आदिवासी नेत्री स्व: जमुनादेवी कहती थी कि ‘आदिवासी कभी आदिवासी का भला नहीं करता बल्कि ठग लेता है’ इस बात पर सत्यता की मोहर तब भी कई बार लगी और आज भी हीरा अलावा के छल के कारण लग गई ।
न केवल छल बल्कि सरासर ठगबंधन ही बनाया आदिवासियों की भावनाओं का….
सनद रहे, इस तरह तो खुद का नुकसान करने के साथ-साथ समाज की भावनाओं का सौदा ही किया है।
भविष्य के गर्भ में बैठा ‘मलाल’ तुम्हारा इंतजार कर रहा है, यकीन न हो तो भविष्य की राह तकना, सत्य सामने आता ही होगा…..

*डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*
खबर हलचल न्यूज,इंदौर
=========================

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »